एफ.आर.डी.आई. विधेयक के उद्देश्‍य एवं महत्त्व | 08 Dec 2017

चर्चा में क्यों?

11 अगस्‍त, 2017 को लोकसभा में पेश किया गया वित्तीय समाधान एवं जमा बीमा विधेयक, 2017 (Financial Resolution and Deposit Insurance Bill) अभी संसद की संयुक्‍त समिति के समक्ष विचाराधीन है। संयुक्‍त समिति द्वारा एफ.आर.डी.आई. विधेयक के प्रावधानों के संबंध में विचार-विर्मश किया जा रहा है। 

मुख्य बिंदु

  • एफ.आर.डी.आई. विधेयक के ‘संकट से उबारने’ वाले प्रावधानों के संबंध में कुछ विशेष आशंकाए व्‍यक्‍त की जा रही हैं। 
  • एफ.आर.डी.आई. विधेयक में निहित प्रावधानों से जमाकर्त्ताओं को वर्तमान में मिल रहे संरक्षण में कोई कमी नहीं की गई है, बल्कि इनसे जमाकर्त्ताओं को कहीं ज़्यादा पारदर्शी ढंग से अतिरिक्‍त संरक्षण प्रदान किया गया है।
  • एफ.आर.डी.आई. विधेयक दूसरे न्‍याय-अधिकारों अथवा क्षेत्राधिकारों के मुकाबले कहीं ज्‍यादा अनुकूल है इसके अंतर्गत संकट से उबारने हेतु बहुत से वैधानिक प्रावधानों को शामिल किया गया है, जिसके लिये लेनदारों/जमाकर्त्ताओं की सहमति की आवश्‍यकता नहीं पड़ती है।
  • इसके अतिरिक्त एफ.आर.डी.आई. विधेयक में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों समेत समस्‍त बैंकों को वित्तीय एवं समाधान सहायता देने संबंधी सरकार के अधिकारों को किसी भी रूप में सीमित करने का कोई प्रस्‍ताव नहीं रखा गया है। 
  • वस्तुतः इस विधेयक के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को प्राप्त सरकार की अंतर्निहित गारंटी किसी भी तरह से प्रभावित नहीं हुई है। इस विधेयक के अंतर्गत बैंकिंग प्रणाली की अखण्‍डता, सुरक्षा एवं संरक्षा को सुनिश्चित किया गया है। 
  • भारत में बैंकों को विफल होने से बचाने एवं जमाकर्त्ताओं  के हितों की रक्षा के लिये हरसंभव कदम उठाए जाते हैं तथा नीतिगत उपाय किये जाते हैं, जिनमें आवश्‍यक निर्देश जारी करना/त्‍वरित सुधारात्‍मक कदम उठाना, पूंजीगत पर्याप्‍तता एवं विवेकपूर्ण मानक लागू करना शामिल हैं। 
  • एफ.आर.डी.आई. विधेयक एक व्‍यापक समाधान व्‍यवस्‍था सुनिश्चित करके बैंकिंग प्रणाली को और मज़बूत करेगा। 
  • किसी वित्तीय सेवा प्रदाता के विफल होने की दुर्लभ स्थिति में व्‍यापक समाधान व्‍यवस्‍था के तहत जमाकर्त्ताओं के हितों की रक्षा के लिये एक त्‍वरित, क्रमबद्ध एवं सक्षम समाधान प्रणाली पर अमल किया जाएगा।

एफ.आर.डी.आई. विधेयक, 2017 

  • इस विधेयक के अंतर्गत बैंकों और बीमा जैसे व्यवसायों में दिवालियापन को शामिल किया गया है।  
  • इस विधेयक में वित्तीय रिज़ॉल्यूशन के अंतर्गत पूंजी और परिसंपत्ति मूल्य के आधार पर व्यवहार्यता आधारित 'भौतिक' अथवा 'आसन्न' जोखिम जैसी स्थितियों का सामना कर रहे बैंकों के किये समाधान को भी शामिल किया गया है। 
  • इस विधेयक में ‘बेल-इन’ के प्रावधान का भी परिचय दिया गया है, जिसका उद्देश्य बैंक के नुकसान को अवशोषित करने और इसके अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिये पूंजी प्रदान करना है।  
  • यहाँ यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि यहाँ अस्तित्व का मतलब जमाकर्त्ताओं के पैसे की सुरक्षा नहीं है, बल्कि बैंक की पूंजी को बहाल करना है।  
  • ‘बेल-इन’ का प्रावधान प्रस्तावित संकल्प निगम (Resolution Corporation) को बैंक द्वारा देय दायित्व को रद्द करने या किसी अन्य सुरक्षा के मौजूदा दायित्व के रूप को परिवर्तित करने का भी अधिकार प्रदान करता है। हम सभी जानते हैं कि बचत या फिक्स्ड डिपॉजिट अकाउंट में जमा पैसा बैंक

द्वारा अपने ग्राहक के लिये देय होता है।

  • जब भी ग्राहक द्वारा इस धन की वापसी की मांग की जाती है तब बैंक को ग्राहक को इस देय राशि का भुगतान करना पड़ता है। 
  • चूँकि ग्राहक बैंक को अपना पैसा सौंपते समय बैंक से कोई सुरक्षा नहीं लेता है, तो कानूनी तौर पर ग्राहक बैंक का असुरक्षित लेनदार बन जाता है।  
  • ‘बेल-इन’ के तहत बैंक सरलता से ग्राहक के पैसे का पुनर्भुगतान करने से या तो मना कर देता है या इसके बजाय वरीयता शेयरों यानि परेफरेंस शेयरों  (निश्चित लाभांश की कोई गारंटी नहीं) के रूप में ग्राहक को प्रतिभूतियाँ जारी करता है। 
  • यह सब ग्राहक द्वारा  की गई जमाराशियों के बदले किया जाता है, क्योंकि इन सभी जमाराशियों का बैंक के पुनर्पूंजीकरण के लिये उपयोग किया जाता है। 
  • ध्यान देने वाली बात यह है कि केवल जमाकर्त्ताओं के बकाया धन को इसके तहत ज़ब्त नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह इंश्योरेंस द्वारा कवर की गई डिपाजिट राशि होती है।  
  • ध्यातव्य है कि प्रत्येक जमाकर्त्ता के लिये एक लाख रुपए की जमाराशि को बीमाकृत करने संबंधी जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम अधिनियम (Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation Act), 1961 को कैबिनेट द्वारा निरस्त कर दिया गया है।  
  • एफ.आर.डी.आई. विधेयक के अंतर्गत प्रत्येक जमाकर्त्ता हेतु बीमा राशि तय करने के संबंध में संकल्प निगम को पहले की अपेक्षा और भी अधिक सक्षम बना दिया गया है। 
  • इस प्रकार यह संभव है कि अलग-अलग बैंकों के ग्राहकों के लिये केवल बीमा राशि ही भिन्न नहीं होगी, बल्कि एक ही बैंक के विभिन्न ग्राहकों के लिये भी यह अलग-अलग हो सकती है।