उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2019 | 28 Nov 2019

प्रीलिम्स के लिये

उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2019 क्या है?

मेन्स के लिये

पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में विभिन्न देशों की भूमिका।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environmental Programme-UNEP) ने उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2019 (Emission Gap Report 2019) प्रकाशित की, जिसमें जलवायु परिवर्तन के संभावित खतरों को लेकर चिंता जाहिर की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • रिपोर्ट में यह बात कही गई कि यदि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में वर्ष 2020-30 के दौरान प्रतिवर्ष 7.6 प्रतिशत की कमी नहीं की गई तो विश्व, पेरिस समझौते के तहत किये 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकेगा।
  • रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों (Green House Gases-GHG) के उत्सर्जन में प्रतिवर्ष 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
  • इस वजह से वर्तमान में कुल वैश्विक GHG उत्सर्जन 55.3 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य (Gigatonne Carbon Dioxide Equivalent-GtCO2e) हो गया है।
  • रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में यदि पेरिस समझौते के तहत निर्धारित सभी लक्ष्यों का पालन किया जाता है, तब भी वर्ष 2030 तक वैश्विक तापमान में 3.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी जिसके जलवायु पर व्यापक एवं घातक परिणाम होंगे।
  • उपभोग आधारित उत्सर्जन अनुमान (Consumption-based Emission Estimates) के आधार पर कुछ विकासशील देशों द्वारा अधिक मात्रा में कार्बन उत्सर्जन किये जाने के बावजूद यह विकसित देशों की तुलना में कम है। उदाहरण के तौर पर चीन यूरोपियन संघ की तुलना में अधिक CO2 या CO2e का उत्सर्जन करता है परंतु प्रति व्यक्ति CO2 उपभोग के मामले में यह यूरोपियन संघ से कहीं पीछे है।

GtCO

  • विश्व का 78 प्रतिशत GHG का उत्सर्जन G20 देशों द्वारा होता है जबकि चीन, अमेरिका, यूरोपियन संघ तथा भारत मिलकर 55 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं।
  • यद्यपि लगभग 65 देशों ने वर्ष 2050 तक अपने GHG के उत्सर्जन में कुल शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है लेकिन इसके क्रियान्वयन के लिये कुछ ही देशों ने अपनी रणनीति बनाई है।

उत्सर्जन गैप (Emission Gap) क्या है?

  • उत्सर्जन अंतर को प्रतिबद्धता गैप (Commitment Gap) भी कहा जा सकता है। इसके द्वारा यह आकलन किया जाता है कि जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिये हमें क्या करना चाहिये तथा हम वास्तविकता में क्या कर रहे हैं।
  • इसके द्वारा कार्बन उत्सर्जन को निर्धारित लक्ष्यों तक कम करने के लिये आवश्यक स्तर तथा वर्तमान के कार्बन उत्सर्जन स्तर का अंतर निकाला जाता है।

इस रिपोर्ट में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने हेतु भविष्य की रणनीति के बारे में भी विस्तार से चर्चा की गई है जो इस प्रकार है:

  • GHG उत्सर्जन में कमी करने तथा वर्ष 2030 तक पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु वर्ष 2020 से वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में प्रतिवर्ष 7.6 प्रतिशत की कटौती करनी होगी।
  • वैश्विक तापमान में वृद्धि दर को 2oC तक लाने के लिये वर्ष 2020 तक देशों को अपनी राष्ट्रीय निर्धारित भागीदारी (Nationally Determined Contribution-NDC) के लक्ष्य को तीन गुना बढ़ाना होगा, जबकि 1.5oC तक लाने के लिये इस लक्ष्य को पाँच गुना करना होगा।
    • राष्ट्रीय निर्धारित भागीदारी (NDC): यह पेरिस समझौते के तहत इसके सदस्य देशों द्वारा निर्धारित एक लक्ष्य है जिसके माध्यम से प्रत्येक देश अपने स्तर पर GHG उत्सर्जन में कमी करने का प्रयास करेगा ताकि इस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
  • G20 के सदस्य देशों द्वारा GHG उत्सर्जन में कमी हेतु निर्देश दिये गए हैं। इसके अलावा इसमें G20 के सात बड़े GHG उत्सर्जक देशों के लिये एक दिशा-निर्देश जारी किया गया है ताकि वैश्विक CO2 या CO2e के उत्सर्जन में कमी की जा सके। ये देश हैं- अमेरिका, जापान, चीन, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, यूरोपियन संघ तथा भारत।
  • GHG के उत्सर्जन में कमी हेतु वैश्विक अर्थव्यवस्था के अकार्बनीकरण (Decarbonization) की आवश्यकता होगी जिसके लिये मूलभूत ढाँचागत बदलाव ज़रूरी है।
  • CO2 या CO2e के उत्सर्जन में कमी के लिये आवश्यक होगा कि अक्षय उर्जा के स्रोतों के प्रयोग को बढ़ावा देने के साथ-साथ उर्जा के उपयोग में दक्षता के लिये प्रयास किया जाना चाहिये। इसके लिये रिपोर्ट में निम्नलिखित सुझाव बताए गए हैं-
    • विद्युत निर्माण में नवीकरणीय उर्जा का प्रयोग।
    • तीव्र अकार्बनीकरण के लिये उर्जा उत्पादन प्रणालियों से कोयले के प्रयोग पर रोक।
    • विद्युत आधारित यातायात के साधनों का विकास।
    • उर्जा गहन उद्योगों को अकार्बनीकृत करना।
    • सभी तक उर्जा की पहुँच सुनिश्चित करने के साथ ही भविष्य में GHG के उत्सर्जन में कमी करना।
  • रिपोर्ट में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में नवीकरणीय उर्जा के स्रोतों की कीमतों में काफी कमी आई है तथा आगामी वर्षों में इसमें और कमी की उम्मीद की जा रही है। अतः इसके प्रयोग को बढ़ावा देने से जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

Energy Technology

  • ऐसे पदार्थ जिनकी वैश्विक स्तर पर मांग अधिक है तथा इनके उत्पादन में GHG का उत्सर्जन अधिक होता है, उनमें संरचनात्मक सुधार किया जाए ताकि वे अधिक टिकाऊ बन सकें एवं 3R (Reduce, Reuse, Recycle) के द्वारा उनके उत्पादन को सीमित किया जा सके।
    • इनमें लोहा तथा इस्पात, सीमेंट, चूना एवं प्लास्टर, भवन निर्माण सामग्री, प्लास्टिक और रबर उत्पाद आदि शामिल हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू