देश में पहली रो-रो (RO-RO) फेरी की शुरुआत | 24 Oct 2017

संदर्भ

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपने गृह राज्य गुजरात के घोघा में देश की पहली रोल ऑन-रोल ऑफ घोघा-दहेज फेरी सेवा के प्रथम चरण की शुरुआत।  

प्रमुख विशेषताएँ

  • इस फेरी सेवा पर लगभग 614 करोड़ रुपए की लागत आई है, जिसका उद्देश्य गुजरात में कनेक्टिविटी और बुनियादी सुविधाओं को बढ़ावा देना है।
  • खंभात की खाड़ी में यह सेवा प्रायद्वीपीय सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के बीच चलेगी।
  • सौराष्ट्र के भावनगर ज़िले में स्थित घोघा भडूच ज़िले के दहेज से 17 नॉटिकल मील (32 किमी.) दूर खाड़ी के पार स्थित है।
  • फेरी सेवा का परिचालन सुचारू रूप से हो सके, इसके लिये केंद्र सरकार ने सागरमाला परियोजना के तहत घोघा और दहेज दोनों स्थानों पर गाद आदि निकालने के लिये 117 करोड़ रुपए आवंटित किये। 

घोघा-दहेज के बीच इस सेवा के शुरू होने से  सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के क्षेत्र एक-दूसरे के और निकट आ जाएंगे। सौराष्ट्र में घोघा और दक्षिण गुजरात में दहेज के बीच सड़क मार्ग से लगने वाला 7-8 घंटे का समय फेरी के माध्यम से केवल 1 घंटे में तय किया जा सकेगा। इससे इन दोनों स्थानों के बीच की दूरी 360 किमी. से  घटकर केवल 31 किमी. रह जाएगी।

  • गुजरात में लगभग 1600 किमी. लंबी तटरेखा पर समुद्री और बंदरगाह मामलों के लिये ज़िम्मेदार एजेंसी ने वर्ष 2011 में इस योजना के लिये निविदा जारी की थी।
  • भारत में अपनी तरह की इस पहली सेवा के पूरी तरह परिचालन में आने के बाद फेरी के माध्यम से एक बार में दो बंदरगाहों के बीच 100 वाहनों (कार, बसों और ट्रकों) और 250 यात्रियों तक को लाया-ले जाया जा सकेगा। 
  • इस प्रकार की रो-रो फेरी सेवाओं में पहियेदार माल/यात्री वाहक वाहनों को लाने-ले जाने के लिए जहाज़ होते हैं। इस पर ले जाए जाने वाले वाहन अपने स्वयं के पहियों या फेरी के लिये बने प्लेटफार्म का उपयोग करते हैं, जिनमें कार, ट्रक, अर्द्ध-ट्रेलर ट्रक, ट्रेलर और रेल-कार शामिल हैं।

क्या होंगे लाभ?

  • इस फेरी सेवा से पूरे क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक विकास का एक नया दौर शुरू होगा तथा रोज़गार के नए अवसर उपलब्ध होंगे। 
  • इस सेवा में भड़ूच सहित दक्षिण गुजरात में औदयोगिक विकास की गति को तेज़ करने के लिए दहेज और हज़ीरा जैसे केन्द्रों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
  • इस सेवा के शुरू होने से तटीय शिपिंग (Coastal Shipping) और तटीय पर्यटन (Coastal Tourism) के क्षेत्र में  भी नई शुरूआत होगी। 

भविष्य में इस फेरी सेवा से पीपावाओ, जाफराबाद, दमन-दीव आदि  महत्वपूर्ण स्थानों को जोड़ने की भी सरकार की योजना है। इसके अलावा सरकार आने वाले वर्षों में इस सेवा को सूरत से आगे हज़ीरा और फिर मुम्बई तक ले जाने की योजना बना रही है। कच्छ की खाड़ी में भी इस तरह की सेवा शुरू करने पर विचार किया जा सकता है।

  • जहाँ तक देश में परिवहन के साधनों का प्रश्न है तो सबसे अधिक सड़क परिवहन का हिस्सा 55% प्रतिशत है, रेलवे माल ढुलाई का 35% प्रतिशत वहन करती है। 
  • यातायात का सबसे सस्ता माध्यम होने के बावजूद  जल मार्ग से केवल 5-6%  परिवहन होता है, जबकि अन्य देशों में जलमार्गों और तटीय परिवहन की हिस्सेदारी लगभग 30% से अधिक है। 
  • देश की अर्थव्यवस्था पर लॉजिस्टिक्स का बोझ लगभग 18 प्रतिशत तक है अर्थात् सामान को देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक ले जाने में अन्य देशों की अपेक्षा हमारे देश में खर्च अधिक होता है। यह भी एक बड़ा कारण है जिसकी वज़ह से आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। 
  • जल परिवहन को बढ़ावा देकर लॉजिस्टिक्स पर आने वाली लागत को लगभग आधा किया जा सकता है, क्योंकि देश में इसके लिये साधन, संसाधन, सुविधाएँ और सामर्थ्य सब कुछ मौज़ूद है।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले वर्ष 2016 में एक निजी कंपनी ने राज्य सरकार के सहयोग से कच्छ की खाड़ी में कच्छ-सागर सेतु नामक आधुनिक यात्री फेरी सेवा द्वारका ज़िले में ओखा और कच्छ ज़िले में मांडवी के बीच शुरू करने का प्रयास किया था। लेकिन तकनीकी तथा आर्थिक समस्याओं के चलते यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी।

रो-रो सेवा क्या है?

अब तक रो-रो सेवा का नाम भारतीय रेल से ही जुड़ा था, जिसे  कोंकण रेलवे पर सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ‘रोल-ऑन रोल-ऑफ’ अर्थात किसी सामान को लादना और फिर उसे उतारना। इसमें पानी के जहाज़ों को इस प्रकार तैयार किया जाता है, जिनमें उपरोक्त वाहनों तथा अन्य चीजों को लादा जा सकता है। इसके अलावा लोग भी इसमें यात्रा कर सकते हैं। रो-रो सेवा के लिये जहाज़ों को विशेष प्रकार से तैयार किया जाता है। इसमें क्रेन की मदद से किसी भी सामान को उठाया जाता है और दूसरे स्थान पर रखा जाता है। जहाज़ इस तरह से डिजाइन किये जाते  हैं कि बंदरगाहों पर ही सामान चढ़ाया और उतारा जा सकता है।