सरकारी आदेश 111 | 23 Apr 2022

प्रिलिम्स के लिये:

उस्मान सागर और हिमायत सागर जलाशय।

मेन्स के लिये:

GO 111, संरक्षण।

चर्चा में क्यों?

पर्यावरणविद् और कार्यकर्त्ता हैदराबाद में ऐतिहासिक उस्मान सागर और हिमायत सागर जलाशयों की रक्षा करने वाले 25 वर्ष पुराने सरकारी आदेश (GO) 111 को वापस लेने के लिये तेलंगाना सरकार की आलोचना कर रहे हैं, उनका कहना है कि यह आसपास के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर देगा।

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दो झीलों की रक्षा करने वाला सरकारी आदेश:

  • 8 मार्च, 1996 को तत्कालीन (अविभाजित) आंध्र प्रदेश सरकार ने उस्मान सागर और हिमायत सागर झीलों के जलग्रहण क्षेत्र में 10 किमी. के दायरे में विकास या निर्माण कार्यों पर रोक लगाने के लिये GO 111 जारी किया था।
  • शासन ने प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों, आवासीय कालोनियों, होटलों आदि की स्थापना पर रोक लगा दी थी।
  • प्रतिबंधों का उद्देश्य जलग्रहण क्षेत्र की रक्षा करना तथा जलाशयों को प्रदूषण मुक्त रखना था।
    • झीलें लगभग 70 वर्षों से हैदराबाद को पानी की आपूर्ति कर रही थीं और उस समय ये झीलें शहर के लिये पीने के पानी का मुख्य स्रोत थीं।

 जलाशयों के निर्माण का कारण और समयावधि:

  • हैदराबाद को बाढ़ से बचाने के लिये कृष्णा की एक प्रमुख सहायक नदी मुसी (जिसे मूसा या मुचकुंडा के नाम से भी जाना जाता है) पर बाँध बनाकर जलाशयों का निर्माण किया गया था।
  • वर्ष 1908 में छठे निज़ाम महबूब अली खान (1869-1911) के शासनकाल के दौरान एक बड़ी बाढ़ (जिसमें 15,000 से अधिक लोग मारे गए थे), के बाद बाँधों के निर्माण का प्रस्ताव आया था।
  • झीलें अंतिम निज़ाम, उस्मान अली खान (1911-48) के शासनकाल के दौरान अस्तित्व में आईं। उस्मान सागर वर्ष 1921 में तथा हिमायत सागर वर्ष 1927 में बनकर तैयार हुआ। उस्मान सागर में निज़ाम का गेस्टहाउस अब एक विरासत भवन है।

सरकार द्वारा GO 111 को वापस लेने का कारण:

  • शहर अब पानी की आपूर्ति हेतु इन दो जलाशयों पर निर्भर नहीं है तथा जलग्रहण क्षेत्र में विकास पर प्रतिबंधों को जारी रखने की कोई आवश्यकता नहीं है।
  • हैदराबाद की पेयजल आवश्यकता 600 मिलियन गैलन प्रतिदिन (एमजीडी) से अधिक है, जिसे कृष्णा नदी सहित अन्य स्रोतों से पूरा किया जा रहा है।

पर्यावरणविद् और कार्यकर्त्ताओं के विचार: 

  • पर्यावरणविद् और कार्यकर्त्ताओं का मानना है कि ये जलाशय अभी भी शहर के लिये एक महत्त्वपूर्ण  जल स्रोत हैं।
  • मज़बूत  रियल एस्टेट लॉबी के कारण उनके चारों ओर एक विशाल कंक्रीट का जंगल बन जाएगा।
  • दो झीलों के आस-पास के क्षेत्र में पहले से ही 10,000 से अधिक अवैध निर्माण गतिविधियाँ जारी हैं।
  • शहर के दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित जलाशय दक्षिण-पश्चिम मानसून के समय गुणवत्तापूर्ण हवा प्रदान करते हैं। उन क्षेत्रों में किसी भी प्रकार का प्रदूषण हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करेगा।
  • जुड़वांँ जलाशयों और पूरे क्षेत्र के बीच मुरुगावनी राष्ट्रीय उद्यान शहर के लिये गर्मी अवशोषण इकाई के रूप में कार्य करते हैं, अगर यहाँ कंक्रीट कार्य करने की अनुमति दी जाती है, तो शहर अर्बन हीट आइलैंड में परिवर्तित हो जाएगा।

कृष्णा नदी:

  • स्रोत: इसका उद्गम महाराष्ट्र में महाबलेश्वर (सतारा) के निकट होता है। यह गोदावरी नदी के बाद प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है।
  • ड्रेनेज: यह बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले चार राज्यों- महाराष्ट्र (303 किमी), उत्तरी कर्नाटक (480 किमी) और शेष 1300 किमी तेलंगाना व आंध्र प्रदेश में प्रवाहित होती है।
  • सहायक नदियाँ: तुंगभद्रा, मल्लप्रभा, कोयना, भीमा, घटप्रभा, येरला, वर्ना, डिंडी, मुसी और दूधगंगा।

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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस