चीन को लेकर भारत की असहजता दूर करने के प्रयास में श्रीलंका | 19 Jan 2017

सन्दर्भ

हिंद महासागर में चीन की मौजूदगी को लेकर भारत की असहजता दूर करने के प्रयास के तहत श्रीलंका ने कहा है कि वह यह सुनिश्चित करना चाहेगा कि ऐसी किसी भी गतिविधि से भारत के सरोकारों के समक्ष कोई ख़तरा उत्पन्न न हो, साथ ही, भारत द्वारा त्रिंकोमाली बंदरगाह को विकसित करने को लेकर भी दोनों देशों के बीच बातचीत जारी है| श्रीलंका के क्षेत्रीय विकास मंत्री सरत फोनसेका ने ‘रायसीना डायलॉग 2017’ में कहा कि त्रिंकोमाली दक्षिण एशिया में सबसे गहरा बंदरगाह है जिसे विकसित करने के उद्देश्य से विभिन्न मुद्दों को अंतिम रूप दिया जा रहा है|


श्रीलंका के सुर में बदलाव क्यों?

  • दरअसल, श्रीलंका का कहना है कि चीन द्वारा विकसित हंबनटोटा बंदरगाह कोई लाभ नहीं दे रहा है तथा धनराशि चुकाने के लिये वह एक बोझ बन गया है| 
  • विदित हो कि हंबनटोटा बंदरगाह को विकसित करने के क्रम में पहले चरण के निर्माण की कुल अनुमानित लागत 36.1 करोड़ डॉलर है तथा इसका अधिकतर वित्तपोषण चीन के एग्ज़िम बैंक ने किया है।
  • श्रीलंका का यह भी मानना है कि इस परियोजना के दौरान उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा, साथ ही, इस बंदरगाह के निर्माण कार्य के दौरान भ्रष्टाचार के मामले भी सामने आए हैं| अतः श्रीलंका अपनी अवसरंचना निर्माण की नीतियों पर पुनर्विचार करेगा|

हालिया परिदृश्य

  • ध्यातव्य है कि हाल ही में कर्ज़ से छुटकारा पाने के लिये श्रीलंका ने चीन के साथ हंबनटोटा बंदरगाह का सौदा करने का निर्णय लिया है| दरअसल, अपने कर्ज़ को कम करने के लिये श्रीलंका दक्षिणी बंदरगाह का 80 फीसद हिस्सा 1.5 बिलियन डॉलर की कीमत पर चीन की एक कंपनी को बेचने जा रहा है|
  • विदित हो कि वर्ष 2010 में महिंद्रा राजपक्षे के शासनकाल में  चीन से कर्ज़ और कंट्रैक्टर्स की मदद लेकर हंबनटोटा बंदरगाह का निर्माण किया गया था| इस बंदरगाह में चीन की रुचि उसके ‘मैरिटाइम सिल्क रूट’ में इसकी उपयोगिता के तौर पर देखी जाती है| गौरतलब है कि श्रीलंका के वर्तमान राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने श्रीलंका में संचालित अवसंराचाना विकास से संबंधित अधिकांश चीनी परियोजनाओं को निरस्त कर दिया है|

निष्कर्ष

  • वर्तमान विश्व व्यवस्था में महासागरीय कूटनीति (ocean diplomacy) का महत्त्व और भी बढ़ गया है और इसी कूटनीति के तहत चीन हिन्द महासागर में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है, लेकिन हाल फिलहाल की कुछ घटनाओं से चीन की इस कोशिश को झटका पहुँचा है|
  • कुछ समय पहले ही श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में चीन के करीबी समझे जाने वाले महिंदा राजपक्षे की हार हुई और तब नव निर्वाचित राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने भारत-केंद्रित नीति की बात कही थी, साथ ही, यह संकेत भी दिया था कि चीनी निवेश की समीक्षा की जाएगी|
  • अब, भारत को घेरने के मकसद से श्रीलंका के करीब आने की चीन की कोशिश नाकाम होती नज़र आ रही है, क्योंकि श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह में चीनी निवेश के खिलाफ हिंसक संघर्ष शुरू हो गया है| नए साल की शुरुआत में ही हंबनटोटा बंदरगाह के समीप औद्योगिक क्षेत्र के उद्धघाटन   समारोह के दौरान हज़ारों की संख्या में लोगों ने विरोध-प्रदर्शन और पत्थरबाज़ी की थी|
  • हालाँकि, हिन्द महासागर में चीनी प्रभुत्व को खत्म करने के लिये यह नाकाफी होगा| इन उद्देश्यों के लिये भारतीय नीति-नियामकों को इस बात पर ज़ोर देना चाहिये कि हिंद महासागर में हमारे हितों को बढ़ावा मिले, और इसके लिये चीन जहाँ भी विफल हो रहा है उस मौके को भुनाने के सर्वोत्तम प्रयास किये जाने चाहियें|