COVID-19 से संक्रमित कैदियों की रिहाई पर रोक | 15 Apr 2020

प्रीलिम्स के लिये:

मौलिक अधिकार, COVID-19

मेन्स के लिये:

मौलिक अधिकार,  COVID-19 से निपटने हेतु सरकार के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया है कि जेलों में बंद COVID-19 संक्रमित किसी भी कैदी को अंतरिम जमानत या पेरोल (Parole) पर रिहा नहीं किया जाएगा। 

मुख्य बिंदु:

  • 13 अप्रैल, 2020 को उच्चतम न्यायालय में एक मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ‘एस. ए. बोबड़े’ (S.A. Bobde) ने कहा कि जेलों में बंद कैदियों की रिहाई से पहले उनमें COVID-19 संक्रमण की जाँच हेतु आवश्यक परीक्षण किये जाने चाहिये। 
  • उच्चतम न्यायलय ने यह भी आदेश दिया कि वर्तमान में भारतीय जेलों में बंद ऐसे किसी भी व्यक्ति को रिहा नहीं किया जाना चाहिये, जो जाँच के दौरान COVID-19 से संक्रमित पाया जाता है।
  • ध्यातव्य है कि 23 मार्च, 2020 को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जेलों में बंद कैदियों के मामलों की जाँच करने और अंतरिम जमानत या पेरोल पर रिहा किये जा सकने वाले कैदियों की सूची तैयार करने के लिये एक विशेष समिति का गठन करने का आदेश दिया था।
  • उच्चतम न्यायालय ने COVID-19 की महामारी को देखते हुए असम के विदेशी निरोध केंद्रों/फाॅरेनर्स डिटेंशन सेंटर्स (Foreigners’ Detention Centres) में दो वर्ष से अधिक समय तक बंद कैदियों को रिहा किये जाने पर सहमति ज़ाहिर की है।
    • हालाँकि केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General) ने उच्चतम न्यायालय के इस आदेश का यह कहते हुए विरोध किया कि ऐसा करने से फाॅरेनर्स डिटेंशन सेंटर्स के बंदी पुनः स्थानीय निवासियों में मिल जाएंगे। 
    • उच्चतम न्यायालय ने मई 2019 के अपने आदेश में परिवर्तन करते हुए बंदियों को रिहाई के लिये 1 लाख रुपए के स्थान पर 5,000 रुपए का बाॅण्ड प्रस्तुत करने की अनुमति दी है। परंतु ऐसे कैदियों को रिहाई के लिये ज़मानतदार (Surety) के रूप में दो भारतीय नागरिकों को भी प्रस्तुत करना होगा।
  • कैदी की रिहाई के बाद भी यदि वह COVID-19 से संक्रमित पाया जाता है तो संबंधित अधिकारियों द्वारा उसे क्वारंटीन (Quarantine) करने की व्यवस्था की जाएगी।
  • उच्चतम न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि कैदियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिये सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) के नियमों और मानदंडों का पूरा ध्यान रखा जाएगा।
  • उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय सुधार गृहों , डिटेंशन सेंटर और संरक्षण गृहों  पर भी लागू होगा। 

कैदियों की सुरक्षा हेतु कानूनी प्रावधान: 

  • भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) प्रदान किये गए हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत भारत के राज्यक्षेत्र में सभी को विधि के समक्ष समानता का अधिकार प्राप्त है तथा संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत सभी को प्राण और दैहिक (कुछ अपवादों को छोड़कर) स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। 
  • जेल अधिनियम (The Prisons Act), 1894 के तीसरे अध्याय में कैदियों के स्वास्थ्य के संदर्भ में आवश्यक सुविधाओं की विस्तृत व्याख्या की गई है।
    • जेल अधिनियम, 1894 की धारा 37 के अनुसार, यदि कोई भी कैदी मेडिकल ऑफिसर से मिलने की इच्छा ज़ाहिर करता है या मानसिक अथवा शारीरिक रूप से अस्वस्थ प्रतीत होता है, तो जेल अधीक्षक द्वारा तुरंत मेडिकल ऑफिसर या डॉक्टर को इस संदर्भ में सूचित किया जाएगा।
    • जेल अधिनियम, 1894 की धारा 39 के माध्यम से प्रत्येक जेल में कैदियों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिये एक अस्पताल की स्थापना का प्रावधान किया गया है।

निष्कर्ष: पिछले कुछ दिनों में देश COVID-19 संक्रमण के मामलों में तीव्र वृद्धि देखने को मिली है।    भारतीय जेलों में कैदियों के लिये स्वास्थ्य व्यवस्था और अन्य मूलभूत सुविधाओं की अनुपलब्धता, कर्मचारियों की कमी आदि को देखकर यह समझा जा सकता है कि जेलों में इस बीमारी के पहुँचने से इस महामारी पर नियंत्रण पाना एक बड़ी चुनौती बन सकती है। ऐसे में कानूनी प्रक्रिया के तहत कैदियों की रिहाई करना तथा COVID-19 संक्रमित कैदियों को रिहा न कर उनके उपचार का उचित प्रबंध करना एक सकारात्मक निर्णय होगा।

स्रोत:  द हिंदू