प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि | 30 May 2020

प्रीलिम्स के लिये:

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश

मेन्स के लिये:

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग’ (Department for Promotion of Industry and Internal Trade-DPIIT) द्वारा जारी नवीनतम आकँड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment - FDI) में वृद्धि दर्ज़ की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 18% की वृद्धि दर्ज की गई है जो वर्तमान में बढ़कर 73.46 बिलियन डॉलर हो गया है। यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पिछले चार वर्षों के दौरान सबसे अधिक है। इस निवेश के परिणामस्वरुप रोज़गार में सृजन होगा। 
  • विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा भारत में 247 मिलियन डॉलर का निवेश किया गया है।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान निम्नलिखित क्षेत्रों में अधिकतम प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है- 
    • सेवा (7.85 बिलियन डॉलर)
    • कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर (7.67 बिलियन डॉलर)
    • दूरसंचार (4.44 बिलियन डॉलर)
    • व्यापार (4.57 बिलियन डॉलर)
    • ऑटोमोबाइल (2.82 बिलियन डॉलर)
    • निर्माण (2 बिलियन डॉलर)
    • रसायन (1 बिलियन डॉलर)
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में अधिकतम योगदान सिंगापुर का (14.67 बिलियन डॉलर) है। हालाँकि यह निवेश वित्तीय वर्ष 2018-19 में सिंगापुर द्वारा किये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (16.22 बिलियन डॉलर) की तुलना में कम है।
  • गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में निम्नलिखित देशों का भी योगदान है- 
    • मॉरीशस (8.24 बिलियन डॉलर)
    • नीदरलैंड (6.5 बिलियन डॉलर)
    • अमेरिका (4.22 बिलियन डॉलर)
    • केमेन द्वीप (3.7 बिलियन डॉलर)
    • जापान (3.22 बिलियन डॉलर)
    • फ्राँस (1.89 बिलियन डॉलर)।
  • ध्यातव्य है कि वित्तीय वर्ष 2018-1) के दौरान कुल 62 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ था। 
  • वित्तीय वर्ष 2013-14 में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 36 बिलियन डॉलर का था, जबकि वर्तमान में यह दोगुना हो गया है। 

विदेशी निवेश (Foreign Investment):

  • जब कोई देश विकासात्मक कार्यो के लिये अपने घरेलू स्रोत से संसाधनों को नहीं जुटा पाता है तो उसे देश के बाहर जाकर शेष विश्व की अर्थव्यवस्था से संसाधनों को जुटाना पड़ता है।
  • शेष विश्व से ये संसाधन या तो कर्ज (ऋण) के रूप में जुटाए जाते हैं या फिर निवेश के रूप में।
  • कर्ज के रूप में जुटाए गए संसाधनों पर ब्याज देना पड़ता है, जबकि निवेश की स्थिति में हमें लाभ में भागीदारी प्रदान करनी होती है।
  • विदेशी निवेश विकासात्मक कार्यों के लिये एक महत्त्वपूर्ण ज़रिया है। विदेशी निवेश को निम्न दो रूपों में देखा जा सकता है- 
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI):
    • यदि विदेशी निवेशक को अपने निवेश से कंपनी के 10% या अधिक शेयर प्राप्त हो जाएँ जिससे कि वह कंपनी के निदेशक मंडल में प्रत्यक्ष भागीदारी कर सके तो इस निवेश को ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ कहते हैं। इससे विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है।
  • विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign Portfolio Investment- FPI):
    • यदि किसी विदेशी निवेशक द्वारा कंपनी के 10% से कम शेयर खरीदे जाएँ तो उसे विदेशी पोर्टफोलियो निवेश कहते हैं। FPI के अंतर्गत विदेशी संस्थाओं द्वारा खरीदे गए शेयर को विदेशी संस्थागत निवेश, जबकि विदेशी व्यक्तियों द्वारा खरीदे गए शेयर को पत्रागत/अर्हता प्राप्त विदेशी निवेश कहते हैं।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की तुलना में बेहतर माने जाते हैं क्योंकि FDI किसी देश की अर्थव्यवस्था को समुचित स्थिरता प्रदान करते हैं जबकि FPI निवेश अस्थिर प्रकृति के होते हैं और इनमें संकट की स्थिति में अर्थव्यवस्था से निकल जाने की प्रवृति देखी जाती है।

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश:

  • भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को दो अलग-अलग मार्गों के माध्यम से अनुमति दी जाती है- पहला, स्वचालित (Automatic) और दूसरा, सरकारी अनुमोदन के माध्यम से।
  • स्वचालित मार्ग में विदेशी संस्थाओं को निवेश करने के लिये सरकार की पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है।
  • हालाँकि उन्हें निर्धारित समयावधि में निवेश की मात्रा के बारे में भारतीय रिज़र्व बैंक को सूचित करना होता है।
  • विशिष्ट क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सरकारी अनुमोदन के माध्यम से होता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस