वायु प्रदुषण के संबंध में वैश्विक अध्ययन में विसंगतियाँ: सीपीसीबी | 28 Feb 2017

समाचारों में क्यों?

विदित हो कि हाल ही में विभिन्न वैश्विक रिपोर्टों में भारत में वायु प्रदुषण के बढ़ते स्तर को चिंताजनक बताया गया था। कुछ रिपोर्ट्स में तो यह दिखाया गया कि वायु प्रदुषण के मामले में भारत ने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। लेकिन केन्द्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने वायु प्रदुषण से संबंधित आँकड़ों को भ्रामक और विसंगतियों से युक्त करार दिया है।

क्यों भ्रामक हैं वैश्विक रिपोर्ट? 

  • गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2016 की अपनी वैश्विक रिपोर्ट में कहा था कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 10 भारत में अवस्थित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि इन शहरों के वायु में दैनिक स्तर पर पीएम 2.5 कणों की औसत मात्रा 60 एमजी/घनमीटर से अधिक है वहीं वार्षिक स्तर पर पीएम 2.5 कणों की औसत मात्रा 40 एमजी/घनमीटर से अधिक है।
  • सीपीसीबी का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत सरकार के वेबसाइट पर उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है और जिन 124 शहरों का निरिक्षण किया गया है उनमें से केवल 8 शहरों के ही पीएम 2.5 कणों का आँकड़ा सरकार की वेबसाइट पर दिया गया है। अन्य शहरों के पीएम 2.5 के बारे में पीएम 10 के आधार पर अंदाज़ा लगाया गया है जो कि तर्कसंगत नहीं है. अतः यह रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं है। गौरतलब है कि पीएम 2.5 और पीएम 10 को पार्टिकुलेट मैटर कहते हैं।

क्या होते हैं पार्टिकुलेट मैटर?

  • पीएम-1.0:- इसका आकार एक माइक्रोमीटर से कम होता है। यह छोटे पार्टिकल बहुत खतरनाक होते हैं। इसके कण साँस के द्वारा शरीर के अंदर पहुँचकर रक्तकणिकाओं में मिल जाते हैं। इसे पर्टिकुलेट सैंपलर से मापा जाता है।
  • पीएम-2.5:- इसका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है। यह आसानी से साँस के साथ शरीर के अंदर जाकर गले में खराश, फेफड़ों को नुकसान, जकड़न पैदा करते हैं। इन्हें एम्बियंट फाइन डस्ट सैंपलर पीएम-2.5 से मापते हैं।
  • पीएम-10:- रिसपाइरेबल पर्टिकुलेट मैटर का आकार 10 माइक्रोमीटर से कम होता है। यह भी शरीर के अंदर पहुँचकर बहुत सारी बीमारियाँ फैलाते हैं। इसका मापन रिसपाइरेबिल डस्ट सैंपलर पीएम-10 उपकरण से किया जाता है।