राइस फोर्टिफिकेशन | 17 May 2022

प्रिलिम्स के लिये:

सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया, FSSAI

मेन्स के लिये:

फूड फोर्टिफिकेशन से संबंधित मुद्दे और आगे की राह

चर्चा में क्यों?

हाल के परिणामों के अनुसार, सब्सिडी वाले आयरन-फोर्टिफाइड चावल वितरित करने की केंद्र सरकार की योजना उन आदिवासियों या स्थानीय आबादी को फायदे की बजाय अधिक नुकसान पहुँचा सकती है जो सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया एवं आनुवंशिक बीमारियों से ग्रस्त हैं।

फूड फोर्टिफिकेशन:

  • फोर्टिफिकेशन:
    • फूड फोर्टिफिकेशन या फूड एनरिचमेंट का आशय चावल, दूध और नमक जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों में प्रमुख विटामिन्स और खनिजों (जैसे आयरन, आयोडीन, जिंक, विटामिन A और D) को संलग्न करने की प्रक्रिया से है, ताकि पोषण सामग्री में सुधार लाया जा सके।
    • प्रसंस्करण से पहले ये पोषक तत्त्व मूल रूप से भोजन में मौजूद हो भी सकते हैं और नहीं भी।
  • राइस फोर्टिफिकेशन:
    • खाद्य मंत्रालय के अनुसार, आहार में विटामिन और खनिज सामग्री को बढ़ाने के लिये राइस फोर्टिफिकेशन एक लागत प्रभावी और पूरक रणनीति है। 
      • FSSAI के मानदंडों के अनुसार, 1 किलो फोर्टिफाइड चावल में आयरन (28 mg-42.5 mg), फोलिक एसिड (75-125 माइक्रोग्राम) और विटामिन B-12 (0.75-1.25 माइक्रोग्राम) होगा।
    • इसके अलावा चावल को जिंक, विटामिन ए, विटामिन बी1, विटामिन बी2, विटामिन बी3 और विटामिन बी6 के साथ-साथ सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के साथ अकेले या इनको संयोजित करके भी राइस फोर्टिफिकेशन की प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।

फोर्टिफिकेशन की आवश्यकता:

  • भारत में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण का स्तर बहुत अधिक है। खाद्य मंत्रालय के मुताबिक, देश में हर दूसरी महिला एनीमिया से ग्रस्त है और हर तीसरा बच्चा अविकसित है।
  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2021 में भारत को 116 देशों में से 101वाँ स्थान प्राप्त हुआ है, जबकि वर्ष 2020 में भारत 94वें स्थान पर था।
  • सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी या सूक्ष्म पोषक तत्त्व कुपोषण, जिसे "छिपी हुई भूख" के रूप में भी जाना जाता है, एक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम है।
  • चावल भारत के प्रमुख खाद्य पदार्थों में से एक है, जिसका सेवन लगभग दो-तिहाई आबादी करती है। भारत में प्रति व्यक्ति चावल की खपत 6.8 किलोग्राम प्रतिमाह है। इसलिये सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के साथ राइस फोर्टिफिकेशन गरीबों के पूरक आहार का एक विकल्प हो सकता है।

  फोर्टिफिकेशन से उत्पन्न मुद्दे:

  • अनिर्णायक साक्ष्य:
    • प्रमुख राष्ट्रीय नीतियों को लागू करने से पहले फोर्टिफिकेशन का समर्थन करने वाले साक्ष्य अनिर्णायक और निश्चित रूप से अपर्याप्त हैं।
    • FSSAI फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा देने के लिये जिन अध्ययनों पर निर्भर है, उनमें से कई अध्ययन निजी खाद्य कंपनियों द्वारा प्रायोजित हैं, जो इससे लाभान्वित होंगे, परिणामस्वरूप हितों के टकराव की भी संभावना है।
  • हाइपरविटामिनोसिस:
    • हाइपरविटामिनोसिस विटामिन के असामान्य रूप से उच्च भंडारण स्तर की स्थिति है, जो विभिन्न लक्षणों जैसे कि अत्यधिक उत्तेजना, चिड़चिड़ापन या यहाँ तक ​​कि विषाक्तता को जन्म दे सकती है।
    • मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ और ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन’ में प्रकाशित हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि एनीमिया तथा विटामिन ए की कमी दोनों का निदान अधिक होता है, जिसका अर्थ है कि अनिवार्य फोर्टिफिकेशन से ‘हाइपरविटामिनोसिस’ हो सकता है।
  • विषाक्तता:
    • खाद्य पदार्थों के रासायनिक फोर्टिफिकेशन के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि पोषक तत्त्व अलगाव में काम नहीं करते हैं, लेकिन इनके अधिकतम अवशोषण के लिये एक-दूसरे की आवश्यकता होती है। भारत में अल्पपोषण का कारण सब्जियों और पशु प्रोटीन की कम खपत तथा अनाज आधारित आहार की वजह से है।
    • एक या दो सिंथेटिक रासायनिक विटामिन और खनिजों को जोड़ने से इस बड़ी समस्या का समाधान नहीं होगा तथा इससे अल्पपोषित आबादी में विषाक्तता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • वर्ष 2010 के एक अध्ययन में बताया गया है कि कुपोषित बच्चों में आयरन फोर्टिफिकेशन के कारण आँत में सूजन और रोगजनक आँत माइक्रोबायोटा प्रोफाइल की स्थिति देखी गई।
  • कार्टेलाइज़ेशन:
    • अनिवार्य फोर्टिफिकेशन के चलते भारतीय किसानों, स्थानीय तेल और चावल मिलों सहित खाद्य प्रसंस्करणकर्त्ताओं की विशाल अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा तथा  बहुराष्ट्रीय निगमों के एक छोटे समूह को लाभ मिलेगा, जिसके चलते 3,000 करोड़ रुपए का बाज़ार प्रभावित  होगा।
  • प्राकृतिक भोजन के मूल्य में कमी: 
    • कुपोषण से लड़ने के लिये आहार विविधता एक स्वस्थ और अधिक लागत प्रभावी तरीका है।
    • एक बार यदि आयरन-फोर्टिफाइड चावल एनीमिया के उपाय के रूप में बेचा जाने लगेगा तो बाजरा, हरी पत्तेदार सब्जियों की किस्मों, मांस खाद्य पदार्थ, कुछ प्राकृतिक रूप से लौह युक्त खाद्य पदार्थों के मूल्य एवं रुचियों में कमी आएगी।

आगे की राह

  • किसी के भोजन के बारे में सूचित विकल्पों का अधिकार एक बुनियादी अधिकार है। कोई क्या खा रहा है यह जानने का अधिकार भी एक बुनियादी अधिकार है। फोर्टिफाइड चावल के मामले में यह देखा गया है कि प्राप्तकर्त्ताओं से कभी भी पूर्व सूचित सहमति नहीं मांगी गई थी।
  • इसके बारे में अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है क्योंकि अधिक मात्रा में लिये गए किसी भी पोषक तत्त्व से लाभ नहीं मिलेगा।
    • यूनिवर्सल फोर्टिफिकेशन पोषण संबंधी कमियों का उचित विकल्प नहीं है।

स्रोत: द हिंदू