ईको एंज़ायटी | 15 Nov 2019

प्रीलिम्स के लिये

ईको एंज़ायटी (Eco anxiety) क्या है?

मेन्स के लिये

मानव स्वास्थ्य पर ईको एंज़ायटी का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

विश्व में बढ़ते प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले कुछ वर्षों से लोगों में एक विशेष प्रकार का मानसिक विकार उत्पन्न हो रहा है जिसे मनोवैज्ञानिकों ने ईको एंज़ायटी (Eco anxiety) नाम दिया है।

क्या है ईको एंज़ायटी?

यह एक ऐसी मानसिक दशा है जिसमें व्यक्ति इस बात से भयभीत रहता है कि आने वाले समय में पर्यावरण का अंत हो जाएगा। इसमें व्यक्ति जलवायु परिवर्तन के संभावित खतरों को लेकर अपने, बच्चों के तथा आगामी पीढ़ी के भविष्य को लेकर चिंतित रहता है।

ईको एंज़ायटी का प्रभाव:

  • ईको एंज़ायटी से प्रभावित व्यक्ति, जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण में अपनी व्यक्तिगत अक्षमता को लेकर शक्तिहीन, असहाय तथा अवसादित महसूस करता है।
  • Anxiety UK द्वारा किये गए एक सर्वे के अनुसार, प्रत्येक 10 में से 1 ब्रिटिश वयस्क अपने जीवन में कुछ समय के लिये इस प्रकार के अवसाद से ग्रसित रहता है।
  • हालाँकि इस संबंध में अभी तक कोई स्पष्ट आँकड़े नहीं उपलब्ध हैं किंतु लोगों का एक बड़ा हिस्सा जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय प्रदूषण के संभावित खतरों को लेकर अवसादित तथा चिंतित रहता है, साथ ही ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है।
  • वर्ष 2018 में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (UN Inter-governmental Panel on Climate Change; UN-IPCC) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में वर्ष 2030 तक वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कमी पर ज़ोर दिया गया था। साथ ही इसमें कहा गया था कि इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये हमें शीघ्र तथा अप्रत्याशित प्रयास करना होगा, वरना बाढ़, सूखा, अकाल, प्रतिकूल मौसम की दशा आदि समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इस रिपोर्ट का ईको एंज़ायटी से प्रभावित लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा।
  • इस अवसाद से ग्रसित कुछ लोग भविष्य को लेकर संदेह की स्थिति में रहते हैं तथा इस अवसाद से छुटकारा पाने के लिये वे शराब एवं अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करने लगते हैं।
  • भारत में भी इस प्रकार के लक्षण लोगों में देखने को मिले हैं। खासकर दिल्ली जैसे महानगरों में लोग प्रदूषण बढ़ने की वजह से अपने तथा अपने बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं।
  • मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, ईको एंज़ायटी एक हद तक ठीक है क्योंकि यह आपको पर्यावरण के प्रति सचेत करता है तथा जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिये लोगों को जागरूक करता है किंतु इसकी अधिकता एक गंभीर समस्या बन सकती है।

ईको एंज़ायटी पर नियंत्रण के उपाय:

  • इस प्रकार के अवसाद पर नियंत्रण पाने के लिये आवश्यक है कि व्यक्ति को आशावादी बनना चाहिये। इसके साथ ही स्वयं के स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिये प्रयास करना चाहिये।
  • प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले साधनों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। जैसे- निजी वाहनों के प्रयोग के स्थान पर सार्वजनिक यातायात का प्रयोग करना, जैव-अपघटित (Bio-Degradable) वस्तुओं के उपयोग को प्रोत्साहन आदि।
  • ईको एंज़ायटी से प्रभावित व्यक्ति को अपने नैतिक मूल्यों के साथ जीने के लिये अपनी जीवन शैली में परिवर्तन करना चाहिये जिससे पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव पड़े। जैसे- मांस व डेरी उत्पादों के उपयोग को सीमित करना, आवश्यकता से अधिक वस्तुओं की खरीदारी न करना आदि।
  • अपने आसपास वृक्षारोपण करना चाहिये तथा पहले से उपस्थित पेड़-पौधों का संरक्षण करना चाहिये।
  • ईको एंज़ायटी से ग्रसित व्यक्ति को अपने जैसे लोगों के साथ बातचीत करना चाहिये तथा सामुदायिक प्रयासों के माध्यम से जन-जागरूकता फैलानी चाहिये। इससे जहाँ लोगों में आपसी सहयोग तथा मित्रता की भावना का विकास होगा, वहीं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में मदद मिलेगी।

स्रोत : द हिंदू