एटलिन जलविद्युत परियोजना | 19 Jan 2023

प्रिलिम्स के लिये:

एटलिन जलविद्युत परियोजना, दिर और टैंगन नदी, दिबांग नदी, वन सलाहकार समिति (FAC), पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA), बाँधों, नदियों और लोगों पर दक्षिण एशिया नेटवर्क (SANDRP)।

मेन्स के लिये:

दिर और टैंगन नदी का महत्त्व, एटलिन जलविद्युत परियोजना की राह में कठिनाइयाँ।

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में एटलिन जलविद्युत परियोजना को उसके वर्तमान स्थिति में रद्द कर दिया है।

  • इस योजना ने सीमित भंडारण के साथ टू रन-ऑफ-द-रिवर योजना को जोड़ा, जिस हेतु टैंगोन और दिर नदियों पर कंक्रीट गुरुत्त्वाकर्षण बाँधों की आवश्यकता थी।  
  • 2008 में अपनी स्थापना के बाद से ही यह पारिस्थितिक क्षति, वन अतिक्रमण और आदिवासी विस्थापन जैसी चिंताओं के कारण विवादों में रहा।

Arunachal-pradesh

दिर और टैंगन नदी का महत्त्व: 

  • अरुणाचल प्रदेश, भारत में दिबांग नदी (ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी) की दोनों सहायक नदियों, दिर और टैंगन नदी का निम्नलिखित महत्त्व है:
    • हाइड्रोलॉजिकल: दोनों नदियाँ सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन के लिये पानी उपलब्ध कराकर क्षेत्र के समग्र जल विज्ञान में योगदान करती हैं।
    • पारिस्थितिक: दिर और टैंगन नदियाँ दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों सहित विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों को जीवन प्रदान करती हैं।
    • पर्यटक आकर्षण: दिबांग के साथ-साथ दिर और टैंगन नदियों का प्राकृतिक सौंदर्य प्रमुख पर्यटन स्थल है।

एटलिन जलविद्युत परियोजना के संदर्भ में चिंताएँ:

  • पर्यावरणीय प्रभाव: इस परियोजना में दिबांग नदी पर एक बड़े बाँध का निर्माण शामिल होगा, जो वन और वन्यजीव आवास के एक बड़े क्षेत्र को जलमग्न कर सकता है।
    • इससे स्थानीय समुदायों का विस्थापन हो सकता है और क्षेत्र की जैवविविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • स्थानीय समुदायों का विस्थापन: यह परियोजना हज़ारों लोगों को उनके घरों और आजीविका से विस्थापित करेगी, जिनमें से कई स्थानीय समुदाय हैं जो अपनी आजीविका के लिये दिबांग नदी पर निर्भर हैं।
  • नदी पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: परियोजना द्वारा नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बदलने के कारण यह मछली के प्रवास और प्रजनन को प्रभावित करेगी। 
    • इसका उन स्थानीय समुदायों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जो अपनी आजीविका के लिये मछली पकड़ने पर निर्भर हैं।
  • भूवैज्ञानिक और भूकंपीय जोखिम: परियोजना के लिये पर्यावरण मंज़ूरी (Environmental Clearance- EC) दी जाने के दौरान द साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर एंड पीपल (SANDRP) ने वर्ष 2015 में जैवविविधता के लिये भूवैज्ञानिक और भूकंपीय जोखिमों एवं खतरों पर प्रकाश डाला था।
  • मुद्दे की हालिया स्थिति: वन सलाहकार समिति ने अरुणाचल प्रदेश सरकार को मूलभूत चीज़ों पर ध्यान देने और परियोजना का पुन:अवलोकन कर योजना प्रस्तुत करने के लिये कहा है।

वन सलाहकार समिति

  • यह ‘वन (संरक्षण) अधिनयम, 1980 के तहत स्थापित एक संविधिक निकाय है। 
  • FAC ‘केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ (Ministry of Environment, Forest and Climate Change-MOEF&CC) के अंतर्गत कार्य करती है।
  • यह समिति गैर-वन उपयोगों जैसे-खनन, औद्योगिक परियोजनाओं आदि के लिये वन भूमि के प्रयोग की अनुमति देने और सरकार को वन मंज़ूरी के मुद्दे पर सलाह देने का कार्य करती है।

आगे की राह

  • समुदाय-आधारित दृष्टिकोण: इस क्षेत्र की स्थानीय आबादी से संवाद स्थापित किया जाना चाहिये और यह सुनिश्चित करने के लिये निर्णय लेने में उनकी भागीदारी होनी चाहिये ताकि अंततः उनकी चिंताएँ भी प्रतिबिंबित हों।
  • पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों का सीमांकन: जिन क्षेत्रों में जैवविविधता के नुकसान का खतरा है, उन्हें ठीक से चिह्नित किया जाना चाहिये ताकि उन्हें किसी प्रकार की बाधा का सामना न करना पड़े।
  • पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA): स्थानीय पर्यावरण पर परियोजना के प्रभाव का उचित और पूर्ण मूल्यांकन कर व्यापक रूप से अध्ययन किया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रश्न. टिहरी जलविद्युत परिसर निम्नलिखित में से किस नदी पर स्थित है? (2008)

(a) अलकनंदा
(b) भागीरथी
(c) धौलीगंगा
(d) मंदाकिनी

उत्तर: (b)


प्रश्न. तपोवन और विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजनाएँ कहाँ स्थित हैं? (2008)

(a) मध्य प्रदेश
(b) उत्तर प्रदेश
(c) उत्तराखंड
(d) राजस्थान

उत्तर: (c)

स्रोत: डाउन टू अर्थ