‘स्वास्थ्य के अधिकार’ की मांग | 07 Oct 2021

प्रिलिम्स के लिये

मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत, मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा

मेन्स के लिये

‘स्वास्थ्य के अधिकार’ की मांग, इसकी आवश्यकता और इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजस्थान में ‘स्वास्थ्य के अधिकार’ को लेकर कानून बनाने की मांग फिर से उठी है।

  • स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं ने स्पष्ट किया है कि यह कानून चिकित्सा सेवाओं को सुव्यवस्थित करेगा और नागरिकों को आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता की गारंटी देगा।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • स्वास्थ्य का अधिकार: अन्य अधिकारों की तरह स्वास्थ्य के अधिकार में भी स्वतंत्रता एवं पात्रता दोनों घटक शामिल हैं:
      • स्वतंत्रता में स्वयं के स्वास्थ्य और शरीर को नियंत्रित करने का अधिकार (उदाहरण के लिये यौन एवं प्रजनन अधिकार) तथा हस्तक्षेप से मुक्ति का अधिकार शामिल है (उदाहरण के लिये यातना एवं गैर-सहमति चिकित्सा उपचार और प्रयोग से मुक्ति)।
      • ‘पात्रता’ के तहत स्वास्थ्य सुरक्षा की एक प्रणाली का अधिकार शामिल है, जो सभी को स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्य स्तर का लाभ प्राप्त करने का अवसर देता है।
    • महत्त्व
      • लोग स्वास्थ्य के अधिकार हेतु पात्र हैं और यह सरकार को इस दिशा में कदम उठाने के लिये मज़बूर करता है।
      • यह सभी को सेवाओं तक पहुँच प्राप्त करने में सक्षम बनाता है और यह सुनिश्चित करता है कि उन सेवाओं की गुणवत्ता आम लोगों के स्वास्थ्य में सुधार करने हेतु पर्याप्त है।
      • यह स्वास्थ्य सेवाओं हेतु लोगों को अपनी जेब से भुगतान करने के वित्तीय परिणामों से बचाता है और लोगों के गरीबी में धकेले जाने के जोखिम को कम करता है।
    • चुनौतियाँ
      • देश में मौजूदा सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल मॉडल का दायरा काफी सीमित है।
        • ऐसे स्थानों पर जहाँ सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मौजूद हैं, वहाँ भी केवल गर्भावस्था देखभाल, सीमित चाइल्डकेयर और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों से संबंधित कुछ सेवाएँ ही प्रदान की जाती हैं।
      • भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य वित्तपोषण पर व्यय (जीडीपी का लगभग 1.3%) लगातार कम रहा है।
        • ‘आर्थिक सहयोग और विकास संगठन’ (OECD) के मुताबिक, भारत का कुल ‘आउट-ऑफ पॉकेट’ व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.3% है।
        • सरकार वर्ष 2025 तक जीडीपी का 2.5% स्वास्थ्य पर खर्च करने हेतु प्रतिबद्ध है।
      • स्वास्थ्य प्रणाली में त्रुटियों के कारण गैर-संचारी रोगों से निपटना चुनौतीपूर्ण है, जो कि रोकथाम और इनका शीघ्र पता लगाने से संबंधित है।
        • यह कोविड-19 महामारी जैसी नए एवं उभरते खतरों के लिये तैयारियों में कमी और इनके प्रभावी प्रबंधन को कमज़ोर करता है।
  • सरकारी दायित्व
    • संवैधानिक
      • मौलिक अधिकार: भारतीय संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। स्वास्थ्य का अधिकार गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार में निहित है।
      • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP): अनुच्छेद 38, 39, 42, 43 और 47 स्वास्थ्य के अधिकार की प्रभावी प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये राज्य का दायित्व निर्धारित करते हैं।
    • न्यायिक निर्णय:
      • ‘पश्चिम बंगाल खेत मज़दूर समिति मामले’ (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि एक कल्याणकारी राज्य में सरकार का प्राथमिक कर्तव्य लोगों के कल्याण को सुरक्षित करना है और इसके अलावा यह भी सरकार का दायित्व है कि वह लोगों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करे।
      • ‘परमानंद कटारा बनाम भारत संघ’ वाद (1989) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि प्रत्येक डॉक्टर चाहे वह सरकारी अस्पताल में हो या निजी अस्पताल में, अपने पेशेवर दायित्वों के तहत जीवन की रक्षा के लिये उत्तरदायी है।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ:
    • यह भोजन, कपड़े, आवास और चिकित्सा देखभाल तथा आवश्यक सामाजिक सेवाओं सहित मनुष्यों के स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार प्रदान करता है।

आगे की राह

  • स्वास्थ्य को संविधान के तहत सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया जाना चाहिये। वर्तमान में 'स्वास्थ्य' राज्य सूची के अंतर्गत है।
  • स्वास्थ्य देखभाल निवेश हेतु एक समर्पित ‘विकासात्मक वित्त संस्थान’ (DFI) की आवश्यकता है।
  • संसद द्वारा स्वास्थ्य के अधिकार को शामिल करते हुए एक व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून पारित किया जा सकता है।
  • रोग निगरानी, प्रमुख गैर-स्वास्थ्य विभागों की नीतियों के स्वास्थ्य पर प्रभाव की जानकारी एकत्र करने, राष्ट्रीय स्वास्थ्य आँकड़ों के रखरखाव, सार्वजनिक स्वास्थ्य नियमों को लागू करने एवं सूचना के प्रसार के लिये एक नामित और स्वायत्त एजेंसी बनाने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू