रेल परिवहन में सुधारों पर केन्द्रित स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना | 14 Sep 2017

चर्चा में क्यों?

  • देश की जीवन रेखा भारतीय रेल तमाम चुनौतियों से जूझ रही है। भारी भरकम योजनाओं का आर्थिक बोझ और व्यस्ततम रेल मार्गों पर लगभग 22 हज़ार यात्री ट्रेनों व मालगाड़ियों के रोज़ाना संचालन से रेलवे की रफ्तार थम सी गई है। रेल पटरियों पर लगातार ट्रेनों की आवाजाही से कमज़ोर हो रही पटरियों के मरम्मत व समुचित रखरखाव के अभाव में रेल दुर्घटनाओं में वृद्धि देखी गई है।
  • दिल्ली-मुंबई, चेन्नई-हावड़ा को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना से इन तमाम समस्याओं और चुनौतियों का समाधान संभव हो सकता है। यह परियोजना रेल यात्रा व माला भाड़ा ढुलाई की प्रक्रिया ही नहीं, बल्कि देश की पूरी परिवहन व्यवस्था की तस्वीर बदल देगी, साथ ही डीएफसी परियोजना अर्थव्यवस्था के लिये भी मील का पत्थर साबित होगी।

क्यों महत्त्वपूर्ण है यह परियोजना

  • देश के सर्वाधिक व्यस्त रेल मार्गों दिल्ली-मुंबई और दिल्ली कोलकाता के बीच स्वर्णिम चतुर्भुज समर्पित रेल गलियारा तेज़ी से तैयार हो रहा है, जिस पर सिर्फ और सिर्फ मालगाड़ियां चलेंगी, वहीं  मौजूदा रेल लाइनों पर सिर्फ यात्री ट्रेनें चलेंगी।
  • परियोजना के पूरा होने पर  प्रत्यक्ष तौर पर यात्रियों के लिये टिकटों की प्रतीक्षा सूची बीते दिनों की बात हो जाएगी। साथ ही रेल पटरियों के जल्दी जल्दी खराब होने और उनके रखरखाव का भी समय न मिलने के कारण हो रही दुर्घटनाएँ भी नहीं के बराबर होंगी।
  • रेलवे अभी 9 हज़ार से अधिक यात्री ट्रेनें चला रहा है, जिनसे सवा 2 करोड़ दैनिक व लंबी दूरी की यात्रा लोग कर रहे हैं। इसी रेल रूट पर अभी लगभग 8 से 9 हज़ार मालगाड़ियाँ चलती हैं, जो धीरे-धीरे करके वर्ष 2021 तक स्वर्णिम चतुर्भुज कारीडोर पर चली जाएंगी।
  • इसका परिणाम यह होगा कि रेल यात्रियों के लिये जहाँ ज़रूरत के मुताबिक नई यात्री ट्रेनें चलाई जा सकेंगी, वहीं ट्रेनों की रफ्तार में भी वृद्धि होगी। ट्रेनों की बढ़ी रफ्तार के साथ यात्रियों को कन्फर्म टिकट उनकी मांग के अनुरूप मिलने लगेगा।

निष्कर्ष

  • दरअसल, दिन रात दौड़ रही यात्री ट्रेनों व मालगाड़ियों के कारण  रेल पटरियाँ जर्जर हो गई हैं।  यही कारण है कि प्रतिवर्ष देश भर में पटरियों में दरार आने व नट-बोल्ट ढ़ीले होने के लगभग 5-6 हज़ार मामले सामने आते हैं। 
  • मालगाड़ियों पर निर्धारित क्षमता से लगभग दो सौ प्रतिशत अधिक वजन की ढ़ुलाई ने समस्या को और भी गंभीर बना दिया है। रेल पटरियों की जर्जर हालत पर बीते एक दशक में संसद की रेल संबंधी समितियों और कैग ने भी चिंता जताई थी। विदित हो कि रेलवे का मुनाफा बढ़ाने के लिये मालगाड़ियों की भार ढ़ोने की क्षमता को अधिक बढ़ा दिया गया था।
  • रेल मैनुअल के अनुसार 4800-5000 टन से अधिक वज़न नहीं होना चाहिये, लेकिन सभी मालगाड़ियों में 5500 टन की ओवरलोडिंग की जाती रही है। यही नहीं, कई बार तो दो मालगाड़ियों को एक साथ जोड़ दिया जाता है। ऐसे में यह परियोजना मालगाड़ियों और यात्री ट्रेनों के लिये अलग-अलग रूट उपलब्ध कराएगी, जो कि भारतीय रेल के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण सुधार होगा।