गाइनान्ड्रोमॉर्फी | 27 Feb 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों ने नर और मादा कीटों एवं पक्षियों की संरचना के बारे में विस्तृत अध्ययन कर दोनों के बीच पाई जाने वाली विविधताओं के बारे में जानकारी प्रदान की।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वैज्ञानिकों के अनुसार, नर एवं मादा पक्षियों और कीटों के बाह्य आकार में परिवर्तन के आधार पर इनके विकास के अध्ययन के बारे में पता लगाया जा सकता है क्योंकि इनकी आतंरिक संरचना के साथ-साथ बाह्य संरचना भी भिन्न होती है।
  • वैज्ञानिक वर्षों से इस बात का पता लगाने के लिये निरंतर शोध कर रहे थे कि कैसे भ्रूण और लावा विकास के दौरान वह सूक्ष्म परिवर्तन कर लेते हैं कि किस कोशिका को किससे जुड़ना है और किससे अलग होना है।
  • शोध के अनुसार, गाइनान्ड्रोमॉर्फ (Gynandromorp) के पंखों के उपर पायी जाने वाली संरचना से पता चलता है कि शरीर संकेतन केंद्रों (Signaling Centers) का उपयोग यह नियंत्रित करने के लिये करती है कि कोशिकाएँ विकास के दौरान कहाँ प्रवेश करती हैं और कैसे विविध उतकों के साथ संयोजन करके एक तितली को अन्य तितलियों से अलग बनाती हैं।

गाइनान्ड्रोमॉर्फी (Gynandromorphy)

  • सामान्यतः नर और मादा जीवों में उनके उतकों के वितरण के कारण विषमता पाई जाती है लेकिन किसी एक जीव में दोनों विशेषताओं का एक साथ पाया जाना गाइनान्ड्रोमॉर्फी कहलाता है।
  • जीवों में यह विशेषता लिंग गुणसूत्रों की अनियमितता के कारण पाई जाती है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, जानवरों और कीटों के लिंग विभेदी अध्ययन से मानव रोगों के अध्ययन के बारे में भी यह पता लगाया जा सकता है कि कोई रोग किसी एक लिंग को दूसरे की अपेक्षा अधिक प्रभावित क्यों करता है।
  • सामान्यतः स्तनधारियों में X और Y गुणसूत्र पाए जाते हैं, जबकि पक्षियों और कीड़ों में Z और W गुणसूत्र होते हैं। कुछ सरीसृप जो तापमान पर निर्भर होते हैं, वे अपने लिंग को परिवर्तित कर सकते हैं।
  • ऐसा माना जाता था कि एक पक्षी के लिंग का निर्धारण DMRT1 जीन द्वारा बनाए गए प्रोटीन से किया जाता है, जो रक्तप्रवाह के माध्यम से पक्षी की सभी कोशिकाओं तक पहुँचता है लेकिन समान लिंग वाले पक्षी के दोनों भागों (Sides) के लिये एक ही रक्त प्रवाह से प्रवाहित नही किया जाता कुछ और प्रक्रिया भी इसमें शामिल है।

हार्मोन की भूमिका

  • हार्मोन्स लिंग निर्धारण में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं लेकिन लिंग के निर्धारण के लिये ये एकमात्र वाहक नहीं हो सकते हैं।
  • गाइनान्ड्रोमॉर्फ्स (Gynandromorphs) कैसे पैदा होते हैं यह अभी भी एक रहस्य बना हुआ है लेकिन गुणसूत्र में अनियमितता ही इसका सबसे बड़ा कारण है।
  • लिंग वंशाणु (Sex Genes) के अध्ययन से विभिन्न प्रकार के मानव रोगों जो कि लिंग के अनुसार भिन्न-भिन्न होते हैं, का इलाज किया जाना संभव हो सकता है।
  • मोटापा (Obesity), मेटाबॉलिक सिंड्रोम (Metabolic Syndrome), ऑटोइम्यून डिज़ीज़ (Autoimmune Disease), अल्ज़ाइमर (Alzheimer) यहाँ तक कि उम्र बढ़ने की प्रक्रिया भी अलग-अलग लिंग में भिन्न होती है।

स्रोत – द हिंदू