दिव्यांग व्यक्तियों को भी मिलेगा SC/ST उम्मीदवारों के समान लाभ | 13 Jul 2020

प्रीलिम्स के लिये

सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय

मेन्स के लिये

भारतीय आरक्षण व्यवस्था, दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण के प्रयास, सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में पुष्टि की है कि दिव्यांग व्यक्ति भी देश में सामाजिक रूप से पिछड़े हैं और इसलिये वे सार्वजनिक रोज़गार तथा शिक्षा में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के समान लाभ प्राप्त करने के हकदार हैं।

प्रमुख बिंदु

  • जस्टिस रोहिंटन नरीमन (Rohinton Nariman) की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने कहा कि वह पिता/प्राकृतिक संरक्षक के माध्यम से अनमोल भंडारी (नाबालिग) बनाम दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU) के वर्ष 2012 के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय में निर्धारित सिद्धांत का 'अनुसरण' कर रही है।

विवाद

  • गौरतलब है कि याचिकाकर्त्ता, जो कि बौद्धिक रूप से 50 प्रतिशत तक अक्षम है, ने शारीरिक/मानसिक रूप से दिव्यांग छात्रों के लिये डिज़ाइन किये गए फाइन आर्ट डिप्लोमा कोर्स हेतु आवेदन किया था।
  • उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में कॉलेज की विवरण-पुस्तिका (Prospectus) के कुछ प्रावधानों को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें याचिकाकर्त्ता ने मांग की थी कि शारीरिक रूप से दिव्यांग छात्रों और मानसिक/बौद्धिक रूप से अक्षम छात्रों के बीच, कुल सीटों का द्विभाजन किया जाना चाहिये।
    • याचिकाकर्त्ता ने रिट याचिका के माध्यम से बौद्धिक/मानसिक रूप से विकलांग छात्र को एप्टीट्यूड टेस्ट में छूट प्रदान करने की भी मांग की थी।
  • हालाँकि सुनवाई के पश्चात् उच्च न्यायालय ने इस रिट याचिका को खारिज़ कर दिया। 

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • इस संबंध में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील पर विचार करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि द्विभाजन के पहलू पर उच्च न्यायालय का निर्णय एकदम सही है।
  • इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने एप्टीट्यूड टेस्ट को लेकर भी उच्च न्यायालय के निर्णय पर सहमति व्यक्त की, जिसमें उच्च न्यायालय ने एप्टीट्यूड टेस्ट में छूट देने से इनकार कर दिया था। 
  • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2012 के अनमोल भंडारी (नाबालिग) बनाम दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU) वाद में दिल्ली उच्च न्यायलय द्वारा दिये गए सिद्धांत का अनुसरण करने की बात की, जिसमें उच्च न्यायालय ने स्वीकार किया था कि दिव्यांग व्यक्तियों सामाजिक रूप से पिछड़े हैं और इसलिये वे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के समान लाभ प्राप्त करने के हकदार हैं।
  • विवरण-पुस्तिका (Prospectus) का हवाला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चूँकि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को एप्टीट्यूड टेस्ट में उत्तीर्ण होने के लिये 35 प्रतिशत अंकों की आवश्यकता होती है, इसलिये यह नियम अब दिव्यांग छात्रों के मामले में भी लागू होगा।

नए पाठ्यक्रम की आवश्यकता

  • न्यायमूर्ति नरीमन की खंडपीठ ने अनमोल भंडारी (नाबालिग) बनाम दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी वाद में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय को रेखांकित करते हुए कहा कि शैक्षणिक पाठ्यक्रमों को बौद्धिक रूप से अक्षम छात्रों की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया जाना चाहिये।
    • गौरतलब है कि अनमोल भंडारी (नाबालिक) बनाम दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी वाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने संबंधित अधिकारियों को ऐसा पाठ्यक्रम बनाने के निर्देश दिये थे, जो बौद्धिक रूप से अक्षम छात्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करता हो।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को उद्धृत करते हुए कहा कि ‘हम इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं कि बौद्धिक/मानसिक रूप से विकलांग व्यक्तियों की कुछ विशिष्ट सीमाएँ होती हैं, जो सामान्यतः शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों में नहीं पाई जाती है।

आगे की राह

  • विशेषज्ञों के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय, खासतौर पर शीर्ष न्यायालय द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय की पुष्टि आने वाले समय में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों हेतु एक बड़ा प्रोत्साहन होगा।
  • सामान्य मानकों को पूरा न करने के कारण अक्सर दिव्यांग उम्मीदवारों को शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता। है
  • अब न्यायालय के इस निर्णय से सार्वजनिक क्षेत्र के नियोक्ताओं और कॉलेजों तथा विश्विद्यालयों को दिव्यांग व्यक्तियों को भी SC/ST उम्मीदवारों के समान छूट प्रदान करनी होगी।
  • आवश्यक है कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की दिशा में और अधिक कार्य किया जाए तथा न्यायालय के हालिया निर्णय के सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित किया जाए।

स्रोत: द हिंदू