नोवा उत्सर्जन में धूल का निर्माण | 24 Aug 2022

चर्चा में क्यों ?

एसएन बोस सेंटर फॉर बेसिक साइंस (SNBCBS) के वैज्ञानिकों ने नोवा वी1280 स्कॉर्पी नामक इंप्लोडिंग नोवा का अवलोकन किया और पाया कि एक महीने के बाद इसके चारों ओर एक मोटी धूल बन गई और लगभग 250 दिनों तक विद्यमान रही।

Novae

नोवा:

  • नोवा एक खगोलीय घटना है जिसमें तारकीय (तारों से संबंधित) सतह पर अस्थायी रूप से एक भीषण विस्फोट होता है, जिससे उनकी चमक लाखों गुना बढ़ जाती है, फिर हफ्तों या महीनों में धीरे-धीरे कालापन बढ़ता जाता है।
  • यह एक बाइनरी प्रणाली में होता है जिसमें एक श्वेत वामन और एक मुख्य अनुक्रम तारा होता है।
    • एक बाइनरी तारा प्रणाली तब होती है जब दो तारे एक ही द्रव्यमान के केंद्र के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।
      • चमकीले तारे को आधिकारिक तौर पर प्राथमिक तारे के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जबकि दोनों के बीच का धुंधला तारा गौण होता है।
    • श्वेत वामन ऐसे तारे हैं जिसमें एक बार परमाणु ईंधन के रूप में उपयोग किये गये सभी हाइड्रोजन का संलयन हो चूका होता है।
      • ऐसे तारों का घनत्त्व बहुत अधिक होता है। एक सामान्य श्वेत वामन हमारे सूर्य के आकार का आधा होता है और इसकी सतह का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से 1,00,000 गुना अधिक होता है।

Life-cycle

ब्रह्मांडीय धूल

  • ब्रह्मांडीय धूल में तारों के बीच की जगह में तैरते ठोस पदार्थ के छोटे कण होते हैं।
  • नोवा उत्सर्जन के प्रतिकूल वातावरण में ब्रह्मांडीय धूल या अतिरिक्त-स्थलीय धूल का निर्माण कई वर्षों से एक जटिल प्रश्न रहा है। ऐसी सैकड़ों किलोग्राम धूल प्रतिदिन पृथ्वी पर गिरती है।

निष्कर्ष:

  • धूल बनने के पूर्व और उसके बाद के चरणों के दौरान वहाँ हाइड्रोजन घनत्त्व, तापमान, चमक और मौलिक तत्वों की प्रचुरता जैसे धूल के मापदंडों का अनुमान लगाने के लिये वैज्ञानिकों ने सरल मॉडल का निर्माण किया।
  • उन्होंने उत्सर्जन (इजेक्टा) में कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन जैसे कुछ तत्त्वों के साथ-साथ छोटे अक्रिस्टलीय (Amorphous) कार्बन धूल के कणों तथा खगोलीय सिलिकेट के बड़े धूल कणों की प्रचुरता पाई है।
  • नए तारों से उत्सर्जन (नोवा इजेक्शन) में धूल का बनना कोई सामान्य घटना नहीं है।
  • तारों के बीच धूल (इंटरस्टेलर डस्ट) जिसे बनने में आमतौर पर कुछ हज़ार साल लगते हैं, ऐसा विस्फोट के बाद 30 से 100 दिनों के भीतर केवल कुछ ही नए तारों (नोवा) में देखा गया है, इसलिये ऐसी घटनाओं से नोवा में धूल बनने की प्रक्रिया का अध्ययन करने का अवसर मिल जाता है।
  • प्रीडस्ट चरण/पूर्व-धूल में कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन जैसे कुछ तत्त्वों के समस्थानिकों की प्रचुरता पाई गई।
  • धूल- पश्चात (पोस्ट - डस्ट) चरण की अवस्था में हुए उत्सर्जन (इजेक्टा) में विद्यमान छोटे अक्रिस्टलीय कार्बन धूल के कणों और बड़े खगोलीय सिलिकेट धूल के कणों का मिश्रण पाया गया है।
  • मिक्स्ड एरोमैटिक – ऐलीफैटिक संरचना वाले अक्रिस्टलीय कार्बनिक ठोस जैसे कुछ जटिल कार्बनिक यौगिक भी पाए गए जो तारों और ग्रहों में आणविक बादल के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

अध्ययन का महत्त्व:

  • अंतरिक्ष-धूल टकराव से विभिन्न ग्रहों के बीच अत्यधिक दूरी होने के बाद भी जीवों को ग्रह पर जीवन शुरू करने के लिये प्रेरित कर सकता है।
  • नए तारों की धूल के उनके अध्ययन से ऐसी धूल की प्रकृति और विशेषताओं एवं उनसे संबंधित प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिल सकती है।
  • टीम ने सुझाव दिया है कि जैसे-जैसे V1280 स्कॉर्पी नोवा के धूल के आवरण का विस्तार जारी रहेगा, ये धूल के कण अंततः अंतरतारकीय/इंटरस्टेलर पदार्थ के साथ मिलते जाएंँगे। लेकिन इस प्रक्रिया में हज़ारों साल लगेंगे, जोकि ब्रह्मांडीय समय के पैमाने में एक छोटी सी समयावधि है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

निम्नलिखित में से किस वैज्ञानिक ने सिद्ध किया कि सूर्य के द्रव्यमान के 1.44 गुना से कम द्रव्यमान वाले तारे मृतप्राय होने पर श्वेत वामन बन जाते हैं? (2009)

(a) एडविन हबल
(b) एस चंद्रशेखर
(c) स्टीफन हॉकिंग
(d) स्टीवन वेनबर्ग

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • एस. चंद्रशेखर एक भारतीय अमेरिकी खगोल भौतिक विज्ञानी थे जो सितारों की संरचना और विकास पर अपने शोध के लिये प्रसिद्ध थे। उन्हें वर्ष 1983 में विलियम ए. फाउलर के साथ संयुक्त रूप से भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला।
  • एस. चंद्रशेखर 'चंद्रशेखर सीमा' के निर्धारण के लिये प्रसिद्ध हैं, जो श्वेत वामन सितारों के द्रव्यमान पर एक सैद्धांतिक सीमा है जो लगभग 1.44 सौर द्रव्यमान है। चंद्रशेखर सीमा के नीचे द्रव्यमान वाले श्वेत वामन के रूप में मौजूद होते हैं जबकि इससे अधिक द्रव्यमान वाले श्वेत वामन गुरुत्वाकर्षण के पतन से प्रभावित होते हैं। चंद्रशेखर ने इसे अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के विशेष सिद्धांत और क्वांटम भौतिकी के सिद्धांतों का उपयोग करके दिखाया।
  • नासा ने वर्ष 1979 में अपनी चार "महान वेधशालाओं" में से तीसरे का नाम चंद्रशेखर के नाम पर रखा। चंद्रा एक्स-रे वेधशाला 23 जुलाई, 1999 को स्पेस शटल कोलंबिया द्वारा लॉन्च और तैनात की गई थी। क्षुद्रग्रह, 1958 चंद्रा का नाम भी चंद्रशेखर के नाम पर रखा गया है।
  • श्वेत वामन तारों में उपस्थित हाइड्रोजन नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया में पूरी तरह से खत्म हो जाता है। ऐसे तारों का घनत्त्व बहुत अधिक होता है। सूर्य जैसे तारे नाभिकीय संलयन अभिक्रियाओं के माध्यम से अपने केंद्र में हाइड्रोजन को हीलियम में रूपांतरित करते हैं।  तारों में उपस्थित हाइड्रोजन नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया में पूरी तरह से खत्म हो जाने के बाद गुरुत्वाकर्षण बहुत अधिक बढ़ जाता है जिसके कारण तारे श्वेत वामन में रूपांतरित हो जाते हैं।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत:पी.आई.बी.