मछलियों में मरकरी/पारे का संचय | 10 Aug 2019

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, हैदराबाद (Indian Institute of Technology, Hyderabad- IIT-H), हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) और कनाडा की सरकारी एजेंसी फिशरीज़ एंड ओशंस कनाडा (Fisheries and Oceans Canada) के एक संयुक्त शोध के अनुसार, पारे (Mercury- Hg) के प्रदूषण स्तर में कमी आई है, लेकिन इसकी मात्रा मछलियों में बढ़ गई है।

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध से समुद्री जल में मिथाइल मरकरी (Methyl Mercury) के कम होने के बावज़ूद मछलियों में जमा होने वाली विषाक्तता की मात्रा बढ़ी हुई पाई गई है।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय समीक्षा कुछ दिन पहले जर्नल नेचर (Journal Nature) में प्रकाशित की गई थी।
  • इस शोध में यह बात भी स्पष्ट हुई है कि मछलियों की अलग-अलग प्रजातियों में पारे का संचय अलग-अलग मात्रा में है।
  • मछलियों की कुछ प्रजातियों में पारा पहले की तुलना में कम पाया गया, जबकि कुछ में पारे की अति वृद्धि देखी गई।
  • मछलियों में पारे के संचय में भिन्नता हाल के वर्षों में समुद्र के तापमान में बदलाव और मत्स्य अतिदोहन के कारण मछलियों के आहार पैटर्न में बदलाव का परिणाम है।
  • मछलियों एवं अन्य समुद्री जीवों में पारे की मात्रा को कम करने के लिये समुद्र में प्रवेश करने वाले पारे की मात्रा को कम करने के वैश्विक प्रयास किये गए हैं।
  • शोधकर्त्ताओं ने इस बात पर विशेष ध्यान केंद्रित किया कि क्या सभी पर्यावरणीय उपायों ने मछलियों में पारे के स्तर में वृद्धि की समस्या को कम किया है या बढ़ा दिया है।
  • मछलियों में पारा संचय की प्रक्रियाओं को समझने के लिये अटलांटिक महासागर में स्थित मेन की खाड़ी (Gulf of Maine) को चुना गया।
    • इस खाड़ी में अटलांटिक कॉड मछली (Atlantic cod fish) में मिथाइल मरकरी (Methylmercury) की सांद्रता में 23% तक की वृद्धि पाई गई।
  • शोधकर्त्ताओं ने पारिस्थितिकी तंत्र और पारे की सांद्रता पर तीन दशकों के डेटा का इस्तेमाल किया तथा पारा जैव संचय के लिये एक मॉडल विकसित किया।

Fishes

मछली का चयापचय

Fish metabolism

  • मछलियों में पारा जमा होने के तीन कारक होते हैं:
    • मत्स्य अतिदोहन (Overfishing): यह समुद्री जीवों को आहार परिवर्तन की ओर प्रेरित करता है।
    • समुद्री जल के तापमान में परिवर्तन: यह मछली के चयापचय में परिवर्तन करता है तथा इनकी वृद्धि के बजाय जीवन की सुरक्षा अर्थात् अस्तित्व के संकट से बचाव को प्रेरित करता है।
    • प्रदूषण के परिणामस्वरूप समुद्री जल में पारे की मात्रा में परिवर्तन।

पारे की सांद्रता का अध्ययन

  • शोधकर्त्ताओं ने अपने मॉडलिंग अध्ययन में सभी तीनों कारकों को शामिल किया है।
  • वर्ष 1970 के बाद से समुद्र में पारे की कमी के बावजूद विभिन्न प्रकार की मछलियों में पारे की सांद्रता में भिन्नता पाई गई।
  • वर्ष 1990 और 2012 के बीच एक मछली की प्रजाति अटलांटिक ब्लूफिन टूना (Atlantic BlueFin Tuna- ABFT) के ऊतक में पारे के स्तर में कमी पाई गई थी जो संभवतः समुद्र के तापमान में गिरावट से प्रेरित थी। हालाँकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण इसमें वर्ष 2030 तक पारे का स्तर लगभग 30% तक बढ़ सकता है।
  • समुद्री खाद्य श्रृंखला में पारा संचय में समुद्री तापमान का प्रभाव दिखाई देता है।
  • हालाँकि यह अध्ययन अटलांटिक महासागर में किया गया था, अन्य समुद्रों एवं महासागरों में मछलियों में पारे का स्तर समुद्र के तापमान तथा मत्स्य अतिदोहन से संबंधित होने की संभावना है।

स्रोत: द हिंदू