एंडोफाइटिकैक्टिनो बैक्टीरिया | 05 Mar 2020

प्रीलिम्स के लिये:

एंडोफाइटिकैक्टिनो बैक्टीरिया,

मेन्स के लिये:

भारत में चाय का उत्पादन

चर्चा में क्यों?

प्रसिद्ध वैज्ञान पत्रिका ‘फ्रंटियर्स’ के एक लेख के अनुसार, चाय के पौधे से जुड़े एंडोफाइटिकैक्टिनो (Endophyticactino) बैक्टीरिया चाय के पौधों के विकास तथा कवकनाशी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।

मुख्य बिंदु:

  • एंडोफाइटिकैक्टिनो बैक्टीरिया सामान्यत: स्वतंत्र रूप से अपना जीवन बिताते है, परंतु 46 विलगित बैक्टीरिया पर वैज्ञानिकों द्वारा किये गए अध्ययन में इन बैक्टीरियों को बिल्कुल अलग वातावरण में उपस्थित पाया गया। ये बैक्टीरिया चाय के पौधों में रोग उत्पन्न नहीं करते हैं तथा अपने जीवन-चक्र के लिये इन पौधों पर कम-से-कम निर्भर रहते है।
  • 46 विलगित बैक्टीरियों में से 21 ने कवक फाइटोपैथोजेन (Phytopathogens- पौधों में रोग उत्पन्न करने वाले) के विकास को बाधित किया तथा कवक के विकास को रोकने में प्रभावी भूमिका प्रदर्शित की।
  • अधिकांश एंडोफाइटिकैक्टिनो बैक्टीरिया ने कवकनाशी के रूप में कार्य किया जो चिटिनास (Chitinases) की उपस्थिति को दर्शाते हैं। चिटिनास विशेष प्रकार के एंजाइम हैं जो चिटिन के ग्लाइकोसिडिक बॉन्ड को तोड़ते हैं। चिटिन कवक की कोशिका भित्ति का एक घटक है।

शोध का महत्त्व:

  • एंडोफाइटिक एक्टिनोबैक्टीरिया का अनुप्रयोग चाय बागान में रासायनिक आगतों में कमी ला सकता है।
  • भविष्य में वाणिज्यिक चाय उत्पादन के विकास को बढ़ावा देने के लिये एंडोफाइटिक एक्टिनोबैक्टीरियल का परीक्षण किया जा सकता है।
  • यह शोध इस बात की पुष्टि करता है कि एंडोफाइटिकैक्टिनो बैक्टीरिया में बहु-वृद्धिकारक गुणों जैसे- IAA उत्पादन, (Indole Acetic Acid- राइजोस्फीयर बैक्टीरिया का कार्य) फॉस्फेट घुलनशीलता, सिड़ेरोफर उत्पादन (Siderophore- सूक्ष्मजीवों में आयरन को स्थानांतरण का कार्य) प्रदर्शित करने की क्षमता है। अत: इस बैक्टीरिया का उपयोग चाय के उत्पादन को बढ़ाने तथा सतत् प्रबंधन में किया जा सकता है।
  • यह शोध कार्य ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ (Institute of Advanced Study in Science and Technology- IASST) गुवाहाटी, द्वारा किया गया।
  • यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत स्थापित एक स्वायत्त संस्थान है।

भारत में चाय का उत्पादन:

  • चाय एक रोपण कृषि है जो पेय पदार्थ के रूप में प्रयोग की जाती है। काली चाय की पत्तियाँ किण्वित होती हैं जबकि चाय की हरी पत्तियाँ अकिण्वित होती हैं। चाय की पत्तियों में कैफीन तथा टैनिन की प्रचुरता पाई जाती है।
  • यह उत्तरी चीन में पहाड़ी क्षेत्रों की देशज फसल है। यह उष्ण आर्द्र तथा उपोष्ण आर्द्र कटिबंधीय जलवायु वाले तरंगित (हलकी ढाल वाले) भागों पर अच्छे अपवाह वाली मिट्टी में बोई जाती है।
  • भारत में चाय की खेती वर्ष 1840 में असम की ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में प्रारंभ हुई जो आज भी देश का प्रमुख चाय उत्पादन क्षेत्र है। बाद में इसकी कृषि पश्चिमी बंगाल के उपहिमालयी भागों; दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी तथा कूचबिहार में प्रारंभ की गई।
  • दक्षिण में चाय की खेती पश्चिमी घाट की नीलगिरि तथा इलायची की पहाड़ियों के निचले ढालों पर की जाती है।
  • भारत में असम तथा पश्चिम बंगाल चाय के अग्रणी उत्पादक राज्य हैं।

स्रोत: पीआईबी