‘फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर’ द्वारा विरोध प्रदर्शन | 26 Sep 2020

प्रिलिम्स के लिये 

‘फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर’,  पर्यावरणीय प्रभाव आकलन मसौदा, 2020

मेन्स के लिये 

विरोध प्रदर्शन के कारण, EIA मसौदा- 2020 के विवादास्पद मुद्दे 

चर्चा में क्यों? 

‘जलवायु न्याय’ (Climate Justice) के उद्देश्य से चलाए जा रहे वैश्विक आंदोलन ‘फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर’ (Fridays For Future-FFF) के बैनर तले छात्रों और युवाओं ने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के बाहर विरोध-प्रदर्शन किया।

प्रमुख बिंदु:

फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर के बारे में   

  • फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर एक वैश्विक ‘जलवायु हड़ताल आंदोलन’ है जो अगस्त, 2018 में 15 वर्षीय ग्रेटा थुनबर्ग द्वारा स्वीडन में हड़ताल प्रारंभ करने के साथ ही शुरू हुआ था। 
  • ग्रेटा थुनबर्ग ने स्वीडिश चुनावों से तीन सप्ताह पहले स्वीडिश संसद के बाहर हड़ताल करना प्रारंभ किया था।
  • ग्रेटा थुनबर्ग की प्रमुख मांग जलवायु संकट पर तत्काल कार्रवाई करने को लेकर थी। यह आंदोलन आगे चलकर एक वैश्विक आंदोलन में परिवर्तित हो गया।
  • इस वैश्विक आंदोलन का मुख्य उद्देश्य नीति-निर्माताओं पर नैतिक दबाव डालना है, जिससे वे पर्यावरण वैज्ञानिकों द्वारा दी जा रही चेतावनियों पर ध्यान दें और ‘ग्लोबल वार्मिंग’ (Global Warming) को सीमित करने के लिये कार्रवाई करें।

विरोध प्रदर्शन के कारण

  • विरोध प्रदर्शनों में प्रदर्शनकारियों द्वारा की गई प्रमुख मांगों में अरावली को बचाना, यमुना के प्रदूषण को रोकने के लिये सीवेज प्रबंधन संयंत्रों में सुधार, नीति-निर्माण में सार्वजनिक भागीदारी और स्कूलों में बेहतर पर्यावरणीय शिक्षा को सम्मिलित करना आदि शामिल हैं।
  • एक प्रदर्शनकारी के अनुसार, ‘आज वैश्विक जलवायु हड़ताल है और इस वर्ष का विषय ‘जलवायु अन्याय से लड़ना’ (To Fight Climate Injustice) है। विरोध प्रदर्शन का मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित लोगों, जैसे- शहरी गरीबों और आदिवासी समुदायों पर ध्यान केंद्रित कर उनकी समस्याओं को उजागर करना है।’ 
  • प्रदर्शनकारी के अनुसार, ‘अगले सप्ताह हम और अन्य युवा संगठन जलवायु संकट से लड़ने की रणनीति के बारे में एक विज़न डॉक्यूमेंट जारी करने की योजना बना रहे हैं।’
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के बाहर विरोध करने का मुख्य कारण सरकार द्वारा कई कानून और नियम पारित करने में सार्वजनिक परामर्शों को शामिल नहीं करना है। इसमें मुख्य रूप से पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन मसौदा- 2020 (Environmental Impact assessment Draft) का विरोध किया गया है।
  • एक अन्य युवा प्रदर्शनकारी के  अनुसार, ‘किसी समस्या को हल करने के लिये सबसे पहले उस समस्या को पहचानना आवश्यक होता है, लेकिन सरकार जलवायु संकट की समस्या को पहचानने में विफल रही है। चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति तेज़ी से बढ़ रही है और सरकार द्वारा इसके लिये पर्याप्त कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA)

  • EIA प्रक्रिया किसी प्रस्तावित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन की एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। यह एक परियोजना, जैसे- खान, सिंचाई, बांध, औद्योगिक इकाई या अपशिष्ट उपचार संयंत्र आदि के संभावित प्रभावों का वैज्ञानिक अनुमान लगाती है। 
  • EIA की प्रक्रिया में किसी भी विकास परियोजना या गतिविधि को अंतिम स्वीकृति देते समय सार्वजनिक परामर्श को ध्यान में रखा जाता है। मूल रूप से यह एक निर्णय लेने वाला उपकरण है जो यह तय करता है कि परियोजना को मंज़ूरी दी जानी चाहिये या नहीं।
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार द्वारा मसौदा अधिसूचना (Draft Notification) जारी की जाती है।
  • सरकार के अनुसार, ऑनलाइन प्रणाली के क्रियान्वयन, तार्किककरण और मानकीकरण द्वारा प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और समीचीन बनाने के लिये नई अधिसूचना लाई जा रही है। 

पृष्ठभूमि

  • पर्यावरण पर स्टॉकहोम घोषणा (1972) के एक हस्ताक्षरकर्ता के रूप में भारत ने जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये शीघ्र ही कानून बनाए। वर्ष 1984 में भोपाल गैस रिसाव आपदा के बाद देश में वर्ष 1986 में पर्यावरण संरक्षण के लिये एक अम्ब्रेला अधिनियम पारित किया गया।
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत, भारत ने वर्ष 1994 में अपने पहले EIA मानदंडों को अधिसूचित किया, जो प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग, उपभोग और प्रदूषण को प्रभावित करने वाली गतिविधियों को विनियमित करने के लिये एक विधिक तंत्र स्थापित करता है। प्रत्येक विकास परियोजना को पहले पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त करने के लिये EIA प्रक्रिया से गुजरना आवश्यक है।

EIA मसौदा- 2020 के विवादास्पद मुद्दे 

  • प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और समीचीन बनाने के उद्देश्य से नयी मसौदा अधिसूचना को जारी किया गया है, लेकिन वास्तव में यह मसौदा कई गतिविधियों को सार्वजनिक परामर्श के दायरे से हटाने का प्रस्ताव करता है।
  • मसौदे में लगभग 40 अलग-अलग परियोजनाओं, जैसे- मिट्टी और रेत का खनन, कुओं की खुदाई, इमारतों का निर्माण, सौर तापीय बिजली संयंत्र और सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्रों आदि को EIA से छूट प्रदान की गई है।
  • कई परियोजनाओं, जैसे सभी बी-2 श्रेणी की परियोजनाएँ, सिंचाई परियोजनाएँ, हैलोजन्स का उत्पादन, रासायनिक उर्वरक, एसिड निर्माण, जैव चिकित्सा, अपशिष्ट उपचार सुविधाएँ, भवन निर्माण और क्षेत्र विकास, एलिवेटेड रोड और फ्लाई ओवर, राजमार्ग या एक्सप्रेस वे आदि को सार्वजनिक परामर्श से छूट दी गई है।
  • बी2 श्रेणी की गतिविधियों, विस्तार और आधुनिकीकरण परियोजनाओं को EIA और सार्वजनिक परामर्श से छूट देने का पर्यावरण पर संभावित गंभीर प्रभाव के कारण EIA मसौदा -2020 का अधिक विरोध किया जा रहा है।
  • जन सुनवाई के लिये नोटिस की अवधि 30 दिन से कम करके 20 दिन कर दी गई है। इससे EIA रिपोर्ट का अध्ययन करना मुश्किल हो जाएगा। यह समस्या तब और भी गंभीर हो सकती है, जब रिपोर्ट क्षेत्रीय भाषा में व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हो। 
  • EIA मसौदा- 2020 उल्लंघन और गैर-अनुपालन स्थिति में जनता द्वारा रिपोर्टिंग को EIA से बाहर रखती है। सरकार केवल उल्लंघनकर्ता-प्रवर्तक, सरकारी प्राधिकरण, मूल्यांकन समिति या नियामक प्राधिकरण से रिपोर्टों का संज्ञान लेगी। फिर ऐसी परियोजनाओं को शर्तों के साथ मंज़ूरी दी जा सकती है, जिसमें पारिस्थितिक क्षति के निवारण के लिये प्रावधान हो। हालाँकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) के दिशा-निर्देशों का पालन करना आवशयक होगा।

बी2 श्रेणी की परियोजनाएँ 

बी2 श्रेणी की परियोजनाओं के अंतर्गत अपतटीय एवं तटीय तेल, प्राकृतिक गैस और शैल गैस की खोज; 25 मेगावाट तक की जलविद्युत परियोजनाएँ; 2,000 से 10,000 हेक्टेयर के बीच की सिंचाई परियोजनाएँ; छोटी और मध्यम खनिज लाभकारी इकाइयाँ; रि-रोलिंग मिल्स की कुछ श्रेणियाँ; छोटे और मध्यम सीमेंट संयंत्र; क्लिंकर पीसने वाली छोटी इकाइयाँ; फॉस्फोरिक/अमोनिया/सल्फ्यूरिक अम्ल के अलावा अन्य अम्ल; थोक दवाएँ; सिंथेटिक रबर; मध्यम आकार की रंग-रोगन इकाइयाँ; सभी अंतर्देशीय जलमार्ग परियोजनाएँ; परिभाषित मापदंडों के साथ 25 किमी से 100 किमी के बीच राजमार्गों का विस्तार; पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में हवाई रोपवे और निर्दिष्ट भवन निर्माण परियोजनाएँ आदि सम्मिलित है।

आगे की राह 

  • पर्यावरणीय मानदंडों में परिवर्तन या पर्यावरणीय नियम-कानून बनाते समय सार्वजनिक परामर्श अवश्य लिया जाना चाहिये।
  • किसी प्रतिकूल पर्यावरणीय परियोजना की स्थापना से स्थानीय वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, साथ ही व्यक्ति की आजीविका को खतरा उत्पन्न हो सकता है, घाटी में बाढ़ आ सकती है और जैव-विविधता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। 
  • सरकार को पर्यावरणविदों के द्वारा रेखांकित की गई चिंताओं पर गंभीरता से विचार करना चाहिये। मानवीय जीवन के गरिमामयी विकास के लिये स्वच्छ पर्यावरण अति आवश्यक है।

स्रोत: द हिंदू