खाद्य बनाम ईंधन | 08 May 2020

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा तथा जैव ईंधन नीति 

चर्चा में क्यों?

'केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री' (Union Minister of Petroleum and Natural Gas) की अध्यक्षता में 'राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति' (National Biofuel Coordination Committee- NBCC) ने 'भारतीय खाद्य निगम' (Food Corporation of India- FCI) के पास उपलब्ध 'अधिशेष' चावल का इथेनॉल निर्माण में उपयोग करने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह निर्णय अल्कोहल-आधारित हैंड-सेनिटाइज़र बनाने और पेट्रोल के साथ इथेनॉल के सम्मिश्रण को बढ़ावा देने को दृष्टिगत रखकर लिया गया है।  
  • हालाँकि इस निर्णय से लोगों की खाद्य सुरक्षा गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है।

'राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति'

(National Biofuel Coordination Committee- NBCC): 

  • NBCC में 'केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री'; जो समिति की अध्यक्षता करता है, के अलावा 14 अन्य मंत्रालयों एवं विभागों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।  
  • समिति 'जैव ईंधन कार्यक्रम' के कार्यान्वयन एवं प्रभावी निगरानी की दिशा में समन्वय तथा आवश्यक निर्णय लेने का कार्य करती है।

जैव ईंधन नीति और खाद्य सुरक्षा:

  • भारत के नीति निर्माता जैव ईंधन के उत्पादन में खाद्य अनाज के उपयोग से उत्पन्न होने वाले संभावित खतरों के बारे प्रारंभ से ही चिंतित थे।
  • 'जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति' (National Policy on Biofuels), 2009 में खाद्य बनाम ईंधन के बीच संभावित संघर्ष से बचने के लिये केवल गैर-खाद्य संसाधनों का जैव ईंधन सामग्री के रूप में उपयोग करने का प्रावधान किया।
  • वर्ष 2018 में सरकार ने वर्ष 2009 की जैव ईंधन नीति को संशोधित किया। ‘जैव ईंधन पर नई राष्ट्रीय नीति’ में वर्ष 2030 तक पेट्रोल में इथेनॉल का 20% तथा डीज़ल में 5% के सम्मिश्रण का लक्ष्य रखा गया।
  • इसमें दूसरी पीढ़ी की जैव-रिफाइनरियों के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने तथा जैव ईंधन सामग्री के रूप में अवशिष्ट खाद्य पदार्थों के उपभोग की अनुमति प्रदान की गई।
  • नवीन जैव ईंधन नीति के अनुसार, केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा समर्थन दिये जाने पर अतिरिक्त खाद्यान उत्पादन का उपयोग एथनॉल उत्पादन किया जा सकता है।

 भारत में खाद्य सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ: 

  • भारत उन देशों में शामिल है जहाँ तीव्र गरीबी, भुखमरी और कुपोषण की स्थिति है।  'वैश्विक भुखमरी सूचकांक' (Global Hunger Index)- 2019 के अनुसार, 117 देशों में भारत 102 वें स्थान पर रहा है। 
  • 'राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण' (National Family Health Survey- 4 NFHS-4) के अनुसार, पाँच वर्ष से कम उम्र के 38.4% फीसदी बच्चें 'बौने' (Stunted- उम्र के अनुसार लंबाई कम), जबकि  21% बच्चे 'वेस्टेड’ (Wasted: लंबाई के अनुसार कम वजन) हैं। वास्तव में 'वेस्टेड’ दर NFHS-3 में 19.8% से बढ़कर NFHS-4 में 21% हो गई है।

संभावित चुनौतियाँ:

  • सरकार द्वारा अतिरिक्त खाद्यान उत्पादन का जैव ईंधन सामग्री के रूप में उपयोग करने का निर्णय मौसम विभाग द्वारा इस वर्ष ‘सामान्य मानसून रहने के पूर्वानुमान’ को दृष्टिगत रखकर लिय गया है। परंतु यदि मानसून पूर्वानुमान गलत साबित होता है तो इसके खाद्य सुरक्षा पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि प्रतिवर्ष FCI बफर स्टॉक का बहुत बड़ा भाग खराब हो जाता है, तथा इसे जैव ईंधन सामग्री के रूप में प्रयोग करने के लिये जैव ईंधन नीति- 2018, में अवशिष्ट अन्न संबंधी प्रावधान जोड़ा गया था परंतु वास्तविकता कुछ अलग है। 
  • पिछले पाँच वर्षों में FCI द्वारा जारी कुल अनाज में केवल 0.01% से 0.04% अनाज खराब हुआ है। इतनी कम मात्रा में क्षतिग्रस्त अनाज से शायद ही कोई इथेनॉल बनाया जा सके।

आगे की राह:

  • जब COVID- 19 महामारी के चलते राष्ट्रीय आय में भारी गिरावट, बेरोज़गारी में वृद्धि, और आपूर्ति श्रंखला में बाधा उत्पन्न होने से खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि होने की संभावना है ऐसे समय में खाद्य सुरक्षा और खाद्य मूल्य स्थिरता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • इथेनॉल का उत्पादन अन्य सामग्रियों जैसे गन्ना उत्पादों से किया जाना चाहिये तथा अतिरिक्त अनाज को राहत पैकेज के रूम में प्रवासी श्रमिकों को उपलब्ध कराना चाहिये।  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस