प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली | 22 Dec 2020

चर्चा में क्यों?

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली (Early Health Warning System) विकसित की जा रही है, जिससे देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा।

  • गौरतलब है कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) भी इस विशिष्ट प्रणाली की विकास अध्ययन और प्रक्रिया में शामिल है।

प्रमुख बिंदु

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) द्वारा विकसित किया जा रहा मॉडल मौसम में आने वाले परिवर्तन और रोग की घटनाओं के बीच संबंध पर आधारित है।
  • ज्ञात हो कि ऐसे कई रोग हैं, जिनमें मौसम की स्थिति अहम भूमिका निभाती है।
    • उदाहरण के लिये मलेरिया, जिसमें विशेष तापमान और वर्षा पैटर्न के माध्यम से इसके प्रकोप के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है।

प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली

(Early Health Warning System)

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली एक ऐसी निगरानी प्रणाली है, जो त्वरित सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप को संभव बनाने के लिये ऐसे रोगों से संबंधित सूचना एकत्र करती है, जो भविष्य में महामारी का रूप ले सकते हैं।
  • हालाँकि इन प्रणालियों में स्वास्थ्य रुझानों में आने वाले बदलावों का पता लगाने के लिये सांख्यिकीय पद्धतियों का प्रयोग बहुत कम ही किया जाता है।
  • अधिकतर मामलों में यह प्रणाली महामारीविदों द्वारा उपलब्ध डेटा की गहन समीक्षा पर आश्रित होती है, जो कि स्वयं कभी व्यवस्थित तरीके से नहीं की जाती है।
    • महामारी विज्ञान (Epidemiology) विज्ञान की वह शाखा है जिसमें एक निर्दिष्ट क्षेत्र के अंतर्गत रोगों के वितरण, पैटर्न और संभावित नियंत्रण का अध्ययन किया जाता है।

महत्त्व

  • इस प्रणाली उपयोग वेक्टर-जनित रोगों, विशेष रूप से मलेरिया और डायरिया आदि के प्रकोपों का अनुमान लगाने के लिये किया जाएगा। इसका प्रयोग गैर-संचारी रोगों (NCDs) की निगरानी हेतु भी किया जा सकता है।
    • वेक्टर (रोगवाहक) वे जीव होते हैं, जो एक संक्रमित व्यक्ति (या जानवर) से किसी दूसरे व्यक्ति (या जानवर) में रोगजनकों और परजीवियों को संचारित करते हैं, जो कि आम लोगों के बीच गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है। उदाहरण के लिये चिकनगुनिया, मलेरिया, डेंगू, पीत ज्वर/येलो फीवर और चेचक रोग आदि इसी तरह से फैलने वाले रोग हैं।
    • वेक्टर-जनित रोगों का प्रत्यक्ष संबंध मौसम के पैटर्न से होता है।
    • गैर-संचारी रोग (NCD) भी मौसम की स्थिति से प्रभावित होते हैं। उदाहरण के लिये हृदय और श्वसन संबंधी बीमारियाँ हीट वेव तथा पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि से जुड़ी हुई हैं।
  • इस प्रकार की प्रणाली स्थानीय प्रशासन को बीमारी से निपटने हेतु पर्याप्त समय उपलब्ध कराएगी।

विश्लेषण और अध्ययन

  • इस विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली की क्षमता को सत्यापित करने के लिये महाराष्ट्र के दो ज़िलों (पुणे और नागपुर) में मलेरिया तथा डायरिया के मामलों का एक विस्तृत विश्लेषण किया गया था।
    • विश्लेषण के दौरान नागपुर में मलेरिया के मामलों की संख्या अधिक पाई गई, जबकि पुणे में डायरिया के मामले अधिक थे।
  • विश्लेषण के मुताबिक, मौसम में अस्थायी और स्थानिक परिवर्तन, उदाहरण के लिये अल-नीनो के प्रभाव के रूप में तापमान और वर्षा में अल्पकालिक वृद्धि, मलेरिया के प्रकोप का कारण बन सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने अपने एक अध्ययन में कहा था कि जलवायु परिवर्तन के कारण डायरिया संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। जलवायु परिवर्तन, जो कि बाढ़ और सूखे जैसी चरम घटनाओं में वृद्धि के लिये उत्तरदायी है, विकासशील देशों में अत्यधिक चिंता का विषय है।
  • COVID-19 के संदर्भ में
    • यद्यपि कोरोना वायरस महामारी के प्रसार को प्रभावित करने वाले मौसम के पैटर्न पर कई अध्ययन और विश्लेषण किये गए हैं, किंतु अभी तक शोधकर्त्ता कोरोना वायरस महामारी और मौसम के बीच एक निश्चित संबंध स्थापित करने में सफल नहीं हो पाए हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस