स्कूली शिक्षा में जवाबदेहिता का गंभीर प्रश्न | 10 Nov 2017

चर्चा में क्यों ?

पिछले कुछ समय से स्कूली शिक्षा के तहत जवाबदेहिता का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। इस विषय में विद्वानों द्वारा बहुत से विचार एवं सुझाव भी दिये गए हैं। वस्तुतः इस संदर्भ में इस बात पर विशेष बल दिया गया कि किसी छात्र की योग्यता का निर्धारण मात्र परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर नहीं किया जाना चाहिये। बेहतर शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थी को मात्र उच्च अंकों के साथ पास कराना भर नहीं होना चाहिये। यदि हमारी शिक्षा व्यवस्था इसी परिपाटी पर कार्य कर रही है तो इस संबंध में बहुत अधिक सोच विचार किये जाने की आवश्यकता है। इस विषय में विचार किया जाना चाहिये कि बेहतर शिक्षा के संदर्भ में एक शिक्षक की क्या भूमिका होनी चाहिये? यदि देश में शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है, तो इसका क्या कारण है? एकमात्र शिक्षक को इसका कारण मान लेना मूल समस्या की उपेक्षा करना होगा। अत: इस विषय में विचार किया जाना चाहिये कि क्या परीक्षा के स्तर का आकलन करने का एकमात्र तरीका अंकों का निर्धारण करना भर ही है? 

यूनेस्को की ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट 

  • शिक्षा व्यवस्था में जवाबदेहिता के प्रश्न पर यूनेस्को की नई ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट (UNESCO’s new Global Education Monitoring Report) 2017/18 का संदर्भ लिया जा सकता है।  
  • यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य (UN Sustainable Development Goal - SDG) 4 के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के प्रयास में वैश्विक शिक्षा प्रणालियों में जवाबदेहिता की भूमिका पर एक व्यापक और सूक्ष्म रूप प्रस्तुत करती है। 
  • विदित हो कि एस.डी.जी. 4 के अंतर्गत सभी के लिये समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित किये जाने के साथ-साथ आजीवन कुछ न कुछ सीखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने की बात कही गई है।
  • इस रिपोर्ट में इस बात को इंगित किया गया है कि सार्वभौमिक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा केवल शिक्षकों के प्रदर्शन पर निर्भर नहीं करती है, बल्कि यह अन्य कई हितधारकों के प्रदर्शन पर भी निर्भर करती है। 
  • शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक के अलावा सरकार, स्कूलों, अभिभावकों, मीडिया और नागरिक समाज, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों तथा निजी क्षेत्र की भी साझा ज़िम्मेदारी शामिल होती है। 

अंक प्रणाली कितनी सार्थक साबित होती है?

  • मात्र अच्छे अंक प्राप्त करने के लिये पढ़ना किसी भी शिक्षा प्रणाली के लिये अच्छा संकेत नहीं होता है। परीक्षा स्वयं में शिक्षण पद्धति एवं सीखने की जटिल प्रक्रिया का आकलन करने का अपर्याप्त तरीका होता है। 
  • ऐसे में केवल परीक्षा के अंकों पर विशेष ध्यान केंद्रित किये जाने से न केवल कमज़ोर छात्रों के पीछे छूटने का खतरा रहता है, बल्कि यह अकादमिक रूप से बेहतर प्रदर्शन करने वाले छात्रों के समक्ष भी शिक्षा के संकीर्ण उद्देश्यों का प्रदर्शन करता है। 

शिक्षकों को ज़िम्मेदार ठहराया जाना कितना उचित है?

  • वस्तुतः यदि बेहतर शिक्षा व्यवस्था में एक शिक्षक के संदर्भ में बात की जाए तो हम सभी जानते हैं कि एक शिक्षक बहुत सी बाधाओं के विरूद्ध एक जटिल और मुश्किल कार्य करता है। वह शिक्षा व्यवस्था का आधार स्तंभ होता है। और शिक्षा प्रणाली के प्रदर्शन से संबंधित पक्षों के दोषरोपण के लिये केवल शिक्षक को ज़िम्मेदार ठहराया जाना अनुचित और संक्षिप्त दृष्टि का प्रतीक है। 
  • अक्सर देखने को मिलता है कि शिक्षा प्रणाली के निम्न प्रदर्शन के लिये या तो शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों को दिये गए कम अंकों को कारण बता दिया जाता है या फिर अनुपस्थिति का बहाना बनाकर (कभी शिक्षकों की अनुपस्थिति को इसके लिये ज़िम्मेदार ठहराया जाता है तो कभी विद्यार्थियों की अनुपस्थिति को शिक्षकों की लापरवाही करार दे दिया जाता है) शिक्षकों पर ही ज़िम्मेदारी डाल दी जाती है। 
  • यदि बात की जाए शिक्षक की अनुपस्थिति के संदर्भ में तो इसके लिये पूर्ण रूप से शिक्षक को ज़िम्मेदार ठहराया जाना गलत है, क्योंकि यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर शिक्षक का कोई स्वयं का नियंत्रण नहीं होता है। 
  • इस संदर्भ में अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा छह राज्यों के 619 स्कूलों में शिक्षक अनुपस्थिति के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में स्कूल में अनुपस्थित शिक्षकों का कुल प्रतिशत 18.5% से अधिक नहीं पाया गया, इनमें से ज़्यादातर शिक्षक या तो आधिकारिक ड्यूटी पर स्कूल से बाहर थे या फिर वास्तविक छुट्टी पर गए हुए थे। जबकि, शिक्षकों की अनुपस्थिति के कारण वास्तविक शिक्षक अनुपस्थिति (Actual teacher absenteeism) मात्र 2.5% ही पाई गई।

सभी हितधारकों की जवाबदेहिता सुनिश्चित की जानी चाहिये

  • हालाँकि, यदि शिक्षा प्रणाली के निम्न प्रदर्शन की मुख्य समस्या शिक्षकों की कमी है, तो आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षा प्रणाली में प्रत्येक हितधारक की भूमिका पर रचनात्मक ढंग से ध्यान केंद्रित करते हुए सभी की जवाबदेहिता सुनिश्चित की जानी चाहिये। 
  • इसके लिये निम्नलिखित मुद्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिये कि स्कूलों और कॉलेजों हेतु आवश्यक बेहतर फंड और संसाधनों की व्यवस्था किस प्रकार की जा सकती हैं? इसके अतिरिक्त किस प्रकार शिक्षकों को और अधिक बेहतर प्रशिक्षण और समर्थन प्रदान किया जा सकता हैं? साथ ही किस प्रकार देश के प्रत्येक समुदाय को अपने सभी बच्चों (लड़का-लड़की दोनों को) को स्कूल भेजने हेतु प्रोत्साहित किया जाए? 
  • इन सब बातों के साथ-साथ बेहतर शिक्षा हेतु अभिभावकों की जवाबदेहिता भी सुनिश्चित की जा जानी चाहिये? माता-पिता अपने स्तर पर बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की दिशा में प्रोत्साहित करें तथा नई-नई चीज़ों को सीखने की प्रवृत्ति उनमें कैसे विकसित हो, इस संदर्भ में भी माता-पिता की भूमिका एवं जवाबदेहिता स्पष्ट होनी चाहिये। 

निष्कर्ष

वस्तुतः शिक्षा प्रणालियों हेतु एक ऐसा उत्तरदायी तंत्र विकसित किया जाना चाहिये जो न केवल सहायक और रचनात्मक दृष्टिकोण वाला हो, बल्कि वह पहुँच, समानता और समावेशन के मूलभूत मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के प्रसार पर अधिक बल देता हो। प्रत्येक स्तर पर इस बात का ध्यान दिया जाना चाहिये कि शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास होना चाहिये न कि उसका अकादमिक प्रदर्शन।