सरकार के बदलते रुख से मंडराया नुआपाड़ा के ऊपर फ्लोरोसिस का संकट | 25 Feb 2017

विदित हो कि तक़रीबन दो दशक पूर्व फ्लोराइड (fluoride) की उच्च मात्रा वाले जल के उपभोग के कारण उड़ीसा के नुआपाड़ा (Nuapada) ज़िले की एक बहुत बड़ी आबादी को रीढ़ की हड्डी की अपंगता संबंधी कष्ट को सहन करना पड़ा रहा है| ध्यातव्य है कि नुआपाड़ा ज़िले के तकरीबन 50,000 ग्रामीण फ्लूरोसिस (fluorosis) नामक बीमारी से प्रभावित हैं|

खामोशी से कष्ट को सहना

  • गौरतलब है कि इस ज़िले की वयस्क आबादी अधिकांशतः कंकालीय फ्लूरोसिस (skeletal fluorosis) से पीड़ित है| कंकालीय फ्लूरोसिस न केवल हड्डियों को विकृत कर देता है बल्कि यह तीव्र दर्द का भी कारण बनता है| जिसके परिणामस्वरूप ज्यादातर लोग अपनी पीठ को सीधा ही नहीं कर पाते हैं तथा बहुत अधिक थकान का भी अनुभव करते हैं|
  • इतना ही नहीं फ्लोराइड युक्त जल का उपभोग करने से 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे दाँतों की अव्यवस्था (Mottling of teeth) अथवा दंत फ्लूरोसिस (Dental fluorosis) की समस्या से पीड़ित हो जाते हैं| उल्लेखनीय है कि इस बीमारी के कारण सैकड़ों बच्चों की मृत्यु भी हो चुकी है|
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 1997 में नुआपाड़ा ज़िले के बोडेन ब्लॉक के कर्लाकोट गाँव में रहने वाले 36 वर्षीय स्वस्थ पुरुष प्रफुल्ल बेहेरा (Prafulla Behera) ने जब अपनी गर्दन तथा पीठ में अत्यधिक दर्द का अनुभव किया|
  • उड़ीसा के चिकित्सक उनकी समस्या का निदान नहीं कर सके| तत्पश्चात् उन्हें इलाज़ के लिये विशाखापत्तनम लाया गया| दो वर्षों तक इस बीमारी से जूझने के पश्चात् चिकित्सकों द्वारा उनकी बीमारी का मूल कारण दूषित जल का उपयोग बताया गया| 

सरकारी आँकड़े

  • गौरतलब है कि सरकारी आँकड़ों के अनुसार, नुआपाड़ा में कुल 2,784 निवास स्थल हैं| इन कुल निवास स्थलों में से तकरीबन 905 निवास स्थलों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 ppm (Part Per Million –PPM) से अधिक पाई गई|
  • ध्यातव्य है कि नुआपाड़ा के जल में फ्लोराइड की मात्रा 0.14 से 7.2 ppm के मध्य है| एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात यह है कि नुआपाड़ा देश के सर्वाधिक गरीब ज़िलों में से एक है|
  • विदित हो कि स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाने के अतिरिक्त फ्लोरोसिस किसी क्षेत्र की आर्थिक उत्पादकता को भी विपरीत रूप से प्रभावित करता है जिसके कारण स्वभाविक रूप से भुखमरी और कुपोषण को बढ़ावा मिलता है|
  • इसके अतिरिक्त इसके सामाजिक प्रभाव भी होते हैं| गैर-दूषित क्षेत्रों के लोग दूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के साथ किसी तरह का कोई वैवाहिक संबंध स्थापित करने की इच्छा नहीं रखते हैं| जिसके कारण ये लोग सामाजिक एवं आर्थिक रूप से उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर हैं|

इस संबंध में लंबित परियोजनाएँ 

  • गौरतलब है कि सरकार द्वारा इस समस्या का समाधान करने के लिये उठाए गए कदमों का कोई विशेष परिणाम देखने में नहीं आया है| हालाँकि इस सन्दर्भ में बहुत सी महत्त्वपूर्ण पहलें की गई हैं तथापी परिणाम बहुत ही न्यूनतम हैं| 
  • इस सन्दर्भ में आरंभ की गई कुछ विशेष पहलें इस प्रकार हैं -
  • सर्वप्रथम, एक पाइप वाटर सप्लाई प्रोजेक्ट (Pipe Water Supply – PWS) कर्लाकोट (karlakot) गाँव में स्थापित किया गया| हालाँकि, अन्य गाँवों के लोगों ने भूमिगत जल उपभोग करना जारी रखा|
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2010 से 2015 के मध्य भारत सरकार द्वारा कुल 273.87 करोड़ रुपए की लागत के 21 मेगावाट पाइप वाटर सप्लाई प्रोजेक्टों की घोषणा भी की गई| यह और बात है कि ये परियोजनाएँ अब बंद होने की कगार पर हैं|वर्ष 2015 में, इन प्रोजेक्टों को स्थापित करने के लिये नाबार्ड (National Bank of Agriculture Rural Development - NABARD)  द्वारा भारत सरकार को 543.63 करोड़ रुपए की सहायता राशि को स्वीकृति प्रदान की गई| इस धन के प्रयोग से सिनापाली (Sinapali), बोडेन (Boden), खरिआर (Khariar), कोमना (Komna) और नुआपाड़ा (Nuapada) के फ्लोराइड प्रभावित ब्लॉकों को पीने के जल की आपूर्ति सुनिश्चित करना तय किया गया|
  • हालाँकि यह प्रोजेक्ट भी अभी तक लंबित अवस्था में ही है|
  • हालाँकि इस सन्दर्भ में सरकार द्वारा प्रस्तुत दावों के अनुसार सरकार फ्लोराइड के कारण दूषित होने वाले जल के विषय में जनता को संबोधित करने तथा अधिक से अधिक इस सूचना का प्रसार करने का कार्य कर रही है| 
  • गौरतलब है कि यहाँ अवस्थित 905 निवासस्थलों में से तकरीबन 350 के पास ही पाइप जल आपूर्ति की सुविधा मौजूद हैं| इसके अतिरिक्त 543 गाँवों में 600 फ्लोराइड निष्कासन संयंत्र भी स्थापित किये जा चुके हैं| इसके साथ-साथ 98 निवास स्थलों को आवृत करने के लिये 34 पीडब्लूएस प्रोजेक्टों का निष्पादन किया जा रहा है|
  • हालाँकि पाइप वाटर सप्लाई प्रोजेक्ट बिजली की अनुपस्थिति के कारण इस संकट से उबरने में असफल साबित हुए हैं|