फ्लोर टेस्ट संबंधी राज्यपाल का अधिकार | 24 Jun 2022

प्रिलिम्स के लिये:

फ्लोर टेस्ट, संवैधानिक प्रावधान, राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियांँ 

मेन्स के लिये:

राज्यपाल की समन शक्तियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में महाराष्ट्र में चल रहे  सियासी संकट में राज्यपाल का फ्लोर टेस्ट कराने का निर्णय एक बार फिर चर्चा में बना हुआ है 

प्रमुख बिंदु: 

फ्लोर टेस्ट से संबंधित राज्यपाल के संवैधानिक प्रावधान: 

परिचय: 

  • अनुच्छेद 174 -राज्यपाल को राज्य विधानसभा को बुलाने, भंग करने और सत्रावसान करने का अधिकार देता है। 
  • संविधान का अनुच्छेद 174 (2) (b) राज्यपाल को कैबिनेट की सहायता और सलाह पर विधानसभा को भंग करने की शक्ति प्रदान करता है  हालाँकि राज्यपाल अपने विवेक का तब प्रयोग  कर सकता है जब ऐसा मुख्यमंत्री सलाह प्रदान करता है, जिसका बहुमत संदेह में हो सकता है। 
    • अनुच्छेद 175 (2) के अनुसार, राज्यपाल सदन का सत्र आहूत कर  सकता है और यह साबित करने के लिये फ्लोर टेस्ट का आह्वान कर सकता है कि सरकार के पास विधायकों की पर्याप्त संख्या है या नहीं।  
  • हालाँकि, राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार ही उपरोक्त शक्ति का प्रयोग कर सकता है जिसके अनुसार राज्यपाल मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करता है। 
  • जब सदन सत्र में होता है, तो अध्यक्ष  फ्लोर टेस्ट के लिये बुला सकता है। लेकिन जब विधानसभा सत्र में नहीं होती है तो अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल अपनी  अवशिष्ट शक्तियों का उपयोग करके  फ्लोर टेस्ट के लिये बुलाने की अनुमति दे सकता हैं। 

राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति: 

  • अनुच्छेद 163 (1) अनिवार्य रूप से राज्यपाल की किसी भी विवेकाधीन शक्ति को केवल उन मामलों तक सीमित करता है जहाँ संविधान स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करता है कि राज्यपाल को अपने विवेक पर कार्य करना चाहिये और इसे स्वतंत्र रूप से लागू करना चाहिये। 
  • राज्यपाल अनुच्छेद 174 के तहत अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग तब कर सकता है जब मुख्यमंत्री ने सदन का समर्थन खो दिया हो तथा उसका समर्थन बहस योग्य हो। 
  • आमतौर पर तब मुख्यमंत्री पर संदेह किया जाता है जब उन्होंने बहुमत खो दिया है तो विपक्ष और राज्यपाल फ्लोर टेस्ट के लिये बुलाएंगे। 
  • कई मौकों पर अदालतों ने यह भी स्पष्ट किया है कि जब सत्तारूढ़ दल का बहुमत सवालों के घेरे में हो, तो जल्द-से-जल्द उपलब्ध अवसर पर एक फ्लोर टेस्ट आयोजित किया जाना चाहिये। 

फ्लोर टेस्ट बुलाने में राज्यपाल की शक्ति पर सर्वोच्च्च न्यायालय का विचार: 

  • वर्ष 2016 में नबाम रेबिया और बामांग फेलिक्स बनाम उपाध्यक्ष (अरुणाचल प्रदेश विधानसभा मामला) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सदन को बुलाने की शक्ति केवल राज्यपाल में निहित नहीं है और इसका उपयोग मंत्रिपरिषद की सहायता एवं सलाह के साथ किया जाना चाहिये, न कि अपने विवेक पर। 
  • न्यायालय ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि राज्यपाल एक निर्वाचित प्राधिकारी नहीं है, वह केवल राष्ट्रपति का नामांकित व्यक्ति है, ऐसे नामित व्यक्ति का राज्य विधानमंडल के सदन या सदनों का गठन करने वाले लोगों के प्रतिनिधियों पर अधिभावी अधिकार नहीं हो सकता है। 
  • राज्यपाल को राज्य विधानमंडल या राज्य कार्यपालिका को अधिशासित करने की अनुमति देना संविधान के प्रावधानों में निहित मज़बूत लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ सामंजस्यपूर्ण रूप से संकेत नहीं देता। विशेष रूप से इसलिये क्योंकि संविधान की स्थापना मंत्री पद की ज़िम्मेदारी के सिद्धांत पर की गई है। 
  • वर्ष 2020 में शिवराज सिंह चौहान और अन्य बनाम स्पीकर, मध्य प्रदेश विधानसभा और अन्य में सर्वोच्च न्यायालय ने अध्यक्ष की शक्तियों को बरकरार रखा कि यदि प्रथम दृष्टया कोई विचार है कि सरकार ने अपना बहुमत खो दिया है, तो शक्ति परीक्षण हेतु बुलाने के लिये स्पीकर की शक्तियों को बरकरार रखा। 
  • वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने शिवराज सिंह चौहान और अन्य बनाम अध्यक्ष, मध्य प्रदेश विधान सभा और अन्य में स्पीकर की शक्तियों में फ्लोर टेस्ट के लिये बुलाने की शक्ति को बरकरार रखा, यदि प्रथम दृष्टया यह माना जाता है कि सरकार अपना बहुमत खो चुकी है। 
    • “राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट का आदेश देने की शक्ति से वंचित नहीं किया जाता है, जहांँ राज्यपाल के पास उपलब्ध जानकारी के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार सदन का विश्वास प्राप्त है या नहीं, इस मुद्दे का मूल्यांकन फ्लोर टेस्ट के आधार पर किया जाना चाहिये। 

फ्लोर टेस्ट: 

  • यह बहुमत के परीक्षण के लिये उपयोग किया जाने वाला शब्द है। यदि किसी राज्य के मुख्यमंत्री (CM) के खिलाफ संदेह है, तो उसे सदन में बहुमत साबित करने के लिये कहा जा सकता है 
    • गठबंधन सरकार के मामले में मुख्यमंत्री को विश्वास मत और बहुमत हासिल करने के लिये कहा जा सकता है। 
  • स्पष्ट बहुमत के अभाव में जब सरकार बनाने के लिये एक से अधिक व्यक्ति दावा कर रहे हों, राज्यपाल यह देखने के लिये एक विशेष सत्र बुला सकते हैं कि सरकार बनाने के लिये किसके पास बहुमत है। 
    • कुछ विधायक अनुपस्थित हो सकते हैं या मतदान नहीं करने का विकल्प चुन सकते हैं। ऐसी स्थिति में संख्याओं पर केवल उन विधायकों के आधार पर विचार किया जाता है जो मतदान करने के लिये उपस्थित थे। 

यूपीएससी सिविल सेवा विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के किसी राज्य की विधान सभा के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019) 

  1. राज्यपाल वर्ष के पहले सत्र के प्रारंभ में सदन के सदस्यों को प्रथागत अभिभाषण देता है।
  2. जब किसी राज्य विधानमंडल के पास किसी विशेष मामले पर कोई नियम नहीं होता है, तो वह उस मामले पर लोकसभा के नियम का पालन करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? 

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर:c 

व्याख्या:

  • भारतीय  संविधान के अनुच्छेद 176(1) में यह व्यवस्था है कि राज्यपाल प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र के प्रारंभ में और पहले सत्र के प्रारंभ में एक साथ एकत्रित हुए दोनों सदनों को संबोधित करेगा और विधानमंडल को सूचित करेगा एवं विधायिका को उसके सम्मन के कारणों के बारे में सूचित करेगा। अत: कथन 1 सही है।  
  • अनुच्छेद 208 राज्य विधानमंडलों में प्रक्रिया के नियमों से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि:  
  • किसी राज्य के विधानमंडल का कोई सदन इस संविधान के प्रावधानों, इसकी प्रक्रिया और अपने कार्य के संचालन के अधीन विनियमन के लिये नियम बना सकता है। 
  • जब तक खंड (1) के तहत नियम नहीं बनाए जाते, तब तक प्रक्रिया के नियम और स्थायी आदेश इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले संबंधित प्रांत के विधानमंडल के संबंध में लागू होते हैं, ऐसे संशोधनों के अधीन राज्य के विधानमंडल के संबंध में प्रभावी होंगे और जैसा कि विधान सभा के अध्यक्ष या विधान परिषद के अध्यक्ष, जैसा भी मामला हो, द्वारा किया जा सकता है। 
  • इसलिये जब औपनिवेशिक काल से राज्य विधानमंडल में किसी विशेष विषय पर कोई नियम नहीं होता है, तो राज्य विधानसभाएँ लोकसभा के नियमों का पालन करती हैं। अत: कथन 2 सही है। 

अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। 

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस