राज्य सभा के उप-सभापति का चुनाव | 08 Aug 2018

चर्चा में क्यों?

जल्द ही राज्यसभा (RAJYSABHA) के उपसभापति पद के लिये चुनाव होना है। उल्लेखनीय है कि राज्यसभा के अंतिम उपसभापति प्रोफेसर पी.जे. कुरियन (निर्विरोध) थे, जिनका कार्यकाल 1 जुलाई को समाप्त हो चुका है तथा सत्ता पक्ष और विपक्ष में उम्मीदवार के नाम पर सहमति न बनने के कारण चुनाव कराना अनिवार्य हो गया है।

प्रक्रिया

  • राज्यसभा के सभापति और उप सभापति का पद एक संवैधानिक पद है, जिसका उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 89 के तहत किया गया है।
  • कार्यालय से इस्तीफा देने या पद से हटाए जाने या राज्यसभा की सदस्यता समाप्त हो जाने पर यह पद रिक्त हो जाता है।
  • राज्यसभा का कोई भी सांसद इस संवैधानिक स्थिति के लिये एक सहयोगी के नाम का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकता है।
  • साथ ही, प्रस्ताव को आगे बढ़ाने वाले सदस्य को सांसद द्वारा हस्ताक्षरित एक घोषणापत्र प्रस्तुत करना होता है, जिसका कि वह नाम प्रस्तावित कर रहा है यानी जो सांसद निर्वाचित होने पर उप सभापति के रूप में सेवा करने को तैयार है।
  • प्रत्येक सांसद को केवल एक प्रस्ताव को स्थानांतरित करने या समर्थन करने की अनुमति है।
  • उपसभापति पद के लिये सांसद के नाम का प्रस्ताव पेश होने के बाद राज्यसभा इस पर विचार करती है।
  • यदि एक से ज़्यादा सांसदों के नाम के प्रस्ताव किये जाते हैं तो ऐसी स्थिति में मतविभाजन या वोटिंग के ज़रिये विजेता उम्मीदवार का फैसला होता है।
  • हालाँकि, सदन में किसी सांसद के नाम पर सहमति बनने के बाद उसे सर्वसम्मति से राज्यसभा का उपाध्यक्ष चुनने की भी व्यवस्था है।

पृष्ठभूमि:

  • राज्यसभा के उपसभापति पद के लिये  पहला चुनाव वर्ष 1952 में हुआ था।
  • कॉंन्ग्रेस के एस.वी.कृष्‍णमूर्ति राव को लगातार दो अवधियों (1952-56 और 1956-62) के लिये सर्वसम्मति से चुना गया था।
  • अब तक राज्यसभा के उपसभापति पद हेतु 19 बार चुनाव हो चुके हैं।

  • वर्ष 1969 में पहली बार इस पद हेतु दो सांसदों के बीच विवाद ने जन्म लिया जब RPI के खोबरागड़े ने राज्यसभा में मतविभाजन के ज़रिये जीत हासिल की थी।
  • हालाँकि, इसके बाद कॉंन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता पी.जे. कुरियन ने अगस्त 2012 में निर्विरोध उपसभापति पद का चुनाव जीता था।
  • उल्लेखनीय है कि उप-सभापति का चुनाव पूरी तरह से राज्यसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
  • उप-सभापति का पद केवल इसलिये महत्त्वपूर्ण नहीं है कि वह अध्यक्ष/उपराष्ट्रपति के पदरिक्त होने पर कार्य करता है, बल्कि वह सदन के सुचारु संचालन को सुनिश्चित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।