लॉकडाउन के दौरान वैकल्पिक बाज़ार | 11 Apr 2020

प्रीलिम्स के लिये

कृषि वैकल्पिक बाज़ार 

मेन्स के लिये

कृषि क्षेत्र में COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?  

COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण अन्य क्षेत्रों के साथ कृषि उत्पादन की आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई है। ऐसे में महाराष्ट्र सरकार की लगभग दो दशकों पुरानी एक योजना पुनः प्रासंगिक हुई है, जिसके तहत एक वैकल्पिक बाज़ार के माध्यम से कृषि उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुँचाया जा सकता है।

मुख्य बिंदु:   

  • देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण किसानों के लिये अपने उत्पादों को ग्राहकों तक पहुँचाना कठिन हुआ है और वर्तमान में ज़्यादातर फसलों तथा सब्जियों की कटाई का मौसम होने से कृषि उत्पादों के सही समय पर मंडियों तक न पहुँचने से कृषि क्षेत्र में भारी नुकसान होगा।   
  • इस योजना की शुरुआत महाराष्ट्र के ‘राज्य कृषि विभाग’ और ‘महाराष्ट्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड’ (Maharashtra State Agricultural Marketing Board- MSAMB) के सहयोग से की गई थी।

‘महाराष्ट्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड’

(Maharashtra State Agricultural Marketing Board- MSAMB):

  • महाराष्ट्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड की स्थापना 23 मार्च, 1984 को ‘महाराष्ट्र कृषि उत्पादन विपणन (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1963’ के तहत की गई।

उद्देश्य: 

  • कृषि उत्पाद बाज़ार के विकास की राज्य स्तरीय योजना बनाना।
  • कृषि विपणन विकास कोष (Agricultural Marketing Development Fund) को बनाए रखना और उसका प्रबंधन करना।
  • ‘महाराष्ट्र कृषि उत्पादन विपणन (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1963’ के प्रयोजनों और शर्तों (जैसा कि अधिनियम में निर्धारित है) पर बाज़ार समितियों को उपबंध या ऋण प्रदान  करना।
  • कृषि उपज के विपणन से संबंधित मामलों/योजनाओं का प्रचार-प्रसार करना।

उद्देश्य: 

इस योजना का उद्देश्य कृषक समूहों और ‘किसान उत्पादक कंपनियों’ (Farmer Producer Companies- FPC) के सहयोग से शहरी क्षेत्र में एक कम भीड़ वाले ऐसे बाज़ार की स्थापना करना है जिससे ग्राहकों तक किसानों की सीधी पहुँच को सुनिश्चित किया जा सके।

‘किसान उत्पादक कंपनी’

(Farmer Producer Company- FPC):

  • किसान उत्पादक कंपनी (एफपीसी) एक संयुक्त स्टॉक कंपनी और एक सहकारी संघ को मिलकर बनाई गई एक व्यवस्था है।
  • इसमें एक कंपनी और एक सहकारी संगठन दोनों के गुण होते हैं। 
  • इसका उद्देश्य कृषि उत्पादन में वृद्धि, प्रसंस्करण, सदस्यों के लिये आवश्यक उपकरणों की आपूर्ति, तकनीकी या अन्य सेवाओं के लिये परामर्श आदि उपलब्ध करना है।  
  • एक ‘किसान उत्पादक कंपनी’ में कम-से-कम 5 और अधिकतम 15 निदेशक हो सकते हैं।      

कैसे काम करता है यह वैकल्पिक बाज़ार?

  • इसके लिये सरकार और ‘महाराष्ट्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड’ कृषक समूहों और FPCs की पहचान कर समूहों (Clusters) का निर्माण करते हैं।
  • स्थानीय निकाय (Local Bodies) बाज़ार हेतु स्थान का चुनाव करते हैं और इन बाज़ारों को सीधे ग्राहकों तक अपने उत्पादों को पहुँचाने के लिये ‘सहकारी आवास समितियों’ (Cooperative Housing Societies) से  जोड़ दिया जाता है।  
  • इस मॉडल.योजना के तहत कृषक समूहों और FPCs को नगरपालिका वार्डों या इलाकों में साप्ताहिक बाज़ार के लिये स्थान प्रदान किया जाता है।
  • कुछ उत्पादक समूहों को हाउसिंग सोसायटियों के गेट पर फल और सब्जियों के ट्रक खड़े कर अपने उत्पाद बेचने की अनुमति दी जाती है।
  • इस तरह के बाज़ारों में सबसे ज़्यादा मात्रा स्थानीय स्तर पर उत्पादित सब्जियों की होती है।  

लाभ:    

  • इस मॉडल का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह कृषि व्यापार के लिये एक विकेंद्रीकृत और कृषि उत्पादों को सीधे उपभोक्ता के घर तक पहुँचाने की व्यवस्था प्रदान करता है। 
  • इस विकेंद्रीकृत व्यवस्था के माध्यम से उत्पादकों और उपभोक्ता के बीच से बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करने में सहायता मिलती है जिसका सीधा लाभ किसानों को प्राप्त होगा। 
  • इसके माध्यम से मांग और आपूर्ति का बेहतर नियंत्रण किया जा सकता है। 
  • इसके माध्यम से किसानों में उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलेगा। 

लॉकडाउन के दौरान वैकल्पिक बाज़ार का लाभ:

  • इस व्यवस्था के माध्यम से मंडियों की अपेक्षा लोगों की गतिविधि को सीमित कर COVID-19 के प्रसार की संभावनाओं को कम करने में सहायता प्राप्त होगी। 
    • उदाहरण के लिये पुणे (महाराष्ट्र) में कई FPCs ने हाउसिंग सोसायटियों तक डिलीवरी शुरू की है, साथ ही प्रशासन ने प्रत्येक ज़िले के लिये विशेष फोन नंबरों की व्यवस्था की है जिससे कोई भी सब्जियों के लिये प्री-आर्डर (Pre-Order) कर सकता है।
  • इस व्यवस्था के माध्यम से मंडियों और थोक बाज़ारों के बंद होने से कृषि उत्पादों की आपूर्ति के संदर्भ में उत्पन्न हुई अव्यवस्था को दूर करने में सहायता प्राप्त हुई है। 
  • मंडियों के बंद होने से देश में लगभग 100 लाख हेक्टेयर से अधिक की फसलों के खराब होने का भय था, परंतु इस व्यवस्था के माध्यम से कई राज्यों में फसलों को ऐसे बाज़ारों तक पहुँचाकर, किसानों को होने वाली क्षति को कम करने में मदद मिली है।

निष्कर्ष: हालाँकि खाद्य और कृषि के क्षेत्र में डिजिटल मार्केटिंग का विचार नया नहीं है परंतु अभी भी यह माध्यम छोटे व्यापारियों और किसानों को आकर्षित करने में असफल रहा है। वर्तमान में यह व्यवस्था  COVID-19 के संक्रमण को कम करने के साथ ही कृषि क्षेत्र में उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी बन सकती है। साथ ही भविष्य में इस माध्यम को बढ़ावा देकर देश में कृषि से जुड़ी अर्थव्यवस्था को एक नई गति प्रदान की जा सकती है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस