लाल बहादुर शास्त्री के जीवन के नैतिक मूल्य | 04 Oct 2022

मेन्स के लिये:

लाल बहादुर शास्त्री के जीवन के नैतिक मूल्य

चर्चा में क्यों?

भारत ने 2 अक्तूबर, 2022 को देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 118वीं जयंती मनाई।

शास्त्री जी का जीवन एक संदेश:

  • जाति व्यवस्था के खिलाफ:
    • शास्त्री का जन्म रामदुलारी देवी और शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के घर हुआ था। हालाँकि प्रचलित जाति व्यवस्था के खिलाफ होने के कारण उन्होंने अपना उपनाम छोड़ने का फैसला किया।
    • वर्ष 1925 में वाराणसी के काशी विद्यापीठ से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें 'शास्त्री' की उपाधि दी गई।
    • 'शास्त्री' शीर्षक 'विद्वान' या ऐसे व्यक्ति को संदर्भित करता है, जो पवित्र शास्त्रों का ज्ञाता होता है। इस प्रकार शास्त्री जी ने छोटी सी उम्र में ही व्यापक दृष्टिकोण अपनाया।
  • प्रतिकूल समय के दौरान ज़िम्मेदारियाँ लेना:
    • वह देश की असंख्य ज़िम्मेदारियों को उठाने वाले सार्वजनिक जीवन जीने वाले दिग्गजों में से एक थे।
    • विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने खुद को जवाबदेह ठहराने के साथ एक सच्चे नेता के गुणों का प्रदर्शन किया।
    • इतने कर्तव्यनिष्ठ थे कि जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में रेल मंत्री रहने के दौरान वर्ष 1956 में तमिलनाडु के अरियालुर में एक ट्रेन दुर्घटना के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
    • इनके व्यक्तित्व  की नेहरू सहित सभी ने सराहना की,गई जिन्हें वे अपना "हीरो" मानते थे।
  • सार्वजनिक और निजी जीवन में एकरूपता:
    • वर्ष 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान देश खाद्यान्न की भारी कमी का सामना कर रहा था।
      • इस समय अमेरिका की तरफ से भी खाद्य आपूर्ति में कटौती का अतिरिक्त दबाव था।
    • इस संकट का सामना करते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने घोषणा की कि अगले कुछ दिनों के लिये वह अपने पूरे परिवार के साथ शाम का भोजन छोड़ देंगे।
  • नैतिकता:
    • ऐसा कहा जाता है कि उनके आधिकारिक उपयोग वाली कार का एक बार उनके बेटे ने इस्तेमाल कर लिया था।  
      • जब उन्हें इस बात का पता चला तब उन्होंने अपने ड्राइवर से यह पता करने को कहा कि गाड़ी कितनी दूर चली है और फिर बाद में उन्होंने सरकार के खाते में उतना पैसा जमा कर दिया

लाल बहादुर शास्त्री की प्रासंगिकता:

  • भारतीयों को उनकी सादगी, विनम्रता, मानवतावाद, तपस्या, कड़ी मेहनत, समर्पण और राष्ट्रवाद का अनुकरण करना चाहिये।
  • वर्ष 1964 में शास्त्री जी का पहला स्वतंत्रता दिवस भाषण आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उस समय था इसमें उन्होंने चरित्र निर्माण एवं नैतिक शक्ति पर ज़ोर दिया था, जिसका विशेष महत्त्व  है, खासकर तब जब हम अपने आसपास मूल्यों के सर्वांगीण पतन को देख सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस