गुरु नानक जयंती 2025 | 05 Nov 2025
प्रिलिम्स के लिये: गुरु नानक देव, सिख धर्म, सिख तख्त, खालसा, पंज प्यारे
मेन्स के लिये: प्राचीन भारतीय इतिहास, गुरु नानक देव और उनकी शिक्षाएँ, सिख धर्म।
चर्चा में क्यों?
गुरु नानक जयंती, जिसे गुरुपर्व भी कहा जाता है, 5 नवंबर 2025 को मनाई गई। यह दिन गुरु नानक देव (1469–1539) की 556वीं जयंती का प्रतीक है। यह दिवस सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के समानता और करुणा के संदेश का पर्व मनाने के लिये समर्पित है।
गुरु नानक जयंती
- यह कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास का पंद्रहवाँ चंद्र दिवस होता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह प्रायः नवंबर माह में पड़ती है।
- गुरुपर्व से एक दिन पहले श्रद्धालु नगर कीर्तन में भाग लेते हैं, जिसका नेतृत्व पंज प्यारे करते हैं। वे त्रिकोणीय सिख ध्वज (निशान साहिब) को लेकर चलते है और गुरु ग्रंथ साहिब को पालकी में विराजमान किया जाता है। इस दौरान भजन-कीर्तन और गतका (सिख मार्शल आर्ट) का प्रदर्शन किया जाता है।
- गुरु नानक जयंती के दिन इन शोभा यात्राओं के बाद गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन किया जाता है, जहाँ स्वयंसेवक सभी को निशुल्क भोजन परोसते हैं।
- लंगर, जो फारसी शब्द ‘आल्म्सहाउस’ (दानशाला) से लिया गया है, यह सिख समुदाय की रसोई है जो समानता और सेवा की भावना का प्रतीक है।
गुरु नानक देव कौन थे?
- परिचय: गुरु नानक देव का जन्म वर्ष 1469 में तलवंडी (अब ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ था और उन्हें वर्ष 1496 में सुल्तानपुर लोधी में आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ था।
- वे सिख धर्म के संस्थापक और दस सिख गुरुओं में पहले गुरु थे। उन्होंने जातिवाद, पाखंड और मूर्तिपूजा का विरोध किया तथा एक निराकार परमात्मा की भक्ति का संदेश दिया।
- उनका वर्ष 1539 में देहांत हुआ और उन्होंने गुरु अंगद देव को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
- गुरु नानक देव की प्रमुख शिक्षाएँ:
- एक ईश्वर में आस्था (एक ओंकार): उन्होंने सिखाया कि केवल एक निराकार, शाश्वत परमात्मा है, जो सभी प्राणियों में विद्यमान है।
- सच्ची उपासना ईमानदारी से ईश्वर का स्मरण करने में है, न कि केवल कर्मकांडों में।
- सभी मनुष्यों की समानता: उन्होंने जाति, अस्पृश्यता और धार्मिक ऊँच-नीच का विरोध किया। उनके अनुसार, सभी मनुष्यों में एक ही दिव्य ज्योति विद्यमान है।
- सिख धर्म के तीन स्तंभ: गुरु नानक ने सिख धर्म के तीन स्तंभों (नाम जपना, कीरत करना एवं वंड छकना) को औपचारिक रूप दिया ताकि सही जीवन जीने, श्रम की गरिमा और सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया जा सके।
- नाम जपना (Naam Japna): परमात्मा के नाम का निरंतर स्मरण करना ताकि कार्य, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे पाँच विकारों पर विजय पाई जा सके।
- कीरत करना (Kirat Karna): कड़ी मेहनत करना और ईमानदार, नैतिक तरीकों से आजीविका अर्जित करना ताकि शोषण एवं धोखे से बचा जा सके।
- वंड छकना (Vand Chhakna): जो कुछ भी आपके पास है, उसे ज़रूरतमंदों के साथ बाँटना। धन को ईश्वर का उपहार मानते हुए उसे समाज कल्याण में लगाना चाहिये।
- सरबत दा भला (सभी का कल्याण): उन्होंने धर्म, जाति, लिंग की परवाह किये बिना सभी की भलाई के लिये प्रार्थना करने का विचार किया।
- एक ईश्वर में आस्था (एक ओंकार): उन्होंने सिखाया कि केवल एक निराकार, शाश्वत परमात्मा है, जो सभी प्राणियों में विद्यमान है।
सिख धर्म क्या है?
- परिचय: यह एक एकेश्वरवादी धर्म है, जिसकी स्थापना 15वीं सदी में गुरु नानक देव जी ने पंजाब में की थी।
- सिख शब्द का अर्थ है शिष्य, जो सिख गुरुओं की शिक्षाओं के मार्गदर्शन में जीवन जीने को दर्शाता है।
- इसका विकास दस गुरुओं की शिक्षाओं के माध्यम से हुआ और इसे भक्ति तथा सूफी परंपराओं ने आकार दिया।
- सिख धर्म का केंद्र एक ईश्वर की भक्ति, नैतिक जीवन और समानता पर है।
- खालसा: इसमें वे सिख शामिल हैं जो सिख दीक्षा समारोह से गुजरते हैं, सिख आचार संहिता का पालन करते हैं और पाँच Ks (केश, कंघा, कड़ा, कचेरा और कृपाण) पहनते हैं।
- पवित्र ग्रंथ: गुरु ग्रंथ साहिब, जो गुरुमुखी लिपि में लिखा गया है, सिखों का शाश्वत धर्मग्रंथ है, जिसमें सिख गुरुओं और संतों की वाणी संकलित है।
- दसम ग्रंथ, जो गुरु गोबिंद सिंह से सम्बद्ध माना जाता है तथा एक पूरक ग्रंथ के रूप में देखा जाता है।
- सिख धर्म की संस्थाएँ:
- गुरुद्वारा: सिखों का उपासना स्थल, जहाँ जाति, लिंग या धर्म का कोई भेदभाव नहीं होता। यह प्रार्थना, सामुदायिक सेवा और शिक्षण का केंद्र होता है।
- तख्त (धार्मिक सत्ता के केंद्र): पाँच सिख तख्त धार्मिक और सांसारिक मामलों का मार्गदर्शन करते हैं, जिनमें अमृतसर स्थित अकाल तख्त सर्वोच्च प्राधिकारी है।
- अन्य में शामिल हैं तख्त श्री केशगढ़ साहिब (हिमाचल प्रदेश), जो खालसा की स्थापना से जुड़ा है।
- तख्त श्री पटना साहिब (बिहार), जो गुरु गोबिंद सिंह का जन्मस्थान है।
- तख्त सचखंड हजूर साहिब (महाराष्ट्र), जहाँ गुरु गोबिंद सिंह का अंतिम संस्कार किया गया था।
- तख्त श्री दमदमा साहिब (पंजाब), जहाँ उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को अंतिम रूप दिया था।
- शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC): यह एक सर्वोच्च निर्वाचित निकाय है, जो प्रमुख गुरुद्वारों और सिख धार्मिक मामलों के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी संभालती है। इसका मुख्यालय अमृतसर में स्थित है।
- खालसा पंथ: यह सिख समुदाय की सामूहिक संस्थागत समुदायिक पहचान है, जो सिखों के धार्मिक मामलों का प्रतिनिधित्व और संचालन करती है।
- गुरुद्वारा सुधार आंदोलन: गुरुद्वारा सुधार (अकाली) आंदोलन 1920 में इस उद्देश्य से शुरू हुआ कि सिख धार्मिक स्थलों (गुरुद्वारों) को भ्रष्ट और ब्रिटिश समर्थित महंतों के नियंत्रण से मुक्त कराया जा सके।
- इस आंदोलन के परिणामस्वरूप 1920 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) की स्थापना हुई और अंततः सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 लागू हुआ, जिसके द्वारा सिखों को अपने गुरुद्वारों के प्रबंधन का कानूनी अधिकार प्राप्त हुआ।
सिख धर्म के दस गुरु |
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गुरु नानक देव (1469-1539) |
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गुरु अंगद (1504-1552) |
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गुरु अमर दास (1479-1574) |
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गुरु राम दास (1534-1581) |
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गुरु अर्जुन देव (1563-1606) |
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गुरु हरगोबिंद (1594-1644) |
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गुरु हर राय (1630-1661) |
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गुरु हरकिशन (1656-1664) |
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गुरु तेग बहादुर (1621-1675) |
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गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708) |
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गुरु नानक की शिक्षाओं ने सामाजिक परिवर्तन में किस प्रकार योगदान दिया?
- सामाजिक समानता और सहभागिता: गुरु नानक ने जाति-भेद का विरोध किया और इस सिद्धांत को स्थापित किया कि हर व्यक्ति सम्मान का हकदार है। इससे कठोर सामाजिक श्रेणियों को कमज़ोर होने में मदद मिली।
- महिलाओं का सशक्तीकरण: वे लैंगिक समानता के प्रबल समर्थक थे और महिलाओं के प्रति भेदभाव के विरुद्ध आवाज़ उठाते थे।
- संस्थागत सुधार: गुरु नानक ने सामाजिक समानता को मज़बूत करने के लिये कई संस्थागत व्यवस्थाएँ विकसित कीं।
- लंगर: सामूहिक रसोई जहाँ सभी लोग बिना किसी भेदभाव के साथ भोजन करते हैं।
- पंगत: सभी को एक साथ बैठकर समान रूप से भोजन करने की व्यवस्था।
- संगत: सामूहिक आध्यात्मिक संगति और सीखने का स्थल, जहाँ लोग मिलकर विचार-विमर्श और निर्णय लेते हैं।
- लंगर: सामूहिक रसोई जहाँ सभी लोग बिना किसी भेदभाव के साथ भोजन करते हैं।
- नैतिक सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था: उन्होंने ईमानदार श्रम (किरत करो) और धन के न्यायपूर्ण वितरण (दसवंध – अपनी आय का दसवाँ हिस्सा दान करना) पर बल दिया। इससे श्रम की गरिमा बढ़ी और शोषण में कमी आई।
- अंतरधार्मिक संवाद और सद्भाव: गुरु नानक ने भारत और उसके बाहर व्यापक यात्राएँ कीं और हिंदुओं, मुसलमानों, सूफ़ियों, योगियों आदि से संवाद स्थापित किया। उन्होंने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का संदेश दिया।
- सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकीकरण: उनकी शिक्षाओं में भक्ति और सूफी परंपराओं का सुंदर समन्वय था, जो प्रेम, सत्य और मानवता पर आधारित आध्यात्मिकता को बढ़ावा देता है।
निष्कर्ष:
गुरु नानक जयंती गुरु नानक देव जी की एक ईश्वर, समानता और ईमानदारी से जीवन जीने की शिक्षाओं का सम्मान करती है। सभी के लिये सेवा और सम्मान का उनका संदेश आज भी अत्यंत प्रासंगिक है। यह दिन लोगों को एक न्यायपूर्ण, करुणामय और समावेशी समाज के निर्माण के लिये प्रोत्साहित करता है।
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दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक न्याय को संबोधित करने में गुरु नानक के "इक ओंकार" और "सरबत दा भला" की निरंतर प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. गुरु नानक द्वारा औपचारिक रूप से स्थापित सिख धर्म के तीन स्तंभ क्या हैं?
नाम जपना (ईश्वर का स्मरण), कीरत करना (ईमानदारी से कमाना), वंड छकना (दूसरों के साथ बाँटना)।
2. सिख धर्म में समानता को संस्थागत रूप देने वाली कौन-सी प्रथाएँ हैं?
लंगर (मुफ़्त सामुदायिक रसोई), पंगत (समान रूप से एक साथ भोजन करना), संगत (सामूहिक समूह)।
3. गुरुद्वारा सुधार (अकाली) आंदोलन का क्या परिणाम हुआ?
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) (1920) का गठन और सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 का पारित होना, जिससे गुरुद्वारों पर सामुदायिक नियंत्रण प्रदान किया गया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रश्न. निम्नलिखित भक्ति संतों पर विचार कीजिये: (2013)
- दादू दयाल
- गुरु नानक
- त्यागराज
इनमे से कौन उस समय उपदेश देता था/देते थे जब लोदी वंश का पतन हुआ तथा बाबर सत्तारुढ़ हुआ?
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1 और 2
उत्तर: (b)
