2000 वर्ष पुरानी बस्ती की खोज | 15 Nov 2019

प्रीलिम्स के लिये: खुदाई के निष्कर्ष, खुदाई स्थल की अवस्थिति

मेन्स के लिये: भारत में भारत प्रागैतिहासिक व्यापार गतिविधियाँ

चर्चा में क्यों?

आंध्रप्रदेश के नेल्लोर में नायडूपेट के निकट गोट्टीप्रोलू में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की एक टीम द्वारा की गई खुदाई के पहले चरण में व्यापक तौर पर ईंटों वाली संरचना से घिरी एक विशाल बस्ती के अवशेष मिले हैं।

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स्थल के विषय में

  • गोट्टीप्रोलू (13° 56’ 48” उत्तर; 79° 59’ 14” पूरब) में नायडूपेट से लगभग 17 किलोमीटर पूरब और तिरूपति तथा नेल्लोर से 80 किलोमीटर दूर स्वर्णमुखी की सहायक नदी के दाएँ किनारे पर स्थित है।

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  • विस्तृत कटिबंधीय अध्ययन और ड्रोन से मिली तस्वीरों से एक किलेबंद प्राचीन बस्ती की पहचान करने में मदद मिली है।
  • बस्ती की पूर्वी और दक्षिणी ओर किलाबंदी काफी स्पष्ट है, जबकि दूसरी ओर आधुनिक बस्तियों के कारण यह अस्पष्ट प्रतीत होती है।
  • इस स्थान की खुदाई से ईंट से निर्मित विभिन्न आकारों और रूपों की संरचना मिली है।
  • खुदाई में मिली कई अन्य प्राचीन वस्तुओं में विष्णु की एक आदमकद मूर्ति और वर्तमान युग की शुरूआती शताब्दियों के दौरान प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के बर्तन शामिल हैं।

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  • इस खुदाई में पक्की ईंटों से निर्मित संरचना मिली है, जो 75 मीटर से अधिक लंबी, लगभग 3.40 मीटर चौड़ी और लगभग 2 मीटर ऊँची है।
  • खुदाई में ईंटों से बना आयताकार टैंक भी मिला है।

स्थल के निर्माण की समायावधि 

  • ईंटों का आकार 43-40 सेमी आकार है, जिसकी तुलना कृष्णा घाटी यानी अमरावती और नागार्जुनकोंडा की सातवाहन/इक्ष्वाकु काल की संरचनाओं से की जा रही है।
  • ईंटों के आकार और अन्य खोजों के आधार पर इन्हें दूसरी-पहली शताब्दी ईस्वी पूर्व अथवा उसके कुछ समय बाद (लगभग 2000 वर्ष पूर्व) के समय का माना जा रहा है।

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  • खुदाई में मिले अवशेषों के अलावा, गाँव के पश्चिमी हिस्से की खुदाई से विष्णु की मूर्ति भी मिली है।
  • इस क्षेत्र के लोगों ने, प्राचीनकाल में व्यापार में सुगमता के लिये समुद्र, नदी और झील (पुलिकट) से निकटता को ध्यान में रखते हुए, 15 किलोमीटर की दूरी पर दो नगरों को बसाने को प्रमुखता दी थी।

विष्णु की आदमकद मूर्ति

  • खुदाई से प्राप्त विष्णु की मूर्ति की ऊँचाई लगभग 2 मीटर है।
  • विष्णु की यह प्रतिमा चार भुजाओं वाली है जिसमें ऊपर की ओर दाहिनी तथा भुजाओं में क्रमशः चक्र और शंख विद्यमान है।
  • नीचे की ओर दाहिनी भुजा श्रेष्ठ वरदान मुद्रा में है और बायाँ हाथ कटिहस्थ मुद्रा (कूल्हे पर आराम की मुद्रा) में है।
  • अलंकृत शिरोवस्त्र, जनेऊ/यज्ञोपवीत (तीन सूत्रों वाला धागा) और सजावटी वस्त्र जैसी मूर्तिकला विशेषताएँ इस तथ्य की और संकेत करती हैं कि यह मूर्ति पल्लव काल (लगभग 8 वीं शताब्दी) की है।

टेराकोटा से निर्मित स्त्री की लघुमूर्ति

  • दूसरी प्राचीन वस्तु जो खुदाई से प्राप्त हुई है वह है स्त्री की लघु मूर्ति (टेराकोटा से निर्मित) जिसमें दोनों हाथ ऊपर की ओर उठे हुए हैं।

शंक्वाकार घड़े

  • मिटटी के बर्तनों में सबसे आकर्षक खोज निर्माण संरचना के पूर्व दिशा में रखे गए शंक्वाकार घड़ों या जार का तल/आधार है।
  • इस तरह के शंक्वाकार जार तमिलनाडु में व्यापक रूप से पाए जाते हैं और ऐसा माना जाता है कि इन्हें रोमन एम्फ़ोरा जार (ऐसे जार जिन्हें पकड़ने के लिये दो हैंडल बने होते थे) की नकल करके बनाया गया है।
  • खुदाई से प्राप्त टूटी हुई टेराकोटा पाइप की एक शृंखला जो एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, से इस स्थल के निवासियों द्वारा निर्मित नागरिक सुविधाओं के बारे में पता चलता है।

जल निकासी की व्यवस्था (Drainage system)

  • स्थल की खुदाई से प्राप्त जल निकासी के अवशेषों से उस समय की जल निकासी व्यवस्था को समझा सकता है।
  • पुरापाषाण और नवपाषाण काल के मिश्रित पत्थर के औजार इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक जीवन की और भी संकेत करते हैं।

स्थल का महत्त्व

  • खुदाई स्थल पर एम्फोरा जारों की उपस्थिति इस बात की ओर संकेत करती है कि ये बस्तियाँ व्यापार का महत्त्वपूर्ण केंद्र रही होंगी।
  • समुद्र तट से स्थल की निकटता से पता चलता है कि यह स्थल समुद्री व्यापार में शामिल रणनीतिक बस्ती के रूप में कार्य करता होगा। स्थल पर भविष्य में किये जाने वाला शोध कार्यों से इस स्थल के बारे में और अधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आएंगे।
  • गोट्टीप्रोलू और इसके चारों और 15 किमी. के दायरे में किये अन्वेषणों से महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए हैं जैसे- पुडुुरु में ऐतिहासिक ऐतिहासिक बस्ती, मल्लम में सूर्यब्रह्मण्य मंदिर, यकासिरी (Yakasiri) में अद्वितीय रॉक-कट लेटराइट वापी/बावड़ी (Step-well) तथा तिरुमुरु के विष्णु मंदिर।
  • इसके अलावा इस स्थल के पूर्व में समग्र समुद्री तट विभिन्न प्रकार के पुरावशेषों से भरा हुआ है, जो सांस्कृतिक रूप से एक दूसरे से संबंधित हैं।
  • प्रागैतिहासिक समय के दौरान 15 किलोमीटर के दायरे में स्थित ये दोनों किलेबंद नगरीय बस्तियाँ इस बात का संकेत देती हैं कि महत्त्वपूर्ण रणनीतिक उपस्थिति (समुद्र तट, नदी तथा पुलीकट झील से निकटता) के चलते इस स्थान को व्यापार हेतु अधिक प्रमुखता दी गई थी।

स्रोत: पी.आई.बी.