जलवायु परिवर्तन एवं सिकुड़ते ग्लेशियर | 16 Sep 2017

चर्चा में क्यों?

वैश्विक तापन के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों के संबंध में अध्ययन करने वाले शोधकर्त्ताओं द्वारा ऐसी संभावना व्यक्त की गई है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2100 तक एशियाई हिमनदों में तकरीबन एक तिहाई की कमी हो सकती है। स्पष्ट रूप से इससे पानी पर सभी प्रकार की गतिविधियाँ जैसे- पीने का पानी, सिंचाई तथा जल विद्युत परियोजनाएँ सबसे अधिक प्रभावित होगी।

प्रमुख बिंदु

  • शोधकर्त्ताओं की यह भविष्यवाणी उस अवधारणा पर आधारित है जिसमें वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा यह अनुमान व्यक्त किया गया हुई कि पूर्व की तुलना में इस सदी के अंत तक पृथ्वी बहुत अधिक गरम हो जाएगी।
  • औद्योगिक युग के बाद से अभी तक हम पहले ही पृथ्वी को काफी गर्म कर चुके है, जिसके कारण ग्लेशियरों में असंतुलन की स्थिति बन गई है।
  • हालाँकि दुनियाभर में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर अभिआन चल रहे है तथापि यहाँ यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि यदि हम अज से ही जलवायु को और अधिक गरम करन बंद भी कर देते है तो भी समस्त विश्व की कम से कम 14 प्रतिशत बर्फ का नष्ट होना तय है।
  • पेरिस जलवायु समझौते के तहत, विश्व के कई देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन में  कमी करने के संबंध में न केवल प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है बल्कि इस संबंध में कार्यवाही भी आरंभ कर दी है।
  • लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि 90 प्रतिशत संभावना है कि पेरिस जलवायु समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जा सकेगा क्योंकि विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization) के मुताबिक, मौजूदा तापमान पहले से पूर्व- औद्योगिक समय से 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक है।
  • एशिया में एक अरब से ज्यादा लोग यांग्त्ज़ी, गंगा और मेकांग जैसी नदियों पर निर्भर हैं, इनमें जल का मुख्य स्रोत हिमालय के ग्लेशियर है।
  • हिमपात खेतों और चरागाहों को नमी प्रदान करते हुए नदियों और धाराओं में पिघल जाते है जो कि इन नदियों में जल की उपलब्धता का मुख्य माध्यम होते है। 
  • यदि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए सीमित प्रयास किये जाते हैं और विश्व के तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाती है, तो वर्ष 2100 तक दो-तिहाई तक ग्लेशियर कम हो जाएंगे।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग में प्रत्येक डिग्री की कमी एशियाई ग्लेशियरों की 7 प्रतिशत बर्फ को पिघलने से बचा सकती है
  • ध्यातव्य है कि पूरी पृथ्वी की तुलना में एशियाई ग्लेशियर न केवल वैश्विक तापन से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे है।