चुनावी भ्रष्टाचार का मुद्दा | 22 May 2020

प्रीलिम्स के लिये 

पोस्टल बैलेट, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951  

मेन्स के लिये 

लोकतंत्र पर चुनावी भ्रष्टाचार का प्रभाव  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य के शिक्षा व कानून मंत्री भूपेन्द्र सिंह चूड़ास्मा (Bhupendrasinh Chudasama) की विधानसभा सदस्यता व उनके निर्वाचन को रद्द कर दिया है। 

प्रमुख बिंदु 

  • भूपेन्द्र सिंह चूड़ास्मा गुजरात की धौलका विधानसभा (Dholka constituency) से अपने प्रतिद्वंदी से मात्र 327 मतों से विजयी हुए थे।
  • धौलका विधानसभा क्षेत्र से चूड़ास्मा के प्रतिद्वंदी अश्विन राठौड़ ने गुजरात उच्च न्यायालय में चूड़ास्मा के निर्वाचन को चुनौती देते हुए आरोप लगाया कि तत्कालीन रिटर्निंग अधिकारी ने अवैध तरीके से 429 पोस्टल बैलेट को निरस्त कर दिया था। जिससे चुनाव का परिणाम प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ था। 

गुजरात उच्च न्यायालय का निर्णय 

  • गुजरात उच्च न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा कि रिटर्निंग अधिकारी के अनुसार, चुनाव के दौरान कुल 1356 पोस्टल बैलेट प्राप्त हुए जिनमें मतों की गिनती के समय 429 पोस्टल बैलेट को निरस्त कर दिया गया था।
  • न्यायालय ने कहा कि साक्ष्यों पर विचार करते हुए यह पाया गया कि निरस्त करने से पहले 429 पोस्टल बैलेट को न तो किसी उम्मीदवार को दिखाया गया, न याचिकाकर्त्ता को और न ही चुनाव पर्यवेक्षक को दिखाया गया।
  • साक्ष्यों में यह भी पाया गया कि रिटर्निंग अधिकारी ने अंतिम परिणाम की गणना करते समय फॉर्म-20 पर भी 429 पोस्टल बैलेट को रद्द करने संबंधी कार्य को नहीं दर्शाया था। 

पोस्टल बैलेट 

  • ऐसा व्यक्ति किसी शासकीय सेवा में कार्यरत होने के कारण अथवा दिव्यांग या वरिष्ठ नागरिक होने के कारण मतदान केंद्र तक पहुँचने में असमर्थ हैं। उन लोगों को डाकपत्र के माध्यम से मताधिकार का प्रयोग करने की सुविधा देना ही पोस्टल बैलेट (Postal Ballot) कहलाता है।
  • रिटर्निंग अधिकारी द्वारा निरस्त किये गए पोस्टल बैलेट (429) की संख्या जीत के अंतर (327) से अधिक होने के कारण निश्चित रूप से यह सिद्ध होता है कि रिटर्निंग अधिकारी के निर्णय से चुनाव की शुचिता व परिणाम प्रभावित हुआ।
  • उपरोक्त कारणों के आधार पर गुजरात उच्च न्यायालय ने चूड़ास्मा का निर्वाचन जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 100 (1) (घ) (iv) के तहत शून्य घोषित कर दिया।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 

  • चुनावों का वास्तविक आयोजन कराने संबंधी सभी मामले जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (People’s Representative Act),1951 के प्रावधानों के तहत आते हैं। 
  • इस कानून की धारा 169 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1961 बनाए हैं। 
  • इस कानून और नियमों में सभी चरणों में चुनाव आयोजित कराने, चुनाव कराने की अधिसूचना के मुद्दे, नामांकन पत्र दाखिल करने, नामांकन पत्रों की जाँच, उम्मीदवार द्वारा नाम वापस लेना, चुनाव कराना, मतगणना और घोषित परिणाम के आधार पर सदनों के गठन के लिये विस्तृत प्रावधान किये गए हैं।   

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस