ग्रेट इंडियन बस्टर्ड हेतु ‘फायरफ्लाई बर्ड डाइवर्टर’ | 24 Dec 2020

चर्चा में क्यों:

पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने वाइल्डलाइफ़ कंज़र्वेशन सोसाइटी (Wildlife Conservation Society- WCS), भारत के साथ मिलकर ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ (Great Indian Bustard- GIB) की घनी आबादी वाले स्थानों पर एक अनूठी पहल के माध्यम से उन क्षेत्रों में ओवरहेड बिजली लाइनों पर “फायरफ्लाई बर्ड डायवर्टर” नामक युक्ति का प्रयोग किया है।

  • वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन सोसाइटी न्यूयॉर्क स्थित एक गैर-सरकारी संगठन है, जिसका उद्देश्य दुनिया के सबसे बड़े जंगली स्थानों को 14 प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में संरक्षित करना है।

Indian-Bustard

प्रमुख बिंदु:

“फायरफ्लाई बर्ड डायवर्टर” 

  • “फायरफ्लाई बर्ड डायवर्टर” विद्युत लाइनों पर स्थापित फ्लैप हैं। वे ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ जैसी पक्षी प्रजातियों के लिये परावर्तक के रूप में काम करते हैं। पक्षी उन्हें लगभग 50 मीटर की दूरी से पहचान सकते हैं और बिजली की लाइनों से टकराव से बचने के लिये अपनी उड़ान का मार्ग बदल सकते हैं।
  • छोटे पक्षी उड़ते समय अपनी दिशा बदल सकते हैं लेकिन बड़ी पक्षी प्रजातियों के लिये उनके शरीर के वजन और अन्य कारकों के कारण यह मुश्किल है।
  • चूंकि ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ न्यूनतम दृश्य क्षमता, अधिक वजन वाले पक्षी होते हैं, इसलिये उन्हें अपनी उड़ान मार्ग को तेज़ी से बदलना मुश्किल होता है, भले ही वे एक जीवित तार (Live Wire) के सामने आ जाएँ।
  • डायवर्टर को फायरफ्लाइज़ कहा जाता है क्योंकि वे रात में बिजली लाइनों पर चमकते हुए जुगनू की तरह दिखते हैं।

पृष्ठभूमि:

  • MoEFCC की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में थार क्षेत्र में कई ओवरहेड तारों के साथ बिजली लाइनें (विशेष रूप से उच्च-वोल्टेज संचरण लाइनें), ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ के लिये सबसे बड़ा खतरा हैं और लगातार उच्च मृत्यु दर का कारण बन रही हैं।
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हालिया सुनवाई में निर्देश दिया कि ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ की आबादी वाले क्षेत्रों में बिजली लाइनों को भूमिगत रखा जाए।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB):

  • यह दुनिया के सबसे भारी उड़ने वाले पक्षियों में से एक है।
  • वैज्ञानिक नाम: आर्डियोटिस निग्रिसेप्स (Ardeotis Nigriceps)

पर्यावास:

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड आमतौर पर न्यूनतम दृश्य क्षमता और शांति के साथ समतल खुले मैदानों में रहना पसंद करते हैं, इसलिये घास के मैदानों में अच्छी तरह से अनुकूलन करते हैं।
  • इसकी ज्यादातर आबादी राजस्थान और गुजरात तक ही सीमित है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में ये कम संख्या में पाए जाते हैं।

सुरक्षा की स्थिति:

खतरे:

  • विद्युत् लाइनों के साथ टकराव,
  • शिकार (अभी भी पाकिस्तान में प्रचलित),
  • सिंचाई और खेती की तकनीक

खनन

  • पवन टर्बाइन और सौर फार्म (फोटोवोल्टिक पावर स्टेशन)
  • वनों और घास के मैदानों में वनों की कटाई के नाम पर विदेशी वृक्षों/वृक्ष प्रजातियों का रोपण

स्रोत- द हिंदू