ग्रेट इंडियन बस्टर्ड | 07 Jan 2020

प्रीलिम्स के लिये:

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड

मेन्स के लिये:

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम-1972

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान (Desert National Park) जैसलमेर के संरक्षण केंद्र में 9 स्वस्थ ग्रेट इंडियन बस्टर्ड चूजों के जन्म की पुष्टि गई है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में विश्वभर में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की कुल संख्या लगभग 150 है।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड:

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड या सोन चिड़िया विश्व में सबसे अधिक वज़न के उड़ने वाले पक्षियों में से एक है, यह पक्षी मुख्यतया भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है।
  • एक समय इस पक्षी का नाम भारत के संभावित राष्ट्रीय पक्षियों की सूची में शामिल था।
  • परंतु वर्तमान में विश्व भर में इनकी संख्या 150 के लगभग बताई जाती है।
  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम-1972 की अनुसूची-1 में तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) की रेड लिस्ट में गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) की श्रेणी में रखा गया है।

मुख्य बिंदु:

  • जून 2019 में मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान (Desert National Park) जैसलमेर में संरक्षित किये गए 9 ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के अण्डों से स्वस्थ चूजों के जन्म की पुष्टि संरक्षण केंद्र द्वारा की गई है।
  • प्रशासन के अनुसार, विश्व के किसी भी संरक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत 6 माह के भीतर एक साथ इतनी बड़ी संख्या में स्वस्थ ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के चूजों के जन्म की यह सबसे बड़ी सफलता है।
  • इन 9 चूजों में से 7 चूजों को मादा और एक की नर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के रूप में पहचान की गई है, जबकि कुछ माह पहले जन्मे एक अन्य चूजे की कम आयु के कारण अभी तक लैंगिक पहचान नहीं की जा सकी।

संरक्षण कार्यक्रम:

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India-WII), देहरादून के साथ मिलकर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण के लिये एक कार्यक्रम शुरू किया है।
  • इसके लिये सरकार ने 33 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं, इसी कार्यक्रम के तहत जैसलमेर में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के चूजों की देखभाल और विकास के लिये एक केंद्र की स्थापना की गई है।
  • नवंबर 2018 में WII ने मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के चूजों के पुनर्वास के लिये 14 स्थानों को चिह्नित करने की जानकारी दी थी, इन स्थानों की पहचान करते समय वर्षा, वन्य स्रोतों से निकटता, तापमान, निवास स्थान, पानी की उपलब्धता आदि पर विशेष ध्यान दिया गया। इन 14 स्थानों में से राजस्थान के सोरसन को ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के पुनर्वास के लिये सबसे उपयुक्त स्थान के रूप में चुना गया।
  • WII के अनुसार, सोरसन में इन पक्षियों के प्रजनन को सूखा प्रवण जैसलमेर की अपेक्षा अधिक बढ़ावा मिलेगा।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण में चुनौतियाँ:

प्रजनन और मृत्यु दर

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का औसत जीवनकाल 15 या 16 वर्षों का होता है तथा नर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की प्रजनन योग्य आयु 4 से 5 वर्ष, जबकि मादा के लिये यह आयु 3 से 4 वर्ष है।
  • एक मादा ग्रेट इंडियन बस्टर्ड 1 से 2 वर्षों में मात्र एक अंडा ही देती है और इससे निकलने वाले चूजे के जीवित बचने की दर 60%-70% होती है।
  • WII की रिपोर्ट के अनुसार, लंबे जीवन के बावजूद इतने धीमे प्रजनन और मृत्यु दर का अधिक होना इस प्रजाति की उत्तरजीविता के लिये एक चुनौती है।

भोजन व प्रवास के विषय में कम जानकारी

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के भोजन और वासस्थान पर किसी प्रमाणिक जानकारी का अभाव होना इन पक्षियों के पुनर्वास में एक बड़ी चुनौती है।
  • गुजरात के वन्यजीव वैज्ञानिकों के सहयोग से राजस्थान वन्यजीव विभाग ने उच्च प्रोटीन और कैल्शियम युक्त कुछ पक्षी अहारों की पहचान की है, जिससे इस कार्यक्रम में कुछ मदद मिली है।

राज्यों द्वारा अनदेखी

WII की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ वर्षों पहले महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक राज्यों के कच्छ, नागपुर, अमरावती, सोलापुर, बेलारी और कोपल जैसे के ज़िलों में बड़ी संख्या में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पाए जाते थे। हालाँकि वर्तमान में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की घटती संख्या को देखते हुए इनके संरक्षण के लिये कर्नाटक ने WII के अभियान से जुड़ने की इच्छा जाहिर की है परंतु महाराष्ट्र से इस संदर्भ में कोई उत्तर नहीं प्राप्त हुआ है।

अन्य चुनौतियाँ:

  • वैश्विक स्तर पर और विशेषकर भारत में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण उच्च वोल्टेज की विद्युत लाइनें (तार) हैं, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पक्षी की सीधे देखने की क्षमता (Poor Frontal Vision) कमज़ोर होने के कारण वे जल्दी विद्युत तारों नहीं देख पाते।
  • केवल जैसलमेर में 15% ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की मृत्यु विद्युत आघात से होती है।
  • इसके साथ ही इन पक्षियों का अवैध शिकार तथा कुत्ते व अन्य जंगली जानवर इस प्रजाति की उत्तरजीविता के लिये चुनौती उत्पन्न करते हैं।

आगे की राह:

एक बार वयस्क हो जाने के बाद इन चूजों के विकास और प्रजनन के लिये उपयुक्त निवास स्थान की व्यवस्था करना तथा पुनः इन पक्षियों को प्राकृतिक वासस्थान में छोड़ने से पहले इन्हें भोजन और अपनी रक्षा के लिये आत्मनिर्भर बनाना भी WII के लिये एक बड़ी चुनौती होगी।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस