हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत ST महिलाएँ संपत्ति के अधिकार से वंचित | 06 Jun 2023

प्रिलिम्स के लिये:

अनुसूचित जनजाति, हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम, 2005, संविधान का अनुच्छेद 14, हिंदू कानून का मिताक्षरा स्कूल, भारत में विरासत अधिकार

मेन्स के लिये:

भारत में महिलाओं से संबंधित मुद्द

चर्चा में क्यों? 

केंद्र सरकार इस बात की जाँच कर रही है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत अधिसूचना जारी की जाए या नहीं, ताकि अनुसूचित जनजाति (ST) की महिलाओं के लिये लाभकारी प्रावधान लागू किया जा सके, जो हिंदू धर्म को मानती हैं, ताकि उन्हें पिता/हिंदू अविभाजित परिवार (Hindu Undivided Family- HUF) की संपत्तियों में समान हिस्सा प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सके।

उत्तराधिकार अधिकारों से संबंधित प्रमुख मुद्दे:

  • अधिनियम से बहिष्करण:
    • हिंदू धर्म को मानने वाली अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के लाभकारी प्रावधानों से बाहर रखा गया है।
    • यह बहिष्करण उन्हें अन्य हिंदू समुदायों की महिलाओं की तुलना में पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकार के समान अधिकारों से वंचित करता है। 
  • समान विरासत अधिकारों से इनकार:
    • बहिष्करण के कारण ST महिलाएँ अपने पिता या हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की संपत्ति में समान हिस्से की हकदार नहीं हैं।
    • विरासत के अधिकारों में यह असमानता लैंगिक असमानताओं को कायम रखती है और ST महिलाओं के वित्तीय सशक्तीकरण को बाधित करती है।
  • जनजातीय पहचान के आधार पर भेदभाव:
    • हिंदू धर्म को मानने वाली ST महिलाओं को समान विरासत के अधिकार से वंचित करना उनकी आदिवासी पहचान के आधार पर भेदभाव का एक रूप है।
    • यह भारतीय संविधान में प्रतिष्ठापित समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों का खंडन करता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कमला नेती बनाम विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी और अन्य के मामले में केंद्र सरकार को यह जाँच करने का निर्देश दिया कि क्या हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत अनुसूचित जनजातियों के प्रावधानों की प्रयोज्यता के संबंध में प्रदान की गई छूट को वापस लेने के लिये संशोधन आवश्यक है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956: 

  • परिचय: 
    • हिंदू कानून के मिताक्षरा स्कूल को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के रूप में संहिताबद्ध किया गया था। यह कानून उत्तराधिकार और संपत्ति के उत्तराधिकार को नियंत्रित करता था लेकिन कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में केवल पुरुषों को ही मान्यता दी जाती थी।
  • प्रयोज्यता: 
    • यह उन सभी पर लागू होता है जो धर्म से मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं हैं।
    • इस कानून के लिये बौद्ध, सिख, जैन और आर्य समाज, ब्रह्म समाज के अनुयायी भी हिंदू माने जाते हैं।
    • परंपरागत रूप से सामान्य पूर्वजों में केवल पुरुष वंशजों के साथ-साथ उनकी माताओं, पत्नियों और अविवाहित बेटियों को एक संयुक्त हिंदू परिवार माना जाता है। कानूनी उत्तराधिकारी संयुक्त रूप से पारिवारिक संपत्ति रखते हैं।
  • हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005:
    • वर्ष 1956 के अधिनियम को सितंबर 2005 में संशोधित किया गया था और महिलाओं को वर्ष 2005 से संपत्ति के विभाजन के लिये सहदायिक के रूप में मान्यता दी गई थी।
    • इस अधिनियम की धारा 6 में संशोधन किया गया था ताकि एक सहदायिक की पुत्री को "उसके अपने अधिकार में पुत्र के रूप में" भी जन्म से सहदायिक बनाया जा सके।
    • इसने पुत्री को "सहदायिकी संपत्ति में" समान अधिकार और देनदारियाँ भी दीं क्योंकि यदि वह पुत्र होता तो उसे मिलता।
    • यह कानून पैतृक संपत्ति पर लागू होता है और उत्तराधिकार को व्यक्तिगत संपत्ति की वसीयत से बाहर करता है क्योंकि इसमें उत्तराधिकार कानून के अनुसार होगा, न कि वसीयत के माध्यम से।
  • क्लास I वारिस: 
    • यह अधिनियम रिश्तेदारों को उत्तराधिकारियों के विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत करता है।
    • क्लास I के वारिसों में मृतक के बच्चे, पोते और उनकी माताएँ शामिल हैं।
    • क्लास I के वारिसों की अनुपस्थिति में संपत्ति क्लास II के वारिसों को दी जाती है जिसमें पिता, पुत्र की पुत्री का पुत्र, भाई, बहन, पिता की विधवा; भाई की विधवा आदि।
  • वसीयतनामा उत्तराधिकार: 
    • यह अधिनियम वसीयत के उत्तराधिकार को भी मान्यता देता है, जहाँ एक व्यक्ति अपनी संपत्ति को एक वैध वसीयत के माध्यम से बेच या स्थानांतरित कर सकता है।
    • कुछ प्रतिबंधों और कानूनी आवश्यकताओं को छोड़कर, व्यक्ति को अपनी इच्छा के अनुसार संपत्ति वितरित करने की स्वतंत्रता है।
  • विधवाओं के अधिकार:
    • अधिनियम विधवाओं के अधिकारों को उनके मृत पतियों से संपत्ति प्राप्त करने के लिये मान्यता देता है।
    • एक विधवा का अपने पति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति में अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों के साथ हिस्सा होता है।

संपत्ति विरासत के बारे में हिंदू कानून के स्कूल क्या कहते हैं?

हिंदू विधियों के प्रकार

मिताक्षरा कानून

दायभाग कानून

मिताक्षरा शब्द याज्ञवल्क्य स्मृति पर विज्ञानेश्वर द्वारा लिखी गई एक टिप्पणी के नाम से लिया गया है।

दायभाग शब्द जिमुतवाहन द्वारा लिखित इसी तरह के नाम वाले पाठ से लिया गया है। 

इसका अनुसरण भारत के सभी भागों में किया जाता है और बनारस, मिथिला, महाराष्ट्र और द्रविड़ स्कूलों में विभाजित है ।

इसका अनुसरण  बंगाल और असम में किया जाता है।

एक पुत्र जन्म से ही संयुक्त परिवार की पैतृक संपत्ति में हित प्राप्त कर लेता है ।

एक पुत्र के पास जन्म से स्वत: स्वामित्व का कोई अधिकार नहीं होता है, लेकिन वह इसे अपने पिता की मृत्यु पर प्राप्त करता है।

एक सहदायिक का हिस्सा परिभाषित नहीं है और इसका निपटान नहीं किया जा सकता है।

प्रत्येक सहदायिक का हिस्सा परिभाषित किया गया है और उसका निपटान किया जा सकता है।

एक पत्नी बंँटवारे की मांग नहीं कर सकती है लेकिन उसे अपने पति और बेटों के बीच किसी भी बंँटवारे में हिस्सेदारी का अधिकार है।

यहाँ महिलाओं के लिये समान अधिकार मौजूद नहीं है क्योंकि बेटे विभाजन की मांग नहीं कर सकते क्योंकि पिता पूर्ण मालिक है।

सभी सदस्य पिता के जीवनकाल के दौरान सहदायिकी अधिकार प्राप्त करते हैं ।

पिता के जीवित रहने पर पुत्रों को सहदायिकी अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. प्राचीन भारत के इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2021)

  1. मिताक्षरा ऊँची जाति की सिविल विधि थी और दायभाग निम्न जाति की सिविल विधि थी।
  2. मिताक्षरा व्यवस्था में पुत्र अपने पिता के जीवनकाल में संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते थे, जबकि दायभाग व्यवस्था में पिता की मृत्यु के उपरांत ही पुत्र संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते थे।
  3. मिताक्षरा व्यवस्था किसी परिवार के केवल पुरुष सदस्यों की संपत्ति से संबंधित मामलों पर विचार करती है, जबकि दायभाग व्यवस्था किसी परिवार के पुरुष एवं महिला सदस्यों, दोनों के संपत्ति संबंधी मामलों पर विचार करती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • क्षेत्रों को निरूपित करने हेतु मिताक्षरा और दायभाग शब्दों का प्रयोग किया जाता था। यह जाति व्यवस्था से संबंधित नहीं है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • दायभाग और मिताक्षरा के बीच का अंतर उनके मूल विचार में है। दायभाग किसी को अपने पूर्वजों की मृत्यु से पहले संपत्ति का अधिकार नहीं देता है, जबकि मिताक्षरा किसी को भी उनके जन्म के तुरंत बाद संपत्ति का अधिकार देता है। अतः कथन 2 सही है।
  • दायभाग व्यवस्था पश्चिम बंगाल में प्रचलित है और परिवार के पुरुष और महिला दोनों सदस्यों को सहदायिक होने की अनुमति देती है। दूसरी ओर मिताक्षरा व्यवस्था, पश्चिम बंगाल को छोड़कर पूरे भारत में प्रचलित है एवं केवल पुरुष सदस्यों को सहदायिक होने की अनुमति देती है। अतः कथन 3 सही नहीं है।
  • अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: द हिंदू