भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश | 07 Jun 2025
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), ASEAN, गैर-टैरिफ बाधाएँ, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA), 1999, स्टार्टअप, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI), नियमगिरि हिल्स, विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ)। मेन्स के लिये:भारत में FDI अंतर्वाह और बहिर्वाह की स्थिति, भारत से जुड़ी महत्ता और चुनौतियाँ तथा आगे की राह। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार, भारत का निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) वर्ष 2023-24 में 10.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर वर्ष 2024-25 में मात्र 0.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया।
- निवल FDI में तीव्र गिरावट मुख्य रूप से विदेशी फर्मों द्वारा प्रत्यावर्तन और विनिवेश में वृद्धि के कारण है, जो वर्ष 2024-25 में कुल 51.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, साथ ही भारतीय कंपनियों द्वारा बाह्य FDI (OFDI) में वृद्धि भी शामिल है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश क्या है?
- परिचय: FDI का अर्थ है कि भारत के बाहर रहने वाला कोई व्यक्ति पूंजी उपकरणों के माध्यम से भारत की किसी असूचीबद्ध कंपनी में या किसी सूचीबद्ध कंपनी के इश्यू के बाद की चुकता इक्विटी पूंजी (पूर्ण रूप से तनुकृत आधार) में कम-से-कम 10% निवेश करता है।
- यह सामान्यतः दीर्घकालिक निवेश होता है और मुख्यतः गैर-ऋण पूंजी प्रवाह को दर्शाता है।
- FDI रूट: FDI योजना के तहत विदेशी निवेशक भारतीय कंपनियों के शेयर, पूर्णतः परिवर्तनीय डिबेंचर और वरीयता शेयर में दो रूट्स से निवेश कर सकते हैं:
- स्वचालित रूट: विदेशी निवेशक को केवल निवेश के बाद RBI को सूचित करना होता है।
- उदाहरण: कृषि और पशुपालन, हवाई परिवहन सेवाएँ, ऑटो घटक, ऑटोमोबाइल, जैव प्रौद्योगिकी (ग्रीनफील्ड) आदि।
- सरकारी अनुमोदन रूट: किसी विदेशी निवेशक को आगे बढ़ने से पहले संबंधित मंत्रालय या विभाग से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना होगा।
- उदाहरण: बैंकिंग एवं सार्वजनिक क्षेत्र, प्रसारण सामग्री सेवाएँ, खाद्य उत्पादों की खुदरा बिक्री, डिजिटल मीडिया के माध्यम से समाचार और समसामयिक विषयों की स्ट्रीमिंग आदि।
- स्वचालित रूट: विदेशी निवेशक को केवल निवेश के बाद RBI को सूचित करना होता है।
- FDI विनियमन: वर्तमान में भारत में FDI का नियमन FDI नीति 2020 और FEMA (गैर-ऋण उपकरण) नियम, 2019 के अंतर्गत होता है, जो कि विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA), 1999 के तहत आते हैं।
- FDI का मुख्य नियामक उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) है, जो वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
- RBI भी FDI नियमों को लागू करने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
- भारत में FDI पर प्रतिबंध: परमाणु ऊर्जा उत्पादन, जुआ और सट्टेबाज़ी, लॉटरी, चिट फंड, रियल एस्टेट तथा तंबाकू उद्योग जैसे क्षेत्रों में FDI सख्त वर्जित है।
- भारत में FDI की वर्तमान स्थिति:
- सुदृढ़ सकल FDI प्रवाह: सकल FDI वर्ष 2024-25 में बढ़कर 81 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2023-24 में 71.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2022-23 में 71.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- FDI आकर्षित करने वाले प्रमुख क्षेत्र विनिर्माण, वित्तीय सेवाएँ, ऊर्जा और संचार सेवाएँ थे, जिनका कुल प्रवाह में 60% से अधिक योगदान था।
- शीर्ष निवेशक देशों सिंगापुर, मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात, नीदरलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका ने सकल FDI में 75% से अधिक का योगदान दिया।
- भारतीय कंपनियों द्वारा बाह्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश: भारतीय कंपनियों द्वारा बाह्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश वर्ष 2024-25 में बढ़कर 29.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2023-24 से 75% की वृद्धि है।
- भारतीय OFDI के लिये शीर्ष गंतव्य देश सिंगापुर, संयुक्त राज्य अमेरिका , संयुक्त अरब अमीरात, मॉरीशस और नीदरलैंड थे।
- OFDI वृद्धि को 90% से अधिक बढ़ाने वाले क्षेत्रों में वित्तीय, बैंकिंग एवं बीमा सेवाएँ, विनिर्माण और थोक एवं खुदरा व्यापार, रेस्तराँ एवं होटल शामिल थे।
- सुदृढ़ सकल FDI प्रवाह: सकल FDI वर्ष 2024-25 में बढ़कर 81 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2023-24 में 71.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2022-23 में 71.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- मैच्योर इन्वेस्टमेंट ईकोसिस्टम: भारत में विदेशी कंपनियों द्वारा प्रत्यावर्तन और विनिवेश की राशि वर्ष 2024–25 में बढ़कर 51.5 अरब अमेरिकी डॉलर हो गई, जो यह दर्शाता है कि भारत एक परिपक्व बाज़ार बन चुका है जहाँ निवेशकों के लिये आसानी से प्रवेश तथा निकास की सुविधा उपलब्ध है।
नोट: कोविड-19 महामारी के बीच भारतीय कंपनियों के अवसरवादी अधिग्रहण को रोकने के लिये, सरकार ने FDI नीति 2017 में संशोधन किया ।
- इसमें यह प्रावधान किया गया है कि भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों की संस्थाएँ या जिनके लाभार्थी मालिक ऐसे देशों से हैं, वे भारत में केवल पूर्व सरकारी अनुमोदन से ही निवेश कर सकती हैं।
- उपर्युक्त प्रयोजनों के लिये, भारत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, चीन (हॉन्गकॉन्ग सहित), बांग्लादेश और म्याँमार को भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों (सीमावर्ती देशों) के रूप में चिह्नित करता है।
भारतीय कंपनियों द्वारा बाह्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की बढ़ती प्रवृत्ति के पीछे मुख्य चालक क्या हैं?
- बाज़ार विविधीकरण के लिये वैश्विक विस्तार: भारतीय कंपनियाँ अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में नए बाज़ारों तक पहुँचने के लिये विदेशों में निवेश कर रही हैं, टाटा, रिलायंस जैसी कंपनियाँ भारतीय बाज़ार पर निर्भरता कम करने के लिये वैश्विक स्तर पर विस्तार कर रही हैं।
- अप्रैल 2025 में, भारत की बाह्य FDI 90% वार्षिक वृद्धि के साथ 6.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई, जिसका नेतृत्व टाटा कम्युनिकेशंस, LIC और JSW नियो एनर्जी ने किया।
- महत्त्वपूर्ण संसाधनों तक पहुँच सुनिश्चित करना: संसाधन अधिग्रहण भारतीय कंपनियों द्वारा बाह्य FDI के लिये एक प्रमुख चालक है, क्योंकि वे दीर्घकालिक आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करने के लिये तेल, गैस, खनिज और कृषि उत्पादों जैसे आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित करना चाहते हैं।
- ONGC विदेश और अडानी समूह जैसी कंपनियों ने घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों मांगों को पूरा करने के लिये विशेष रूप से तेल, गैस क्षेत्रों तथा खनन कार्यों में अंतर्राष्ट्रीय संसाधनों में सक्रिय रूप से निवेश किया है।
- लागत दक्षता के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त हासिल करना: इंफोसिस, TCS और सन फार्मा जैसी कंपनियाँ कम लागत वाले देशों (जैसे- पूर्वी यूरोप, मैक्सिको) में विस्तार कर रही हैं, जबकि भारतीय ऑटो कंपनियाँ विकसित देशों की सख्त गैर-टैरिफ बाधाओं को दरकिनार करने के लिये आसियान में निवेश कर रही हैं।
- इसके अलावा, हैवेल्स तथा डिक्सन टेक्नोलॉजीज जैसी कंपनियों ने उत्तरी अमेरिकी बाज़ार में प्रवेश करने के उद्देश्य से अपनी विनिर्माण इकाइयों और निर्यात परिचालनों का विस्तार अमेरिका तक कर दिया है।
- व्यापार समझौतों का लाभ उठाना: चूँकि भारत तेज़ी से देशों और क्षेत्रीय ब्लॉकों जैसे भारत-UAE FTA एवं ऑस्ट्रेलिया-भारत आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ECTA) के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर हस्ताक्षर कर रहा है, इसलिये भारतीय कंपनियाँ कम टैरिफ, आसान बाज़ार पहुँच तथा व्यापारिक साझेदारों के साथ बेहतर व्यापारिक संबंधों से लाभ उठाने के लिये खुद को तैयार कर रही हैं।
- सेवा क्षेत्र का वैश्वीकरण: भारतीय सेवा क्षेत्र की फर्मों का वैश्वीकरण - विशेष रूप से आईटी, फिनटेक और बैंकिंग में - बाहरी FDI को बढ़ावा देता है क्योंकि कंपनियाँ ग्राहक संबंधों को मज़बूत करने, नियामक अनुपालन सुनिश्चित करने, सेवा वितरण में सुधार करने तथा दीर्घकालिक विकास के लिये नए ग्राहक आधार तक पहुँचने के लिये विकसित बाज़ारों में विस्तार करती हैं।
भारत के सतत् आर्थिक परिवर्तन के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- व्यापक आर्थिक विकास: FDI पूंजी निर्माण, बुनियादी ढाँचे के विकास और औद्योगिक विस्तार में योगदान देता है।
- वर्ष 2020 में, फेसबुक ने जियो प्लेटफॉर्म्स में 5.7 बिलियन डाॅलर का निवेश किया, जो भारत के तकनीकी क्षेत्र में सबसे बड़ा निवेश समझौता था और डिजिटल अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करता है।
- रोज़गार के अवसर: विदेशी निवेश विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। स्टार्टअप को वित्तपोषित करके, कारखाने, कार्यालय और अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करके, विदेशी कंपनियाँ लाखों रोज़गार के अवसर प्रदान करती हैं।
- उदाहरण के लिये, FDI द्वारा अत्यधिक समर्थन प्राप्त भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम ने देश भर में 1.6 मिलियन से अधिक रोज़गार सृजित किये हैं।
- उन्नत प्रौद्योगिकी एवं नवाचार: FDI भारत में उन्नत प्रौद्योगिकी, स्वचालन और अनुसंधान एवं विकास लाता है तथा बहुराष्ट्रीय निगमों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण व सर्वोत्तम प्रथाओं के माध्यम से वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाता है।
- उदाहरण के लिये, भारत में टेस्ला का प्रस्तावित EV और बैटरी प्लांट पावरवॉल जैसी उन्नत बैटरी तकनीक पेश कर सकता है, जो भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों का समर्थन करेगा।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: FDI बड़े पैमाने की परियोजनाओं के वित्तपोषण में सहायक रहा है जो देश की बुनियादी ढाँचा क्षमता जैसे- सड़क, बंदरगाह, हवाई अड्डे और स्मार्ट शहरों को बढ़ाते हैं।
- उदाहरण के लिये, जापान मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन में निवेश कर रहा है और सिंगापुर का सॉवरेन वेल्थ फंड , GIC, भारतीय सड़कों में 615 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश कर रहा है।
- निर्यात में वृद्धि: FDI भारत को एक प्रमुख निर्यात केंद्र में बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे विदेशी मुद्रा आय को बढ़ाकर व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिलती है। विदेशी कंपनियाँ भारत में उत्पादन सुविधाएँ स्थापित करती हैं जो घरेलू और वैश्विक दोनों बाज़ारों की ज़रूरतों को पूरा करती हैं, जिससे भारत की निर्यात क्षमता बढ़ती है।
- उदाहरण के लिये, भारत से आईफोन का निर्यात वर्ष 2023-24 में बढ़कर 12.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि टोयोटा और हुंडई भारत से अफ्रीका एवं यूरोप को कारें निर्यात करती हैं।
- प्रतिस्पर्द्धा और दक्षता को बढ़ावा: FDI का प्रवाह घरेलू कंपनियों को गुणवत्ता, दक्षता और ग्राहक सेवा के अंतर्राष्ट्रीय मानकों को अपनाकर अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करता है।
- उदाहरण के लिये, अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट ने भारतीय खुदरा विक्रेताओं को डिजिटल होने के लिये प्रोत्साहित किया, जबकि स्टारबक्स एवं मैकडॉनल्ड्स ने भारत में खाद्य सेवा मानकों को बढ़ाया ।
भारत में FDI को आकर्षित करने और बनाए रखने में प्रमुख बाधाएँ क्या हैं?
- असहज विनियामक परिवेश: कर कानून और अंतरण मूल्य निर्धारण जैसे जटिल विनियमों से विदेशी निवेशकों के लिये अनुपालन चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे विधिक विवाद, वित्तीय नुकसान तथा लूपहोल का दुरूपयोग किये जाने की संभावना बढ़ जाती है।
- उदाहरण के लिये, वोडाफोन को पूर्वव्यापी कराधान (Retrospective taxation) के कारण कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
- अवसंरचना संबंधी अभाव: यद्यपि उल्लेखनीय प्रगति हुई है, फिर भी भारत को विशेष रूप से परिवहन, विद्युत आपूर्ति और रसद जैसे क्षेत्रों में (आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद का 14-18%) में अपर्याप्त अवसंरचना से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- अनुपयुक्त बुनियादी ढाँचे से व्यापार की लागत बढ़ सकती है, आपूर्ति शृंखला में व्यवधान उत्पन्न हो सकते हैं तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रभावित हो सकता है।
- बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा में चुनौतियाँ: भारत के बाज़ार में विद्यमान संरचनात्मक चुनौतियाँ, जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों द्वारा अपहारक कीमत निर्धारण (Predatory Pricing), निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा में बाधा उत्पन्न करती हैं और इससे पारंपरिक खुदरा विक्रेताओं पर प्रभाव पड़ता है।
- यद्यपि इससे संबंधित विनियमन मौजूद हैं, लेकिन भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) जैसी संस्थाएँ प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं पर प्रभावी अंकुश लगाने तथा समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये संघर्ष करती हैं।
- FDI का असमान वितरण: FDI अंतर्वाह कुछ सीमित क्षेत्रों जैसे कि सेवा क्षेत्र तथा महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों के नगरीय क्षेत्रों में केंद्रित है, जिसके कारण विकास के अवसर असमान हैं।
- इसके अतिरिक्त, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा के कारण FDI अंतर्वाह प्रभावित होता है।
- पर्यावरण और संधारणीयता संबंधी चिंताएँ: चूँकि वैश्विक निवेशक संधारणीयता और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व को प्राथमिकता दे रहे हैं, इसलिये भारत के पर्यावरण संबंधी विनियमों तथा प्रवर्तन तंत्रों को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- यद्यपि भारत ने अपने पर्यावरण अधिनियमों में सुधार किया है, लेकिन प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन और संसाधन संरक्षण पर नियमों का कार्यान्वयन असंगत बना हुआ है।
- उदाहरण के लिये, नियमगिरि पहाड़ियों में खनन कार्य का पर्यावरण हितैषी कार्यकर्त्ताओं ने कड़ा विरोध किया।
FDI अंतर्वाह बढ़ाने हेतु भारत क्या उपाय कर सकता है?
- नीति एवं विनियामक सुधार: DPIIT, RBI और राज्य प्रक्रियाओं में विलय कर FDI अनुमोदन के लिये एकस्थलीय समाशोधन का प्रावधान किया जाना चहिये।
- वोडाफोन कर मामले जैसे विलंब का समाधान करने हेतु समर्पित वाणिज्यिक अदालतों के माध्यम से विवादों का त्वरित समाधान किया जाना आवश्यक है।
- विवादों का निपटारा करने हेतु स्पष्ट, समयबद्ध रूपरेखा स्थापित करने से निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा और यह यह स्पष्ट होगा कि भारत व्यापार-अनुकूल परिवेश बनाए रखने के प्रति गंभीर है।
- संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान: अविकसित क्षेत्रों में FDI को बढ़ावा देने के लिये, भारत को कृषि प्रसंस्करण, स्वास्थ्य सेवा और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में कर छूट, अनुदान तथा कम लागत वाली पूंजी जैसे प्रोत्साहन प्रदान करने चाहिये। निम्न FDI अंतर्वाह वाले राज्यों के लिये विशेष निवेश पैकेज की सुविधा से क्षेत्रीय असमानताओं को कम किया जा सकता है और विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- पुनर्निवेश और रिवर्स FDI को प्रोत्साहन: भारत को बाह्य FDI के प्रबंधन के लिये अधिक अनुकूल परिवेश निर्मित करना चाहिये। भारत में अपने लाभ का पुनर्निवेश करने वाली विदेशी फर्मों के लिये कर प्रोत्साहन की पेशकश से पुनर्निवेशित पूंजी के स्थिर प्रवाह को आकर्षित करने में मदद मिल सकती है।
- इसके अतिरिक्त, नए निवेश से संबंधित लाभांश प्रत्यावर्तन पर प्रतिबंधों में छूट देने से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में पुनः निवेश करने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा तथा सीमा पार नकदी प्रवाह को सुप्रवाही बनाया जा सकेगा।
- एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है टाटा मोटर्स द्वारा जैगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण, जिसके बाद भारत के ऑटोमोटिव क्षेत्र में व्यापक निवेश हुआ।
- इसके अतिरिक्त, नए निवेश से संबंधित लाभांश प्रत्यावर्तन पर प्रतिबंधों में छूट देने से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में पुनः निवेश करने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा तथा सीमा पार नकदी प्रवाह को सुप्रवाही बनाया जा सकेगा।
- बुनियादी ढाँचा और कौशल विकास: देश में संतुलित FDI अंतर्वाह सुनिश्चित करने के लिये भारत को विशेष रूप से टियर- II और टियर- III शहरों में बुनियादी ढाँचे में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- सड़क, रेलवे और वायु मार्ग सहित बहुमुखी कनेक्टिविटी में सुधार और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क को मज़बूत करने से ये क्षेत्र निवेशकों के लिये अधिक आकर्षक बनेंगे।
- यह न केवल प्रमुख शहरी केंद्रों में भीड़-भाड़ को कम करेगा, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था के संतुलित विकास का भी समर्थन करेगा।
- विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिये कार्यबल को कौशल आधारित बनाना और उभरते क्षेत्रों में क्षेत्र-विशेष क्लस्टर एवं विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) विकसित करने की भी आवश्यकता है।
- सड़क, रेलवे और वायु मार्ग सहित बहुमुखी कनेक्टिविटी में सुधार और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क को मज़बूत करने से ये क्षेत्र निवेशकों के लिये अधिक आकर्षक बनेंगे।
सकल FDI और शुद्ध FDI
- सकल FDI से तात्पर्य किसी विशिष्ट अवधि के दौरान निवेशकों द्वारा एक देश से दूसरे देश में किये गए विदेशी निवेश की कुल राशि से है, जिसमें किसी भी विनिवेश या निकासी को घटाया नहीं जाता है।
- शुद्ध FDI भारत में आने वाला कुल विदेशी निवेश (सकल FDI) है, जिसमें से विदेशी कंपनियों द्वारा वापस लाया गया धन और भारतीय कंपनियों द्वारा किया गया बाह्य FDI घटाया जाता है।
- इसलिये, सकल FDI = प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का कुल अंतर्वाह।
- शुद्ध FDI = सकल FDI अंतर्वाह - FDI बहिर्वाह (विनिवेश)।
निष्कर्ष
मज़बूत सकल अंतर्वाह के बावजूद, भारत का शुद्ध FDI निवेश वापसी और बाह्य FDI में वृद्धि के कारण घट गया है। नियामक अड़चनों, बुनियादी ढाँचे की कमी और क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना आवश्यक है। एक संतुलित, निवेशक-अनुकूल वातावरण जिसमें न्यायसंगत क्षेत्रीय विकास, नीति निश्चितता और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता हो, दीर्घकालिक रूप से FDI को बढ़ावा देकर भारत की आर्थिक मज़बूती को सुदृढ़ कर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत के आर्थिक विकास में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। FDI को और अधिक समावेशी तथा स्थिर बनाने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त में से किसे/किन्हें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में सम्मिलित किया जा सकता है/किये जा सकते हैं?(a) 1, 2 और 3
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