लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) | 01 Mar 2021

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने अपनी मुद्रा और वित्त (RCF) संबंधी वर्ष 2020-21 की रिपोर्ट में कहा है कि मौजूदा मुद्रास्फीति लक्ष्य बैंड (4% +/- 2%) अगले 5 वर्षों के लिये उपयुक्त है।

प्रमुख बिंदु:

मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण:

  • मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण का अर्थ: 
    • यह केंद्रीय बैंकिंग की एक नीति है जो मुद्रास्फीति की एक निर्दिष्ट वार्षिक दर प्राप्त करने हेतु मौद्रिक नीति के संयोजन पर आधारित  है।
    • मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण का सिद्धांत इस बात पर आधारित है कि मूल्य स्थिरता को बनाए रखने हेतु दीर्घकालिक आर्थिक विकास सर्वाधिक उपयुक्त है और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करके मूल्य स्थिरता की स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है।
  • कठोर मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (Strict Inflation Targeting) को तब अपनाया जाता है जब केंद्रीय बैंक केवल किसी दिये गए मुद्रास्फीति लक्ष्य के आस-पास मुद्रास्फीति को रखना चाहता है।
  • वहीं लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (Flexible Inflation Targeting) को  तब अपनाया जाता है जब केंद्रीय बैंक कुछ अन्य कारकों जैसे- ब्याज दरों की स्थिरता, विनिमय दर, उत्पादन और रोज़गार आदि को लेकर चिंतित होता है। 

भारत का लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढाँचा:

  • पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 2015 में केंद्रीय बैंक अर्थात् रिज़र्व बैंक और सरकार के मध्य एक नीतिगत ढाँचे पर सहमति बनी जिसमें विकास को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु प्राथमिक उद्देश्य निर्धारित किया गया। 
    • इसके पश्चात् लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण को वर्ष 2016 में अपनाया गया। इससे भारत लचीली मुद्रास्फीति नीति को अपनाने वाले देशों की सूची में शामिल हो गया। 
    • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 में एक FIT ढाँचे को वैधानिक आधार प्रदान करने हेतु संशोधन किया गया 
    • संशोधित अधिनियम के तहत सरकार द्वारा RBI के परामर्श से प्रत्येक पाँच वर्ष में एक बार मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारित किया जाता है।
  • लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढाँचा: 
    • भारत द्वारा 4 (+/- 2) प्रतिशत को लक्षित करते हुए एक लचीली मुद्रास्फीति नीति को अपनाया गया तथा उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति को एक प्रमुख संकेतक के रूप में चुना गया।
  • उद्देश्य: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण को मौद्रिक नीति निर्धारण में अधिक स्थिरता, पूर्वानुमान लगाने और पारदर्शिता लाने हेतु जाना जाता है। 
    • यह इस तर्क पर आधारित है कि बढ़ती कीमतें अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न करती हैं और बचत एवं निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
  • निश्चित जवाबदेही: यह ढाँचा मुद्रास्फीति के लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रहने पर भारतीय रिज़र्व बैंक को और अधिक जवाबदेह बनाता है।
    • इसका दूसरा पहलू यह है कि इस तरह के लक्ष्य RBI को मौद्रिक नीति हेतु किसी भी प्रकार के कड़े कदम उठाने से रोकते हैं।

रिज़र्व बैंक का रुख (RCF रिपोर्ट के मुख्य बिंदु)

  • मुद्रास्फीति FIT के पूर्व 9 प्रतिशत से कम होकर FIT के दौरान 3.8 से 4.3 प्रतिशत की सीमा के बीच रही, जो यह दर्शाता है कि भारत के लिये 4 प्रतिशत का मुद्रास्फीति लक्ष्य उपयुक्त है।
  • अधिकतम मुद्रास्फीति जिसके ऊपर वृद्धि सुस्पष्ट रूप से रुक जाती है, भारत में उसकी रेंज 5 से 6 प्रतिशत के बीच है, यह दर्शाता है कि 6% की मुद्रास्फीति दर, मुद्रास्फीति लक्ष्य के लिये उपयुक्त ऊपरी सहनशीलता सीमा है। दूसरी ओर 2 प्रतिशत से अधिक की न्यून सीमा से सहिष्णुता बैंड के नीचे की वास्तविक मुद्रास्फीति हो सकती है, जोकि 2 प्रतिशत से नीचे की न्यूनतम सीमा वृद्धि को बाधित करेगा, यह दर्शाता है कि 2 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर उपयुक्त न्यूनतम सहिष्णुता सीमा है।
    • FIT अवधि के दौरान मुद्रा बाज़ार में मौद्रिक संचरण पूर्ण और यथोचित रूप से तेज़ रहा है, लेकिन  बॉण्ड बाज़ारों में पूर्ण से कम रहा, जबकि बैंकों के ऋण और जमा दरों के मामले में संचरण में सुधार हुआ है, ऋण एवं जमा की सभी श्रेणियों में बाह्य बेंचमार्क आगे संचरण में सुधार कर सकते हैं।

मौद्रिक नीति:

  • यह केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित व्यापक आर्थिक नीति है। इसमें मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दर का प्रबंधन शामिल है, यह मुद्रास्फीति, खपत, वृद्धि और तरलता जैसे व्यापक आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये इस्तेमाल की जाने वाली मांग पक्ष आधारित आर्थिक नीति है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति का उद्देश्य अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की आवश्यकताओं को पूरा करने और आर्थिक विकास की गति बढ़ाने के लिये धन की मात्रा का प्रबंधन करना है।
  • RBI खुले बाज़ार की क्रियाओं, बैंक दर नीति, आरक्षित प्रणाली, ऋण नियंत्रण नीति, नैतिक प्रभाव और कई अन्य उपकरणों के माध्यम से मौद्रिक नीति को लागू करता है।

समायोजित और सख्त मौद्रिक नीति

  • मुद्रास्फीति से बचने के लिये अधिकांश केंद्रीय बैंक उदार मौद्रिक नीति और सख्त मौद्रिक नीति के बीच वैकल्पिक मार्ग अपनाते हैं जो मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखते हुए विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भिन्न-भिन्न मात्राओं में होते हैं।
    • जब केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये मुद्रा आपूर्ति का विस्तार करता है, तब समायोजित मौद्रिक नीति को अपनाया जाता है।
      • ये उपाय ऋण को कम लागतजन्य बनाने और खर्च को अधिक प्रोत्साहित करने के लिये किये जाते हैं।
    • अनुबंधित आर्थिक विकास के लिये एक सख्त मौद्रिक नीति लागू की जाती है।
      • समायोजित मौद्रिक नीति के विपरीत एक सख्त मौद्रिक नीति में उधार लेने के लिये ब्याज दरों में वृद्धि और बचत को प्रोत्साहित करना शामिल है।

मौद्रिक नीति समिति

  • RBI की ‘मौद्रिक नीति समिति’ ‘भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934’ के तहत स्थापित एक संविधिक निकाय है। यह आर्थिक विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मुद्रा स्थिरता को बनाए रखने हेतु कार्य करती है।
    • रिज़र्व बैंक का गवर्नर इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है।
  • यह मुद्रास्फीति दर, 4% के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये ब्याज दर (रेपो रेट) के निर्धारण का कार्य करती है।
    • वर्ष 2014 में तत्कालीन डिप्टी गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता वाली रिज़र्व बैंक की समिति ने मौद्रिक नीति समिति की स्थापना की सिफारिश की थी।

आगे की राह

  • एक मुक्त अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति का संचालन, विदेशी मुद्रा भंडार और संबंधित चलनिधि प्रबंधन काफी प्रमुख होते हैं; इसलिये पूंजी प्रवाह में वृद्धि की स्थिति से निपटने के लिये रिज़र्व बैंक की वंध्यीकरण क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • मूल्य स्थिरता पर लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) का प्राथमिक ध्यान पूंजी खाते के अधिक उदारीकरण और भारतीय रुपए के संभव अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये बेहतर है।

स्रोत: द हिंदू