WTO में विकासशील देश का दर्जा | 26 Oct 2019

प्रीलिम्स के लिये:

WTO में देशों की श्रेणियाँ

मेन्स के लिये:

WTO में विकासशील देश होने का अर्थ, लाभ और उससे संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

दक्षिण कोरियाई सरकार ने भविष्य में विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा विकासशील देशों को मिलने वाले किसी भी स्पेशल ट्रीटमेंट को न लेने का फैसला किया है।

  • हालाँकि इसका यह अर्थ नहीं है कि WTO में दक्षिण कोरिया का विकासशील देश का दर्जा समाप्त हो गया है।
  • गौरतलब है कि दक्षिण कोरिया, जो कि एशिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, ने मुख्यतः अपने कृषि उद्योग की रक्षा करने हेतु WTO के निर्माण के समय (वर्ष 1995) से ही स्वयं को विकासशील देश के रूप में घोषित किया हुआ है।
    • उदाहरण के लिये दक्षिण कोरिया चावल के आयात पर 500 प्रतिशत से अधिक का टैरिफ लगाता है।

WTO में विकासशील देश के मायने

  • उल्लेखनीय है कि WTO ने ‘विकसित’ और ‘विकासशील’ देश की कोई निश्चित परिभाषा तय नहीं की है। नियमों के अनुसार, सदस्य देश स्वयं ही इस बात की घोषणा करते हैं कि वे ‘विकसित’ हैं या ‘विकासशील’।
    • हालाँकि अन्य सदस्य देश किसी एक देश द्वारा स्वयं को विकासशील घोषित करने के निर्णय को चुनौती दे सकते हैं।
    • इसका सबसे बड़ा उदाहरण हाल ही में देखने को मिला था जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने WTO के विकासशील देशों से संबंधित मानकों पर प्रश्नचिह्न उठाया था और चीन जैसे देशों द्वारा इसके गलत प्रयोग की बात भी कही थी।
  • WTO समझौतों में कुछ विशेष प्रावधान होते हैं जो विकासशील देशों को विशेष अधिकार प्रदान करते हैं। WTO के इन प्रावधानों को ‘विशेष और विभेदात्मक व्यवहार’ (Special and Differential Treatment-S&D) के रूप में जाना जाता है। विशेष प्रावधानों में शामिल हैं:
    • समझौतों और प्रतिबद्धताओं को लागू करने के लिये लंबी समयावधि।
    • विकासशील देशों के लिये व्यापार अवसरों को बढ़ाने के उपाय।
    • WTO के काम को पूरा करने, विवादों का प्रबंधन करने और तकनीकी मानकों को लागू करने हेतु विकासशील देशों की सहायता।
    • अल्प विकसित सदस्य देशों संबंधी प्रावधान।

WTO में विकासशील देशों को लाभ:

  • जिस समझौते के तहत WTO की स्थापना की गई थी वह निश्चित करता है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से अल्पविकसित एवं विकासशील देश के आर्थिक विकास को लाभ पहुँचना चाहिये।
  • टैरिफ और व्यापार संबंधी सामान्य करार (General Agreement on Tariffs and Trade-GATT) विकासशील सदस्य देशों को अपने देश में आयात पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार देता है यदि ऐसा करने से किसी विशेष उद्योग की स्थापना या रखरखाव को बढ़ावा मिल रहा हो।
  • GATT के भाग IV में विकासशील देशों के लिये गैर-पारस्परिक अधिमान्य उपचार (Non-Reciprocal Preferential Treatment) की अवधारणा संबंधी प्रावधान भी किया गया है अर्थात् जब विकसित देश विकासशील देशों को व्यापार संबंधी कुछ छूटें देते हैं, तो उन्हें बदले में विकासशील देशों से उसी प्रकार की छूटों की प्रत्याशा नहीं रखनी चाहिये।
  • हालाँकि विकासशील देशों का दावा है कि वर्तमान में GATT के भाग IV का कोई व्यावहारिक औचित्य नहीं रह गया है, क्योंकि इसमें विकसित देशों पर कोई बाध्यता निर्धारित नहीं की गई है।

संबंधित मुद्दे

  • हाल ही में अमेरिका ने WTO पर किसी भी देश को विकसित या विकासशील घोषित करने की उसकी प्रणाली को बदलने का दबाव बनाया था। साथ ही अमेरिका ने चीन पर इस प्रणाली का गलत उपयोग करने का आरोप भी लगाया था।
  • ध्यातव्य है कि वर्तमान में अमेरिका और चीन के मध्य व्यापार युद्ध जारी है और अमेरिका के इस कदम को भी युद्ध का हिस्सा माना जा सकता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी हाल ही में प्रस्तावित किया था कि वर्तमान और भविष्य की सभी वार्ताओं में निम्नलिखित को स्व-घोषणा के विकल्प का प्रयोग नहीं करना चाहिये:
    • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के सदस्य।
    • G20 समूह के सदस्य।
    • विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार उच्च आय वाले देश।
    • वे देश जिनका वैश्विक व्यापार में 0.5 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है।
  • विदित हो कि अमेरिकी दृष्टिकोण का खंडन करते हुए चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका और कई अन्य देशों ने भी अपना स्वयं का एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। प्रस्ताव में कहा गया था कि विकास के स्तर का आकलन करते समय प्रति व्यक्ति संकेतकों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • वैश्विक व्यापार में विकासशील देशों को एकीकृत करने हेतु WTO के सदस्य देश निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं-

सदस्य देश दक्षिण कोरिया का अनुसरण करते हुए खुद को विकसित घोषित किये बिना विकासशील देशों को मिलने वाले किसी भी स्पेशल ट्रीटमेंट को न लेने का निर्णय ले सकते हैं।

  • छूटों की एक स्थायी व्यवस्था करने के बजाय विभेदित उपचारों के प्रावधान बनाते समय विकासशील देशों में नीति निर्माण में आने वाली चुनौतियों को ध्यान में रखा जाना चाहिये। सब्सिडी और काउंटरवेलिंग उपायों पर WTO के समझौते के अनुरूप ही इन प्रावधानों को या तो एक समय-सीमा से जोड़ा जाना चाहिये अथवा इन्हें चरणबद्ध रूप से खत्म करने का मानक जोड़ा जाना चाहिये।

स्रोत: इंडिया टुडे