दक्षिण पूर्व एशिया को EU का सहयोग | 10 Apr 2021

चर्चा में क्यों?

यूरोपीय संघ (EU) ने दक्षिण पूर्व एशिया में जलवायु अनुकूल विकास का समर्थन करने हेतु लाखों यूरो के वित्तपोषण का निर्णय लिया है।

  • दिसंबर 2020 में यूरोपीय संघ, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन ‘आसियान’ का ‘रणनीतिक भागीदार’ बना था, जिसके बाद से दोनों क्षेत्रीय समूहों ने जलवायु परिवर्तन नीति को सहयोग का एक महत्त्वपूर्ण घोषित किया था।

प्रमुख बिंदु 

दक्षिण पूर्व एशिया के लिये यूरोपीय संघ की सहायता:

  • बहुपक्षीय सहायता
    • यूरोपीय संघ आसियान क्षेत्र के लिये विकास सहायता का सबसे बड़ा प्रदाता है, और वह विभिन्न पर्यावरण संबंधी कार्यक्रमों के लिये लाखों यूरो प्रदान करता है।
    • इसमें ‘आसियान स्मार्ट ग्रीन सिटिज़’ पहल के लिये 5 मिलियन यूरो और निर्वनीकरण को रोकने के लिये शुरू की गई ‘फाॅरेस्ट लॉ एंफोर्समेंट, गवर्नेंस एंड ट्रेड इन आसियान’ पहल के लिये 5 मिलियन यूरो शामिल है।
  • व्यक्तिगत सहायता
    • बहुपक्षीय सहायता के साथ, यूरोपीय संघ आसियान सदस्य देशों के साथ व्यक्तिगत स्तर पर भी कार्य कर रहा है और उनकी पर्यावरण अनुकूल नीतियों जैसे- थाईलैंड का बायो-सर्कुलर-ग्रीन इकोनॉमिक मॉडल और सिंगापुर का ग्रीन प्लान 2030 आदि में सहायता कर रहा है।

दक्षिण पूर्व एशिया में यूरोपीय संघ के समक्ष मौजूद समस्याएँ

  • दक्षिण पूर्व एशिया में यूरोपीय संघ के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती इस क्षेत्र की पर्यावरण संबंधी नीतियाँ है, क्योंकि यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से संबंधित विभिन्न पहलुओं में गलत दिशा में जा रहा है।
  • जलवायु जोखिम सूचकांक 2020 के अनुसार वर्ष 1999 से वर्ष 2018 के बीच जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले पंद्रह देशों में से पाँच आसियान देश थे।

दक्षिण पूर्व एशिया में कोयले की खपत

  • वर्ष 2040 तक दक्षिण पूर्व एशिया की ऊर्जा माँग में 60% वृद्धि होने का अनुमान है।
  • अनुमान के मुताबिक, आसियान क्षेत्र में वर्ष 2030 कोयला आधारित ऊर्जा, ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रूप में प्राकृतिक गैस से आगे निकल जाएगी और वर्ष 2040 तक यह क्षेत्र के अनुमानित CO2 उत्सर्जन में लगभग 50% का योगदान देगा।
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के आँकड़ों की मानें तो वर्ष 2019 में, दक्षिण पूर्व एशिया ने लगभग 332 मिलियन टन कोयले का उपभोग किया था, जो कि एक दशक पहले किये गए उपभोग का लगभग दोगुना था।
  • साउथ-ईस्ट एशिया एनर्जी आउटलुक 2019 के मुताबिक, यह क्षेत्र CO2 उत्सर्जन में लगभग दो-तिहाई यानी लगभग 2.4 गीगाटन वृद्धि में योगदान देगा।

दक्षिण पूर्व एशिया में यूरोपीय संघ के लिये जोखिम

  • निर्यातकों का आक्रोश
    • यदि यूरोपीय संघ इस क्षेत्र में कोयले के प्रयोग को लेकर कोई कड़ा कदम उठाता है, तो उसे कोयले के प्रमुख निर्यातकों जैसे- चीन, भारत और ऑस्ट्रेलिया आदि के आक्रोश का सामना करना पड़ सकता है।
  • नीतिगत प्रतिरोध
    • दक्षिण पूर्व एशिया में यूरोपीय संघ की जलवायु परिवर्तन नीति को पहले से ही प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है।
      • इंडोनेशिया ने पिछले वर्ष यूरोपीय संघ द्वारा पाम ऑयल पर लागू किये गए चरणबद्ध प्रतिबंधों के विरुद्ध विश्व व्यापार संगठन में कार्यवाही की शुरुआत की थी।
        • यूरोपीय संघ ने तर्क दिया है कि ये प्रतिबंध पर्यावरण की रक्षा के लिये आवश्यक हैं, जबकि विश्व के सबसे बड़े पाम ऑयल उत्पादक इंडोनेशिया के मुताबिक, ये प्रतिबंध केवल संरक्षणवादी है।
      • दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पाम ऑयल उत्पादक, मलेशिया यूरोपीय संघ के विरुद्ध इंडोनेशिया का समर्थन कर रहा है।
  • पाखंड के आरोप
    • यूरोपीय संघ के लिये दूसरी समस्या यह है कि यदि वह दक्षिण-पूर्व एशिया में कोयला आधारित ऊर्जा पर अधिक ज़ोर देता है, तो उस पर पाखंड के आरोप लगाए जा सकते हैं।
      • यूरोपीय संघ में शामिल पोलैंड और चेक गणराज्य अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिये कोयला आधारित ऊर्जा पर निर्भर हैं।
      • वर्ष 2019 में दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप दोनों ने वैश्विक स्तर पर थर्मल कोयले के आयात में 11-11% का योगदान दिया था।

जलवायु परिवर्तन पर आसियान देशों के साथ भारत का समन्वय:

  • वर्ष 2012 में दोनों देशों ने 'अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में आसियान-भारत सहयोग पर नई दिल्ली घोषणा’ को अपनाया था।
  • वर्ष 2007 में जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में अनुकूलन और शमन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने हेतु पायलट परियोजनाओं को शुरू करने के लिये 5 मिलियन डॉलर के साथ आसियान-भारत ग्रीन फंड की स्थापना की गई थी।
  • आसियान और भारत IISc, बंगलूरु के साथ साझेदारी के माध्यम से जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता जैसे कई क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस