कृषि निर्यात पर उच्‍च स्‍तरीय विशेषज्ञ समूह का गठन | 18 Feb 2020

प्रीलिम्स के लिये

कृषि और प्रसंस्‍कृत खाद्य उत्‍पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, 15वाँ वित्त आयोग

मेन्स के लिये

विशेषज्ञ समूह की आवश्यकता तथा उद्देश्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 15वें वित्त आयोग ने कृषि निर्यात पर एक उच्‍च स्‍तरीय विशेषज्ञ समूह का गठन किया है, ताकि निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके और इसके साथ ही अधिक आयात का प्रतिस्‍थापन सुनिश्चित करने के लिये संबंधित फसलों को प्रोत्‍साहित किया जा सके।

प्रमुख बिंदु

  • कृषि निर्यात पर गठित उच्‍च स्‍तरीय विशेषज्ञ समूह 8 सदस्यीय (अध्यक्ष समेत ) निकाय है। इस विशेषज्ञ समूह का अध्यक्ष संजीव पुरी को नियुक्त किया गया है।
  • विशेषज्ञ समूह में सदस्य के रूप में राधा सिंह, सुरेश नारायण, जय श्रॉफ, संजय सचेती, डॉ.सचिन चतुर्वेदी तथा खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग मंत्रालय, कृषि और प्रसंस्‍कृत खाद्य उत्‍पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के प्रतिनिधि शामिल हैं।
  • विशेषज्ञ समूह अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के बदलते परिदृश्‍य में भारतीय कृषि उत्‍पादों (जिंस, अर्द्ध-प्रसंस्‍कृत एवं प्रसंस्‍कृत) के लिये निर्यात एवं आयात प्रतिस्‍थापन अवसरों का आकलन कर निर्यात में उल्‍लेखनीय वृद्धि करने तथा आयात पर निर्भरता घटाने के उपाय बताएगा।
  • कृषि उत्‍पादकता बढ़ाने, अपेक्षाकृत अधिक मूल्‍यवर्द्धन में समर्थ बनाने, कृषि उत्पादों की बर्बादी में कमी सुनिश्चित करने, भारतीय कृषि से संबंधित लॉजिस्टिक्‍स संबंधी बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं को मज़बूत करने और विश्‍व स्‍तर पर कृषि क्षेत्र की प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाने के लिये विभिन्‍न रणनीतियों एवं उपायों की अनुशंसा करेगा।
  • कृषि संबंधी मूल्‍य शृंखला में निजी क्षेत्र के निवेश के मार्ग में मौजूद बाधाओं की पहचान कर ऐसे नीतिगत उपाय एवं सुधार सुझाना, जिससे आवश्‍यक निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी।
  • कृषि क्षेत्र में सुधारों में तेज़ी लाने के साथ-साथ इस संबंध में अन्‍य नीतिगत उपायों को लागू करने के लिये वर्ष 2021-22 से लेकर वर्ष 2025-26 तक की अवधि के लिये राज्‍य सरकारों को प्रदर्शन आधारित प्रोत्‍साहन उपलब्ध कराना।

कृषि और प्रसंस्‍कृत खाद्य उत्‍पाद निर्यात विकास प्राधिकरण

(Agricultural And Processed Food Products Export Development Authority-APEDA)

  • भारत सरकार द्वारा कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण की स्थापना दिसंबर 1985 में संसद द्वारा पारित कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम के अंतर्गत की गई।
  • यह वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
  • APEDA का प्रधान कार्यालय नई दिल्ली तथा क्षेत्रीय कार्यालय मुंबई, कोलकाता, बंगलूरु, हैदराबाद, गुवाहाटी में स्थित है।

निर्दिष्ट कार्य

  • वित्तीय सहायता प्रदान कर या सर्वेक्षण तथा संभाव्यता अध्ययनों, संयुक्त उद्यमों के माध्यम से पूंजी लगाकर तथा अन्य राहतों व आर्थिक सहायता योजनाओं द्वारा अनुसूचित उत्पादों के निर्यात से संबद्ध उद्योगों का विकास करना।
  • निर्धारित शुल्क के भुगतान पर अनुसूचित उत्पादों के निर्यातकों के रूप में व्यक्तियों का पंजीकरण करना।
  • निर्यात उद्देश्य के लिये अनुसूचित उत्पादों के लिये मानक और विनिर्देश तय करना।
  • अनुसूचित उत्पादों की पैकेजिंग में सुधार लाना।
  • भारत से बाहर अनुसूचित उत्पादों के विपणन में सुधार लाना।
  • उत्पादन, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, विपणन या अनुसूचित उत्पादों के निर्यात में लगे संगठनों या कारखानों के मालिकों या अनुसूचित उत्पादों से संबद्ध मामलों के लिये निर्धारित ऐसे अन्य व्यक्तियों से आँकड़े एकत्र करना तथा इस प्रकार एकत्रित किये गए आँकड़ों या उनके किसी एक भाग या उनके उद्धरण प्रकाशित करना, इत्यादि।

समूह की आवश्यकता क्यों?

  • बीते कई वर्षों से कृषि निर्यात लगातार कम हुआ है। वर्ष 2013-14 के 42.9 अरब डॉलर से घटकर यह वर्ष 2016-17 में 33.4 अरब डॉलर रह गया है और इस गिरावट को रोकना आवश्यक है। वर्ष 2018 में निर्मित कृषि निर्यात नीति के परिणामस्वरूप सितंबर 2019 तक कृषि निर्यात 38.49 अरब डॉलर तक पहुँच गया है। वर्ष 2022 तक कृषि निर्यात को बढ़ाकर 60 अरब डॉलर तक करने का लक्ष्य है।
  • कृषि जिंसों के मामले में भारत घाटे से अधिशेष वाला देश बन चुका है और उसे अपनी अतिरिक्त उपज के लिये नए बाज़ारों की आवश्यकता है।
  • कमज़ोर घरेलू कीमतों और किसानों की बढ़ती निराशा के बीच निर्यात के अन्य क्षेत्रों की आवश्यकता है। अच्छी पैदावार होने के बाद भी किसानों को फसलों के उचित दाम नहीं मिले, इससे भी निर्यात बढ़ाने की ज़रूरत उजागर होती है।

आगे की राह

  • पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करते समय नीति निर्माताओं को कृषि निर्यात का समर्थन करना चाहिये। समुद्री उत्पाद, मांस, तेल, मूँगफली, कपास, मसाले, फल और सब्जियाँ पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न नहीं करती हैं, चावल के निर्यात का उचित मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
  • सरकार को कुशल वैश्विक मूल्य शृंखला विकसित करनी होगी और सभी राज्यों में भूमि पट्टा बाज़ार को उदार बनाना होगा। इसे अनुबंध-कृषि के मध्यम से दीर्घकालिक आधार पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • सरकार की खाद्य प्रसंस्करण नीति मौजूदा स्वरूप में बड़ी परियोजनाओं और खाद्य आधारित क्लस्टरों के पक्ष में झुकी हुई है। इसमें छोटी-मझोली इकाइयों के लिये खास जगह नहीं है। अतः इस दिशा में सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है।

स्रोत: PIB