ग्लोबल चाइल्डहुड रिपोर्ट 2019 और भारत | 10 Jun 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सेव द चिल्ड्रेन (Save the Children) नामक गैर सरकारी संस्था (Global Non-Profit Organisation) ने ग्लोबल चाइल्डहुड रिपोर्ट (Global Childhood Report) जारी की है जिसमें वैश्विक स्तर पर बाल अधिकारों की स्थिति का मूल्यांकन करते हुए इस संबंध में उचित कदम उठाने की वकालत की गई है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • जारी रिपोर्ट का उद्देश्य संपूर्ण विश्व में बच्चों के लिये सुरक्षित और भय-मुक्त वातावरण का निर्माण कर उनके बाल-अधिकारों की रक्षा करना है।
  • जारी रिपोर्ट के अनुसार 176 देशों की सूची में भारत 113वें स्थान पर रहा। भारत की स्थिति में लगातार सुधार जारी है लेकिन अभी भी बालिकाओं की स्थिति में सुधार हेतु बहुत कुछ किया जाना शेष है।
  • वर्ल्ड चाइल्डहुड रिपोर्ट विभिन्न देशों के बच्चों और किशोरों (0-19 वर्ष) की स्थिति का मूल्यांकन आठ संकेतकों के आधार पर करती है जो इस प्रकार हैं-
    • पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर
    • कुपोषण
    • अशिक्षा
    • बाल श्रम
    • बाल विवाह
    • किशोर अवस्था में बच्चों का जन्म
    • बाल हत्या
    • विस्थापन
  • वर्ष 2000 और वर्ष 2019 के मध्य भारत ने अपने स्कोर अर्थात् अपने प्रदर्शन में सुधार किया। इस अवधि के दौरान भारत ने निर्धारित स्कोर (1000 के कुल मूल्यांकन स्कोर) को 632 से बढ़ाकर 769 कर लिया।
  • वर्ष 2018 में भारत ने अपनी रैंकिंग में सुधार दर्ज़ करते हुए 172 देशों की सूची में 116वाँ रैंक प्राप्त किया था।
  • वर्ष 2000 में दुनिया भर में अनुमानित 970 मिलियन बच्चे कथित आठ संकेतकों के कारण अपने बाल अधिकारों से वंचित थे।
  • वर्ष 2019 में कथित संस्था द्वारा रेखांकित समस्याओं में 29% की गिरावट हुई जिसके कारण बाल-अधिकारों से पीड़ित बच्चों की संख्या 690 मिलियन पर सिमट गई।
  • वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, सार्वजनिक निवेश में वृद्धि और वैश्विक स्तर पर हाशिये पर पड़े बच्चों हेतु स्वास्थ्य सेवा तथा शिक्षा सुनिश्चित करने के लिये लक्षित कार्यक्रमों के माध्यम से हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, बाल अधिकारों से संबंधित संवेदनशील मुद्दों को लेकर विभिन्न देशों की सरकारों को न्यूनतम वित्तीय सुरक्षा के एजेंडे को अपनाने की ज़रूरत है।
  • रिपोर्ट में इस बात की ओर भी संकेत किया गया है कि बाल गरीबी को कम करने अथवा खत्म करने हेतु एक राष्ट्रीय कार्ययोजना की ज़रूरत के साथ ही इन योजनाओं की सफलता को मापने हेतु बजट एवं एक मज़बूत निगरानी तंत्र के निर्माण की आवश्यकता है। यह कदम गरीबी से होने वाली हानि और बाल सुधारों के बेहतर परिणामों को प्राप्त करने में मदद करेगा।

भारत और बाल स्वास्थ्य

  • भारत में संक्रामक रोगों से पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु हो जाती है।
  • रिपोर्ट के आँकड़ों के अनुसार, भारत ने पिछले दो दशकों में बाल मृत्यु दर में 55% की कमी की है।
  • भारत में संक्रामक रोगों को बाल मृत्यु के लिये सर्वाधिक ज़िम्मेदार तत्त्व माना गया है, इसके बाद चोटों, मस्तिष्क ज्वर, खसरा और मलेरिया को शामिल किया गया है।
  • बाल मृत्यु दर के मामले में भारत का प्रदर्शन केवल पाकिस्तान (74.9%) से बेहतर पाया गया। इस संबंध में भारत अपने अन्य पड़ोसी देशों जैसे- श्रीलंका, चीन, भूटान, नेपाल और बांग्लादेश से पीछे रहा।
  • वर्ष 2000 से वर्ष 2019 के बीच वैश्विक स्तर पर नाटे कद के बच्चों की संख्या में 25% की कमी का ट्रेंड देखा गया, इस गिरावट को पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में देखा गया। रिपोर्ट के अनुसार, 50% से अधिक की गिरावट अकेले चीन और भारत में पाई गई।
  • रिपोर्ट में दिये गए आँकड़ों के अनुसार, अपने बच्चों को मुफ्त सार्वभौमिक शिक्षा देने के बावजूद, 20.2% (8-16 वर्ष की आयु वाले) बच्चे अभी तक स्कूल जाने के अपने अधिकार से वंचित हैं। इस संबंध में अपने पड़ोसियों की तुलना में भारत केवल पाकिस्तान (40.8%) से बेहतर स्थिति में है जबकि श्रीलंका (6.4%), नेपाल (13.8%), बांग्लादेश (17.4%), भूटान (19.1%) और चीन (7.6%) ने भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है।
  • वर्ष 1978 में भारत ने लड़कियों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 15 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष और लड़कों के लिये 18 वर्ष से बढ़ाकर वर्ष 21 कर दी थी। पिछले दो दशकों में भारत ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 जैसे कानूनों के माध्यम से बाल विवाह पर अंकुश लगाने का कार्य किया है और किशोरियों के सश्क्त्तीकरण के लिये विभिन्न योजनाओं जैसे- किशोरी शक्ति योजना (सबला) और किशोरियों के लिये पोषण कार्यक्रम का संचालन भी किया है।
  • वर्तमान में भारत में प्रत्येक पाँच में से 1 बच्चा अभी भी स्कूली शिक्षा से वंचित है।
  • रिपोर्ट में इस गिरावट का कारण कमजोर आर्थिक विकास, लड़कियों की शिक्षा की बढ़ती दरों और सरकार द्वारा सक्रिय निवेश को ज़िम्मेदार ठहराया है।
  • इसके अतिरिक्त नारी हेतु परामर्श, यौन, प्रजनन और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी, व्यावसायिक प्रशिक्षण सश्क्त्तीकरण और लड़कियों के लिये जीवन-कौशल विकास भी इस गिरावट के महत्त्वपूर्ण कारक रहे हैं।
  • रिपोर्ट में बालिकाओं को शिक्षित करने के लिये सशर्त नकद हस्तांतरण जैसी योजनाओं को बाल विवाह कम करने में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के तौर पर रेखांकित किया गया है।
  • भारत ने वर्ष 2000 के बाद से किशोर उम्र में बच्चों को जन्म देने की दर में 63% तक की कमी कर एक बड़ी कामयाबी को प्राप्त किया है। परिणामस्वरूप वर्तमान में भारत में 2 मिलियन से कम युवा माताएँ हैं।
  • भारत ने वर्ष 2000 से वर्ष 2018 के मध्य बाल विवाह में अप्रत्याशित सफलता दर्ज़ करते हुए 51% की कमी को हासिल किया।

सेव द चिल्ड्रेन संस्था

  • वर्ष 1919 में स्थापित सेव द चिल्ड्रेन संस्था अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है।
  • यह संस्था बाल अधिकारों के प्रति प्रतिबद्ध है।
  • कथित संस्था प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवन जीने को मजबूर बच्चों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, ज़रूरी स्वास्थ्य सुविधाएँ और बाल अपराध के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने हेतु भारत के सुदूर ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में कार्यक्रम संचालित करती है।
  • वर्ष 2008 से भारत में अपने कार्य की शुरुआत करते हुए इस संस्था ने दिसम्बर 2018 तक , भारत के 19 राज्यों में अपनी पहुँच बनाते हुए तक़रीबन 12.03 लाख बच्चों के जीवन में बदलाव को रेखांकित किया
  • वर्तमान में सेव द चिल्ड्रेन संस्था 80 से अधिक देशों के उन क्षेत्रों के लिये अपनी सेवाएँ दे रही है जहाँ पर बच्चे सर्वाधिक दयनीय व अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करने के लिये मजबूर हैं।

स्रोत: बिजनेस स्टैंडर्ड, सेव द चिल्ड्रेन