ग्लोबल विंड रिपोर्ट 2025 | 03 May 2025

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लोबल विंड रिपोर्ट, पेरिस समझौता, ऑफशोर विंड, COP28, साइबर सुरक्षा, ई-अपशिष्ट, ग्रीन बॉण्ड, कार्बन क्रेडिट, PLI योजना, ग्रीन हाइड्रोजन

मेन्स के लिये:

भारत और विश्व स्तर पर पवन ऊर्जा उत्पादन की वर्तमान स्थिति, संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

वैश्विक पवन ऊर्जा परिषद (GWEC) की ग्लोबल विंड रिपोर्ट 2025 में चेतावनी दी गई है कि अनुमानित पवन क्षमता द्वारा वर्ष 2030 के लक्ष्यों में से केवल 77% की ही पूर्ति हो पाएगी, जिससे तापमान को 2°C (अधिमानतः 1.5°C) से नीचे तक सीमित रखने के नेट-जीरो एवं पेरिस समझौते संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने में बाधा आएगी।

ग्लोबल विंड रिपोर्ट 2025 के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • पवन ऊर्जा क्षमता: वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर 117 गीगावाट की नवीन पवन ऊर्जा क्षमता शामिल हुई जो वर्ष 2023 के 116.6 गीगावाट से थोड़ी अधिक है। इसके साथ ही कुल वैश्विक क्षमता 1,136 गीगावाट हो गई।
  • क्षेत्रीय प्रदर्शन: वर्ष 2024 में चीन वैश्विक पवन ऊर्जा बाज़ार में अग्रणी रहा जिसका नवीन ऊर्जा क्षमता में 70% का योगदान रहा। इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राज़ील, भारत और जर्मनी इसके अन्य शीर्ष बाज़ार हैं।
    • उज़्बेकिस्तान, मिस्र और सऊदी अरब ने इस संदर्भ में काफी सफलता प्राप्त की है क्योंकि वर्ष 2024 में अफ्रीका और मध्य पूर्व में तटीय पवन ऊर्जा क्षमता पिछले वर्षों की तुलना में दोगुनी हो गई है।
    • वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर केवल 8 गीगावाट की अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित की गई, जो वर्ष 2023 से 26% की गिरावट का प्रतीक है। 
  • चुनौतियाँ:
    • नीतिगत एवं विनियामक मुद्दे: प्रमुख बाज़ारों में अस्थिरता, परियोजना अनुमति में देरी।
    • बुनियादी ढाँचे का अभाव: ग्रिड उन्नयन में कम निवेश।
    • वित्तीय और बाज़ार दबाव: मुद्रास्फीति और उच्च ब्याज दरें, व्यापार संरक्षणवाद और अप्रभावी नवीकरणीय ऊर्जा नीलामी प्रणाली 
  • विस्तार की आवश्यकता: दुबई में आयोजित COP28 में, देशों ने वर्ष 2030 तक नवीकरणीय क्षमता को तीन गुना करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की, जिसमें पवन ऊर्जा संयंत्रों में प्रतिवर्ष 320 गीगावाट की क्षमता स्थापित करना शामिल है।
    • इस विस्तार की आवश्यकता के बिना, तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखने के प्रयास विफल हो सकते हैं, जिसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।

भारत में पवन ऊर्जा की स्थिति क्या है?

  • कुल पवन ऊर्जा क्षमता: 31 मार्च 2025 तक, भारत ने 50.04 गीगावाट की संचयी संस्थापित पवन ऊर्जा क्षमता हासिल कर ली है। 
    • वित्त वर्ष 2024-25 में, भारत ने पवन ऊर्जा क्षमता में 4.15 गीगावाट की वृद्धि की, जो वित्त वर्ष 2023-24 में 3.25 गीगावाट थी।
  • वैश्विक स्थिति: कुल संस्थापित पवन ऊर्जा क्षमता की दृष्टि से भारत विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है, जिससे ऊपर केवल चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी हैं।
  • राज्यवार वितरण: वर्ष 2025 तक, भारत में शीर्ष पवन ऊर्जा उत्पादक राज्य गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु हैं।
  • घरेलू विनिर्माण क्षमता: भारत में पवन टरबाइन विनिर्माण उद्योग की स्थिति सुदृढ़ है जिसकी वार्षिक उत्पादन क्षमता लगभग 18,000 मेगावाट है।
  • अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता: राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के अनुसार गुजरात की 36 गीगावाट तथा तमिलनाडु की लगभग 35 गीगावाट अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता है।

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भारत में पवन ऊर्जा उत्पादन संबंधी क्या चुनौतियाँ हैं?

  • भूमि अधिग्रहण की जटिलताएँ: प्रत्येक पवन टरबाइन हेतु 150 मीटर व्यास से अधिक बड़े रोटरों के लिये 7-8 एकड़ भूमि की आवश्यकता होती है, तथा कृषि भूमि से गैर-कृषि भूमि में भूमि उपयोग के क्रमिक रूपांतरण के कारण बृहद स्तर की परियोजनाओं में विलंब होता है।
  • गैर-आधुनिकीकृत ग्रिड: राजस्थान, गुजरात और तटीय तमिलनाडु में उच्च क्षमता वाले पवन ऊर्जा स्थलों में ट्रांसमिशन बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जिससे मांग केंद्रों से दूरी होने के कारण ऊर्जा लागत बढ़ जाती है।
  • नीतिगत असंगतताएँ: त्वरित मूल्यह्रास और उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन जैसे प्रोत्साहनों का समापन किये जाने से अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।
    • टैरिफ, विद्युत् खरीद समझौतों और अनुमोदन के संबंध में राज्यों की नीतियों में भिन्नता होने से विकास एकसमान नहीं होता।
    • पवन ऊर्जा परियोजनाओं ( टरबाइन, अवस्थापना और ग्रिड कनेक्शन) की प्रारंभिक लागत काफी अधिक होती है और छोटे डेवलपर्स को प्रायः वित्तपोषण प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
  • आपूर्ति शृंखला चुनौतियाँ: यद्यपि भारत में टावरों के लिये 5,200 मेगावाट तथा गियरबॉक्सों के लिये 8,000 मेगावाट की घरेलू विनिर्माण क्षमता है, फिर भी ब्लेड की उपलब्धता चिंता का विषय बनी हुई है, जिसके कारण बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ता है।
    • विशेष रूप से चीन से आयातित घटकों पर निर्भरता, आपूर्ति शृंखला स्थिरता और साइबर सुरक्षा के बारे में चिंता पैदा करती है।
  • ई-अपशिष्ट समस्या: नियंत्रण प्रणाली, इनवर्टर और बैटरी जैसे पुराने घटकों का निपटान सीसा, कैडमियम और पारा जैसी हानिकारक सामग्रियों के कारण चुनौतीपूर्ण है। 
    • मिश्रित सामग्रियों से बने पवन टरबाइन ब्लेड पुनर्चक्रण को और जटिल बनाते हैं तथा ई-अपशिष्ट की समस्या में योगदान देते हैं।

भारत में पवन ऊर्जा उत्पादन को कैसे मज़बूत किया जाए?

  • नीतिगत ढाँचे को मज़बूत करना: भूमि अधिग्रहण को सरल बनाकर मंजूरी में तेज़ी लाना, एक समान राष्ट्रीय पवन नीति लागू करना, तथा उच्च क्षमता वाले टरबाइनों के साथ पुराने पवन फार्मों को पुनः सशक्त बनाना।
  • भूमि बैंक हेतु प्रावधान: भूमि बैंक पूर्व-सुरक्षित, संघर्ष-मुक्त भूमि को सुरक्षित करता है, विलंब को कम करता है, स्पष्ट स्वामित्व सुनिश्चित करता है, और लागत को कम करते हुए और निवेशकों के विश्वास को बढ़ाते हुए नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को गति प्रदान करता है।
  • अपतटीय पवन ऊर्जा की क्षमता को बढ़ावा देना: अपतटीय पवन प्रौद्योगिकी में अग्रणी डेनमार्क और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों के साथ सहयोग करके अपतटीय टरबाइन स्थापना में तेज़ी लाना।
    • एक परियोजना जो पवन और ज्वारीय ऊर्जा दोनों को जोड़ती है, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को अनुकूलित कर सकती है और विश्वसनीयता बढ़ा सकती है।
  • हाइब्रिड पवन-सौर परियोजनाएँ: हाइब्रिड सेटअप में पवन और सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के संयोजन से भूमि का बेहतर उपयोग और अधिक स्थिर विद्युत् उत्पादन संभव हो पाता है।
  • वित्तीय एवं बाज़ार नवाचार: पवन ऊर्जा से उत्सर्जन में कमी लाने के लिये ग्रीन बॉण्ड के माध्यम से वित्तपोषण को बढ़ावा देना तथा कार्बन क्रेडिट तंत्र का लाभ उठाना।
  • घरेलू निर्माण: पवन ऊर्जा उपकरणों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिये ब्लेड, टावर और गियरबॉक्स जैसी प्रमुख घटकों के स्थानीय निर्माण हेतु एक उत्पादन-से-जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना शुरू की जाए। साथ ही, अपतटीय पवन ऊर्जा एवं ऑपरेशंस और मेंटेनेंस (O&M) से जुड़ी भूमिकाओं के लिये कार्यबल को प्रशिक्षित करने हेतु कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश किया जाए
  • उभरती तकनीकों पर ध्यान केंद्रित करना: गहरे समुद्र में पवन ऊर्जा की संभावनाओं का दोहन करने के लिये फ्लोटिंग विंड टरबाइनों की संभावनाओं का अन्वेषण किया जाए और हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के लिये अतिरिक्त पवन ऊर्जा का उपयोग कर हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलिसिस को प्रोत्साहित किया जाए।

निष्कर्ष:

भारत का पवन ऊर्जा क्षेत्र उल्लेखनीय प्रगति दिखा रहा है, लेकिन इसे भूमि अधिग्रहण, बुनियादी ढाँचे की कमी, नीति में असंगति, और ई-कचरे जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये भारत को आवश्यक है कि वह अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता को तेजी से बढ़ाए, घरेलू निर्माण को सुदृढ़ करे, हाइब्रिड परियोजनाओं को बढ़ावा दे तथा फ्लोटिंग टरबाइनों तथा ग्रीन हाइड्रोजन एकीकरण जैसी नवाचारात्मक तकनीकों में निवेश करे।

दृष्टि मेन्स अभ्यास प्रश्न:

 प्रश्न: भारत के पवन ऊर्जा क्षेत्र के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और देश के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये उन पर नियंत्रण पाने के उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. “मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” यह पहल किसके द्वारा शुरू की गई थी? (2018) 

(a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल
(b) UNEP सचिवालय
(c) UNFCCC सचिवालय
(d) विश्व मौसम विज्ञान संगठन

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  1. "मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ", UNFCCC सचिवालय द्वारा वर्ष 2015 में शुरू की गई एक पहल है।
  2. जलवायु तटस्थता के उद्देश्य के साथ यह पहल ‘मोमेंटम फॉर चेंज’ के तहत काफी महत्त्वपूर्ण है।
  3. जलवायु तटस्थता प्राप्त करने के लिये, लोगों, व्यवसायों और सरकारों को पहले अपने कार्बन फुटप्रिंट का आकलन करने की आवश्यकता है और फिर संयुक्त राष्ट्र-प्रमाणित उत्सर्जन कटौती के माध्यम से क्षतिपूर्ति करते हुए जितना संभव हो, उतना उत्सर्जन में कटौती करनी चाहिये।

अतः विकल्प (c) सही है।


प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC की बैठक में समझौते के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (वर्ष 2016)

  1. समझौते पर संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे और यह वर्ष 2017 में लागू होगा।
  2.  समझौते का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करना है ताकि इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2ºC या 1.5ºC से भी अधिक न हो।
  3.  विकसित देशों ने ग्लोबल वार्मिंग में अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकार किया और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिये 2020 से सालाना 1000 अरब डॉलर दान करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) केवल 1 और 3
(B) केवल 2
(C) केवल 2 और 3
(D) 1, 2 और 3

 उत्तर: (B)


प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021)