दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में भिक्षावृत्ति को गैर-आपराधिक माना है | 09 Aug 2018

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भिक्षावृत्ति को गैर-आपराधिक मानते हुए इससे संबंधित कानून के प्रावधानों को रद्द कर दिया है। साथ ही उच्च न्यायालय ने इन प्रावधानों को भिक्षावृत्ति के अंतर्निहित कारणों से निपटने के लिये एक गलत तरीका माना है।

प्रमुख बिंदु

  • बॉम्बे भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम, 1959 के बाद राष्ट्रीय राजधानी में भिक्षावृत्ति को अपराध की श्रेणी में रखा गया था, जिसे 1960 में केंद्र सरकार द्वारा किये गए संशोधन के माध्यम से दिल्ली में भी विस्तृत किया गया था।
  • इस कानून के तहत भिखारी घरों (Beggar Homes) में रहने वाले व्यक्तियों के भिक्षावृत्ति के मामले में पहली बार दोषी पाए जाने पर तीन साल की हिरासत या ज़ुर्माने का प्रावधान है और दूसरी बार भिक्षावृत्ति की पुनरावृत्ति पर 10 साल के लिये हिरासत में लेने का आदेश दिया जा सकता है। 
  • उल्लेखनीय है कि भारत में 20 राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों ने भिक्षावृत्ति के संबंध में या तो अपने स्वयं के कानून बनाए हैं या अन्य राज्यों द्वारा अधिनियमित कानूनों को अपनाया है।
  • बेंच ने बॉम्बे भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम के 25 अलग-अलग वर्गों को "असंवैधानिक" घोषित कर दिया है।
  • साथ ही बेंच द्वारा यह भी कहा गया है कि वर्तमान कानून भिक्षा के प्रकार के बीच कोई भेद नहीं करता है, यानी कानून यह परिभाषित करने में अक्षम है कि भिक्षावृत्ति स्वैच्छिक है या अनैच्छिक।
  • हालाँकि,अदालत ने अधिनियम के उन प्रावधानों को नहीं छुआ है, जो लोगों को भिक्षा मांगने हेतु विवश करने पर दंड का प्रावधान करता है।
  • पिछले ही वर्ष नवंबर में केंद्र सरकार ने कहा था कि गरीबी के कारण यदि कोई व्यक्ति भीख मांगता है तो यह अपराध नहीं माना जाना चाहिये।
  • इसके साथ ही केंद्र सरकार ने यह भी कहा था कि उन कारणों का पता लगाना भी ज़रूरी है कि कहीं गरीब व्यक्ति को ज़बरन भिक्षावृत्ति हेतु मज़बूर तो नहीं किया गया है।
  • हालाँकि, कानून के उन प्रावधानों से रक्षा करने की मांग की गई थी जो पुलिस को वारंट के बिना भिखारी को गिरफ्तार करने की अनुमति देते हैं।
  • बेंच ने टिप्पणी की है कि भिक्षावृत्ति के लिये गिरफ्तारी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ऐसे व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • साथ ही बेंच ने ‘भिखारी घरों’ में भिखारियों को रखे जाने के कार्य को "निरर्थक " (“Futility”) और सार्वजनिक निधियों की बर्बादी का अभ्यास भी कहा है।