अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर नारीवादी दृष्टिकोण | 01 Jul 2023

प्रिलिम्स के लिये:

द्वितीय विश्व युद्ध, शीत युद्ध

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रति नारीवादी दृष्टिकोण

चर्चा में क्यों? 

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बदलती वैश्विक व्यवस्था में गैर-राज्य अभिनेताओं, जातीय तनाव और शीत युद्ध का उदय देखा गया। इसने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों (IR) के लिये वैकल्पिक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया जिसमें नारीवादी परिप्रेक्ष्य भी शामिल है जो अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र को लैंगिक आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से देखता है।

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के नारीवादी परिप्रेक्ष्य की उत्पत्ति: 

  • प्रत्यक्षवादी और उत्तर-सकारात्मकवादी:
    • अंतर्राष्ट्रीय संबंधों (IR) में नारीवादी परिप्रेक्ष्य वर्ष 1980 के दशक में प्रत्यक्षवादी और उत्तर-प्रत्यक्षवादी विद्वानों के बीच "तीसरी बहस" से उभरा था।
      • प्रत्यक्षवादियों का मानना था कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का एक मूल्य-तटस्थ क्षेत्र है जिसमें अराजकता और राष्ट्र राज्य जैसी परिभाषाएँ एवं संरचनाएँ तय हैं।
      • उत्तर-सकारात्मकवादियों ने इस दृष्टिकोण को चुनौती दी और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में आलोचनात्मक विश्लेषण, बहुलवाद एवं विविधता का आह्वान किया (जो उस समय तक यथार्थवादी और उदारवादी दृष्टिकोण के साथ हावी था)।

नोट: 

  • यथार्थवादियों का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र अराजकता की स्थिति में है (राष्ट्र राज्यों पर शासन करने तथा उन्हें क्या करना है यह बताने के लिये कोई व्यापक संप्रभु शक्ति नहीं है)।
    • इसलिये राष्ट्र लगातार 'सत्ता की राजनीति' में शामिल रहते हैं तथा अपने हितों एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं।
  •  दूसरी ओर उदारवादी विद्वान सहयोग को प्राथमिकता देते हैं। हालाँकि वे वैश्विक व्यवस्था के अराजक होने के आधार को लेकर सहमत हैं, उनका तर्क है कि सत्ता के बजाय राष्ट्र अपने हितों की रक्षा के लिये सक्रिय रूप से गठबंधन करते हैं।
  • नारीवादी:
    • नारीवादियों ने इन दृष्टिकोणों में निहित मानव स्वभाव की पुरुषों की धारणा को चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि इसने मानव स्वभाव के अभिन्न पहलुओं के रूप में सामाजिक प्रजनन और विकास की उपेक्षा की है।  
    • वे वैश्विक व्यवस्था को एक सामाजिक रूप से निर्मित पदानुक्रम के रूप में देखते हैं जिसने लैंगिक अधीनता को कायम रखा है।
    • नारीवादी युद्ध, संघर्ष और कूटनीति में महिलाओं के अनुभवों को हाशिये पर रखने की आलोचना करते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि महिलाओं की आवाज़, ज्ञान, दृष्टिकोण और अनुभवों को अक्सर पुरुष-केंद्रित "सार्वभौमिक" अनुभव के तहत अनदेखा या समाहित कर दिया जाता है।

युद्ध और संघर्षों पर चर्चा में महिलाओं की भागीदारी:

  • अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष में महिलाओं को अक्सर कमज़ोर और सुरक्षा की आवश्यकता के रूप में चित्रित किया जाता है, लेकिन इस परिप्रेक्ष्य ने उन्हें युद्ध की चर्चाओं और प्रक्रियाओं में भाग लेने से वंचित रखा है।
  • युद्ध और संघर्ष के क्षेत्र का एक पुरुष प्रधानता है, जहाँ महिलाओं को युद्ध और संघर्षों के दौरान उनकी सक्रिय भूमिका के बावजूद पूरी तरह से अदृश्य कर दिया जाता है, जैसे कि घायल व्यक्तियों की देखभाल करना तथा अपने युद्धग्रस्त परिवारों का समर्थन करने के लिये वेश्यावृत्ति की ओर रुख करना।
  • सुरक्षा के विमर्श में भी बलात्कार और यौन हिंसा के माध्यम से महिलाओं को विशेष रूप से निशाना बनाने को युद्ध के प्रभाव के रूप में देखा जाता है, न कि जातीय सफाए तथा नरसंहार के लिये राष्ट्रों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक प्रमुख सैन्य रणनीति के रूप में।

विभिन्न नारीवादी सिद्धांतों का IR में मौजूदा चुनौतियों को समझने में योगदान: 

  • उदारवादी नारीवाद:  
    • उदारवादी नारीवादी सिद्धांत मूल रूप से IR के पारंपरिक विचारों को चुनौती नहीं देता है, यह विषय-वस्तु पर सवाल उठाता है। उदारवादी नारीवाद वैश्विक राजनीति में लिंग अंतर की भूमिका और यौन हिंसा एवं तस्करी के रूप में महिलाओं पर युद्ध के असंगत प्रभाव को देखते हैं।
    • वे उच्च-स्तरीय राजनीति में अधिक महिला भागीदारी का आह्वान करते हैं और तर्क देते हैं कि अधिक महिला प्रतिनिधि की उपस्थिति मानवीय नीतियों को शांतिपूर्ण एवं सुविधाजनक बनाएगी।
  • रचनावादी नारीवाद: 
    • रचनावादी नारीवादी सिद्धांत यह दर्शाता है कि वैश्विक राजनीति में लैंगिक पहचान की क्या भूमिका है। यह लिंग को मुख्य घटक के रूप में देखता है जो संरचनाओं और व्यक्तिगत संबंधों को प्रभावित करता है।
      • यह लिंग के उस विचार पर ज़ोर देता है कि यह कैसे असमान वैश्विक भौतिक स्थितियों को कायम रखता है।
    • जबकि उदारवादी नारीवाद मौजूदा संरचनाओं के भीतर महिलाओं के लिये औपचारिक समानता और व्यक्तिगत अधिकारों को प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करता है, रचनावादी नारीवाद इस बात की जाँच करता है कि लिंग का सामाजिक रूप से निर्माण किया जाए एवं सच्ची समानता के लिये सामाजिक मानदंडों और संबंधों को बदलने का प्रयास करता है।
  • उत्तर संरचनावादी नारीवाद: 
    • एक उत्तर संरचनावादी नारीवादी दृष्टिकोण IR में आदेश/अराजकता, विकसित/ अविकसित, राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय आदि जैसे द्विआधारी भाषायी विरोधों के बारे में चर्चा करता है, जो स्त्री के ऊपर पुरुषत्व को कायम रखता है और उसे सशक्त बनाने का प्रयास करता है।
    • वे इस दावे के अत्यधिक आलोचक हैं कि उच्च-स्तरीय राजनयिक पदों पर अधिक महिलाएँ शांतिवादी नीतियों को बढ़ावा देंगी क्योंकि यह स्त्री के रूप में कुछ विशेषताओं को और अधिक आवश्यक बनाने एवं सुदृढ़ करने का प्रयास करता है।
  • उत्तर औपनिवेशिक नारीवाद: 
    • यह सभी क्षेत्रों और संस्कृतियों में महिलाओं के अनुभव की सार्वभौमिकता की धारणा को चुनौती देने का प्रयास करता है।
    • यह वैश्विक तौर पर दक्षिण में महिलाओं को शक्तिहीन, अभावग्रस्त, असहाय या एक समरूप श्रेणी के रूप में देखने के उदारवादी नारीवादियों के दृष्टिकोण की विशेष रूप से आलोचना करता है।

वर्तमान समय में IR के प्रति नारीवादी दृष्टिकोण की प्रासंगिकता:

  • लिंग असमानता:  
    • नारीवादी दृष्टिकोण लैंगिक असमानताओं को दूर करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है तथा असमानता को बनाए रखने वाली पारंपरिक शक्ति संरचनाओं को चुनौती देता है।
    • यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि लिंग किस प्रकार वैश्विक राजनीति को आकार देता है जिसमें सुरक्षा, विकास एवं मानवाधिकारों से संबंधित मुद्दे भी शामिल हैं।
  • शांति एवं सुरक्षा:  
    • नारीवादी विद्वानों और कार्यकर्त्ताओं ने सुरक्षा की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती दी है तथा मानव सुरक्षा को शामिल करने हेतु इस अवधारणा को व्यापक बनाया है, जिसमें व्यक्तियों और समुदायों का कल्याण एवं अधिकार शामिल हैं। 
    • उन्होंने महिलाओं पर संघर्षों के असंगत प्रभाव पर प्रकाश डाला है, शांति प्रक्रियाओं में महिलाओं को शामिल करने का समर्थन किया है और सुरक्षा मुद्दे के रूप में लिंग आधारित हिंसा को संबोधित करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया है।
  • वैश्विक शासन: 
    • IR के प्रति नारीवादी दृष्टिकोण वैश्विक शासन और संस्थानों की पुरुष-केंद्रित प्रकृति को चुनौती देता है।
    • यह निर्णयकारी निकायों में अधिक लैंगिक समानता का आह्वान करता है और वैश्विक नीतियों तथा एजेंडे को आकार देने में महिलाओं के दृष्टिकोण व विचारों को शामिल करने को बढ़ावा देता है।
    • यह देखभाल कार्य की मान्यता और अधिक न्यायसंगत तरीकों से संसाधनों एवं शक्ति के पुनर्वितरण पर भी ज़ोर देता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय नारीवाद:  
    • अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रति नारीवादी दृष्टिकोण अंतर्राष्ट्रीय नारीवादी नेटवर्क और आंदोलनों के महत्त्व को रखांकित करता है। यह विश्व स्तर पर महिलाओं के संघर्षों के अंतर्संबंध तथा आम चुनौतियों से निपटने के लिये सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता को स्वीकार करता है।
    • यह लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में सीमा पार एकजुटता और सहयोग के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।

निष्कर्ष:

  • यद्यपि नारीवादी अंतर्राष्ट्रीय संबंध सिद्धांतों ने लोकप्रियता हासिल की है फिर भी वे पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनने में पर्याप्त सफल नहीं हुए हैं। पर्यावरण नीतियों और गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं द्वारा वैश्विक क्षेत्र में और भी बड़ी भूमिका निभाने के साथ नारीवादी सिद्धांतों में वास्तविक दुनिया के समाधानों का विश्लेषण और उन्हें पेशकश करने की बहुत अधिक क्षमता है। 

स्रोत: द हिंदू