अहोम साम्राज्य के सेनापति लाचित बोड़फुकन | 23 Nov 2022
चर्चा में क्यों?
असम के प्रसिद्ध युद्ध नायक लाचित बोड़फुकन की 400वीं जयंती 23 से 25 नवंबर, 2022 तक नई दिल्ली में मनाई जाएगी।
लाचित बोड़फुकन:
- लाचित बोड़फुकन का जन्म 24 नवंबर, 1622 को हुआ था। उन्होंने वर्ष 1671 में हुए सराईघाट के युद्ध (Battle of Saraighat) में अपनी सेना का प्रभावी नेतृत्त्व किया, जिससे मुगल सेना का असम पर कब्ज़ा करने का प्रयास विफल हो गया था।
 - उनके प्रयासों से भारतीय नौसैनिक शक्ति को मज़बूत करने, अंतर्देशीय जल परिवहन को पुनर्जीवित करने और नौसेना की रणनीति से जुड़े बुनियादी ढाँचे के निर्माण की प्रेरणा मिली।
 - राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Academy) के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लाचित बोड़फुकन स्वर्ण पदक प्रदान किया जाता है।
- इस पदक को वर्ष 1999 में रक्षाकर्मियों हेतु बोड़फुकन की वीरता से प्रेरणा लेने और उनके बलिदान का अनुसरण करने के लिये स्थापित किया गया था।
 
 - 25 अप्रैल, 1672 को उनका निधन हो गया।
 
अहोम साम्राज्य:
- परिचय:
- असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में वर्ष 1228 में स्थापित अहोम साम्राज्य ने 600 वर्षों तक अपनी संप्रभुता बनाए रखी।
 - साम्राज्य की स्थापना 13वीं शताब्दी के शासक चाओलुंग सुकफा ने की थी।
 - यंदाबू की संधि पर हस्ताक्षर के साथ वर्ष 1826 में प्रांत को ब्रिटिश भारत में शामिल किये जाने तक इस भूमि पर अहोमों ने शासन किया।
 - अपनी बहादुरी के लिये विख्यात अहोम शक्तिशाली मुगल साम्राज्य के आगे नहीं झुके।
 
 - राजनीतिक व्यवस्था:
- अहोमों ने भुइयाँ (ज़मींदारों) की पुरानी राजनीतिक व्यवस्था को समाप्त करके एक नए राज्य का निर्माण किया।
 - अहोम राज्य बंधुआ मज़दूरी/बलात॒ श्रम (Forced Labour) पर निर्भर था। राज्य के लिये इस प्रकार की मज़दूरी करने वालों को पाइक (Paik) कहा जाता था।
 
 - समाज:
- अहोम समाज को कुल/खेल (Clan/Khel) में विभाजित किया गया था। एक कुल/खेल का सामान्यतः कई गाँवों पर नियंत्रण होता था।
 - अहोम साम्राज्य के लोग अपने स्वयं के आदिवासी देवताओं की पूजा करते थे, फिर भी उन्होंने हिंदू धर्म और असमिया भाषा को स्वीकार किया।
- हालाँकि अहोम राजाओं ने हिंदू धर्म अपनाने के बाद अपनी पारंपरिक मान्यताओं को पूरी तरह से नहीं छोड़ा।
 
 - अहोम लोगों का स्थानीय लोगों के साथ विवाह के चलते उनमें असमिया संस्कृति को आत्मसात करने की प्रवृत्ति देखी गई।
 
 - कला और संस्कृति:
- अहोम राजाओं ने कवियों और विद्वानों को भूमि अनुदान दिया तथा रंगमंच को प्रोत्साहित किया।
 - संस्कृत के महत्त्वपूर्ण कृतियों का स्थानीय भाषा में अनुवाद किया गया।
 - बुरंजी (Buranjis) नामक ऐतिहासिक कृतियों को पहले अहोम भाषा में फिर असमिया भाषा में लिखा गया।
 
 - सैन्य रणनीति:
- अहोम राजा राज्य की सेना का सर्वोच्च सेनापति भी होता था। युद्ध के समय सेना का नेतृत्त्व राजा स्वयं करता था और पाइक राज्य की मुख्य सेना थी।
- पाइक दो प्रकार के होते थे: सेवारत और गैर-सेवारत। गैर-सेवारत पाइकों ने एक स्थायी सहायक सेना (Militia) का गठन किया, जिन्हें खेलदार (Kheldar- सैन्य आयोजक) द्वारा थोड़े ही समय में संगठित किया जा सकता था।
 
 - अहोम सेना की समग्र टुकड़ी में पैदल सेना, नौसेना, तोपखाने, हाथी, घुड़सवार सेना और जासूस शामिल थे। युद्ध में इस्तेमाल किये जाने वाले मुख्य हथियारों में तलवार, भाला, बंदूक, तोप, धनुष और तीर शामिल थे।
 - अहोम राजा युद्ध अभियानों का नेतृत्त्व करने से पहले शत्रु की युद्ध रणनीतियों को जानने के लिये उनके शिविरों में जासूस भेजते थे।
 - अहोम सैनिकों को गोरिल्ला युद्ध (Guerilla Fighting) में विशेषज्ञता प्राप्त थी। ये सैनिक दुश्मनों को अपने देश की सीमा में प्रवेश करने देते थे, फिर उनके संचार को बाधित कर उन पर सामने और पीछे से हमला कर देते थे।
 - कुछ महत्त्वपूर्ण किले: चमधारा, सराईघाट, सिमलागढ़, कलियाबार, कजली और पांडु।
 - उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी पर नाव का पुल (Boat Bridge) बनाने की तकनीक भी सीखी थी।
 - इन सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि नागरिकों और सैनिकों के बीच आपसी समझ तथा धनाढ्य लोगों के बीच एकता ने हमेशा अहोम राजाओं के लिये मज़बूत हथियारों के रूप में काम किया।
 
 - अहोम राजा राज्य की सेना का सर्वोच्च सेनापति भी होता था। युद्ध के समय सेना का नेतृत्त्व राजा स्वयं करता था और पाइक राज्य की मुख्य सेना थी।