पाकिस्तानी बासमती को मिला GI टैग | 30 Jan 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तान ने बासमती (Basmati) चावल को अपने भौगोलिक संकेतक अधिनियम, 2020 के तहत भौगोलिक संकेत (Geographical Indication- GI) का टैग दिया है।

  • पाकिस्तान, यूरोपीय संघ (European Union- EU) से बासमती चावल को अपने उत्पाद के रूप मान्यता प्राप्त करने के लिये भारत के खिलाफ मुकदमा लड़ रहा है।

प्रमुख बिंदु

बासमती चावल पर भारत-पाकिस्तान:

  • पाकिस्तान द्वारा यह कदम भारत के उस आवेदन के बाद उठाया गया है, जिसमें भारत ने यूरोपियन यूनियन से पाकिस्तान से अलग अपने बासमती के लिये विशेष जीआई टैग की माँग की गई थी।
    • भारत का दावा है कि बासमती चावल का उत्पादन करने वाला क्षेत्र हिमालय की तलहटी वाला गंगा का मैदान उत्तरी भारत का एक हिस्सा है।
    • इस भारतीय दावे को दिसंबर 2019 में पाकिस्तान द्वारा यूरोपीय संघ में चुनौती दी गई थी। पाकिस्तान का तर्क था कि बासमती चावल भारत और पाकिस्तान का संयुक्त उत्पाद है।
  • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में किसी भी उत्पाद के पंजीकरण के लिये आवेदन करने से पहले उस उत्पाद को संबंधित देश के भौगोलिक संकेत कानूनों के तहत संरक्षित होना चाहिये।
    • पाकिस्तान ने  मार्च 2020 में बासमती चावल पर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में एकाधिकार प्राप्त करने और EU में भारतीय आवेदन का विरोध करने के लिये भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम बनाया।

पाकिस्तान के जीआई टैग का महत्त्व:

  • पाकिस्तान के बासमती चावल को जीआई टैग दिए जाने से यूरोपीय संघ में पाकिस्तान के दावे को मज़बूती मिलेगी।
    • पाकिस्तान द्वारा दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सालाना 5,00,000-7,00,000 टन बासमती चावल का निर्यात किया जाता है, जिसमें से 2,00,000 टन से 2,50,000 टन यूरोपीय संघ के देशों को भेजा जाता है।

भारत पर प्रभाव:

  • बासमती चावल भारत और पाकिस्तान की संयुक्त विरासत है। अतः भारत की तरह पाकिस्तान को भी अपने बासमती चावल के व्यापार को सुरक्षित करने का हक है।
  • पाकिस्तान सिर्फ अपने बासमती चावल के लिये जीआई टैग हासिल करना चाहता है, इसका भारत के बासमती निर्यात पर  किसी भी तरह का प्रभाव नहीं पड़ेगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में बासमती चावल की अधिक कीमत है। इसलिये भारत ने  यूरोपीय संघ में यह कहते हुए पाकिस्तान का विरोध किया कि बासमती चावल भौगोलिक रूप से भारतीय मूल का है।

भारत में बासमती चावल को जीआई टैग:

  • भारत को बासमती चावल के उत्पादन में बढ़त प्राप्त है। इसे भारत में हिमालय की तलहटी (Indo-Gangetic Plain) और पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में लंबे समय से उगाया जाता रहा है।
    • यह भारत के लिये कठिन लड़ाई थी कि वह बासमती नाम को विभिन्न राष्ट्रों के अतिक्रमण से बचाए रखे क्योंकि इस चावल को कई देश दूसरे नाम से प्रस्तुत कर रहे थे।
  • हिमालय की तलहटी पर IGP में स्थित क्षेत्र के लिये कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority- APEDA) ने GI टैग प्राप्त किया। यह क्षेत्र सात राज्यों (हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली) में फैला हुआ है।
  • GI टैग देने का कारण: 
    • बासमती को लंबा और सुगंधित चावल के रूप में जाना जाता हैI GP क्षेत्र में सुगंधित चावल के साक्ष्य यहाँ की लोक कथाओं, वैज्ञानिक और रसोई संबंधी साहित्यों तथा राजनीतिक-ऐतिहासिक अभिलेखों में पाए जाते हैं।
    • बासमती की देहरादूनी, अमृतसर और तरावरी कुछ ऐसी किस्में हैं जो सैकड़ों वर्षों से प्रसिद्ध हैं।

जीआई टैग

  • भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है।  
  • इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है।
  • इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है।  
  • जीआई टैग को औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन (Paris Convention for the Protection of Industrial Property) के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर GI का विनियमन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) पर समझौते के तहत किया जाता है। 
  • वहीं राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 (Geographical Indications of goods ‘Registration and Protection’ act, 1999) के तहत किया जाता है, जो सितंबर 2003 से लागू हुआ।
  • वर्ष 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ जीआई टैग प्राप्त करने वाला पहला भारतीय उत्पाद है। भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष के लिये मान्य होता है।
  • महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर की ब्लू पॉटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डू तथा मध्य प्रदेश के झाबुआ का कड़कनाथ मुर्गा सहित कई उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है।  
  • जीआई टैग किसी उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी अलग पहचान का सबूत है। कांगड़ा की पेंटिंग, नागपुर का संतरा और कश्मीर का पश्मीना भी जीआई पहचान वाले उत्पाद हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ