विलुप्ति के कगार पर केरल की छह नदियाँ | 31 Oct 2017

संदर्भ

क्या केंद्रीय त्रावणकोर शीघ्र ही नदियों और प्राकृतिक जलधाराओं से रहित स्थान बन जाएगा? हालाँकि यह प्रश्न विचारणीय हो सकता है परन्तु वास्तविकता यही है कि वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक अध्ययन से इस बात का खुलासा हुआ है कि त्रावणकोर की 6 नदियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं।   

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • दरअसल, पम्मा (Pampa) नदी प्रणाली की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह अनुमान लगाया गया है कि यदि इसकी यही स्थिति बनी रही तो यह अगले 55 वर्षों में पूर्णतः विलुप्त हो जाएगी।
  • इसके अलावा अचेनकॉइल (Achencoil) के अगले 15 वर्षों, मणिमाला (Manimala) के 20 वर्षों, मीनाचिल (Meenachil) के अगले 45 वर्षों, मुवात्तुपुझा (Muvattupuzha) के 20 वर्षों और चलाकुडी (Chalakudy) आदि नदियों  के अगले 15 से 20 वर्षों में पूर्णतः विलुप्त होने की संभावना बताई गई है।
  • ये नदी प्रणालियाँ पतानमतिट्टा (Pathanamthitta), कोट्टायम (Kottayam) और अलापुझा (Alappuzha) क्षेत्र में हैं।
  • वर्ष 1940-1980 के दौरान नदियों के अपवाह क्षेत्रों में अत्यधिक वनोंमुलन के परिणामस्वरूप इन नदी प्रणालियों की कई सहायक नदियाँ सूख चुकी हैं जिससे इनका नियमित प्रवाह (मुख्यतः गर्मी के दिनों में) प्रभावित हुआ है।
  • कोझनचेरी (Kozhencherry) का ऊपरी समतल भाग पम्पा की नदी प्रणाली की अधोगति की ओर संकेत करता है।
  • जल के तलों में आई एकाएक कमी के कारण नदियों पर बने पुलों और जल पम्पिंग स्टेशनों की वर्तमान स्थिति काफी खराब है।

त्रावणकोर में नदियों के विलुप्तिकरण के लिये ज़िम्मेदार कारक

  • नदियों के अपवाह क्षेत्र में वनों का गिरना।
  • अवैज्ञानिक मृदा खनन।
  • सहायक नदियों का क्षरण।
  • कूड़े के कारण होने वाला प्रदूषण।
  • विष, डायनामाइट आदि का उपयोग कर अवैध तरीके से मछली पकड़ना।
  • शहरीकरण।
  • नदियों के तलों की जलग्रहण क्षमता में कमी।
  • शहरीकरण के दौरान किये जाने वाले भूमि रूपांतरण से भी नदियों में जाने वाली कई प्राकृतिक जलधाराओं का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। मृदा के जमाव के अभाव में नदियों के तलों की जलग्रहण क्षमता नष्ट हो जाती है, जिस कारण वर्षा होने पर जो पानी नदियों में समाहित होता है उसका प्रवाह आगे की ओर हो जाता है।

निष्कर्ष 

पम्पा, अचेंकॉइल (Achencoil), मणिमाला और मीनाचिल नदियों के लिये एक एकीकृत कार्य योजना की आवश्यकता पर बल दिया गया है। ध्यातव्य है कि ये सभी नदियाँ वेमबनाड़ झील में जाकर मिलती हैं। पम्पा और अचेंकॉइल को केन्द्रीय त्रावणकोर की जीवनरेखाओं के रूप में संदर्भित किया जाता है। इनकी मौजूदा स्थिति का कारण पर्यावरण और नदी संरक्षण के प्रति मनुष्यों का असंवेदनशील होना ही है।