पर्यावरण निष्पादन सूचकांक – 2018 अस्वीकृत | 08 Aug 2018

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने पर्यावरण निष्पादन सूचकांक – 2018 को तर्कहीन और अवैज्ञानिक तथा मनमाने तरीके से निर्मित बताया है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 की रिपोर्ट में भारत को 180 देशों में 177वाँ स्थान प्राप्त हुआ था, जबकि वर्ष 2016 की रिपोर्ट में भारत की रैकिंग 141 थी।

प्रमुख बिंदु

  • इस द्विवार्षिक रिपोर्ट का निर्माण विश्व आर्थिक मंच के सहयोग से येल विश्वविद्यालय और कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।
  • वर्ष 2018 के सूचकांक के निर्माण में मैककॉल मैकबेन फाउंडेशन और मार्क टी. डीएंजेलिस का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
  • पर्यावरण स्वास्थ्य श्रेणी में भारत 9.32 अंकों के साथ सबसे निचले स्थान पर और वायु गुणवत्ता के संदर्भ में 180 देशों में 178वें पर है। इसमें यह पाया गया है कि वायु गुणवत्ता सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये अग्रणी पर्यावरणीय खतरा बनी हुई है। उल्लेखनीय है कि 2016 में वायु गुणवत्ता को केवल पर्यावरण स्वास्थ्य के तहत एक श्रेणी के रूप में पहचाना गया था, जबकि 2018 में 'पारिस्थितिक तंत्र जीवन शक्ति' (Ecosystem vitality) के तहत वायु प्रदूषण को एक अतिरिक्त श्रेणी माना गया है जो कि गलत प्रतीत होता है।
  • तीन पदानुक्रमिक स्तरों (नीति उद्देश्यों, अंक श्रेणियों और संकेतकों) पर पैरामीटर को दिये गए वेटेज़ 2016 और 2018 में अलग-अलग हैं। ये परिवर्तन वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और मनमाने प्रतीत होते हैं।
  • कुल मिलाकर रिपोर्ट में भारत (177वाँ) और बांग्लादेश (179वाँ) को बुरुंडी, लोकतांत्रिक गणराज्य  कांगो और नेपाल के साथ निचले पाँच देशों में शुमार किया गया है।
  • रिपोर्ट में कहा गया था कि पिछले दशक में अल्ट्रा-फाइन पीएम 2.5 प्रदूषकों के कारण मौतों की संख्या में वृद्धि हुई है और भारत में सालाना इसकी संख्या 16,40,113 अनुमानित है।
  • गौरतलब कि भारत का निम्न स्कोर पर्यावरणीय स्वास्थ्य नीति उद्देश्य में खराब प्रदर्शन से प्रभावित है।