मानहानि | 25 Sep 2025
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि राजनीतिक नेताओं और निजी व्यक्तियों द्वारा व्यक्तिगत और राजनीतिक विवादों को निपटाने के लिये मानहानि कानून का बढ़ता दुरुपयोग चिंता का विषय है।
मानहानि क्या है?
- मानहानि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने के इरादे से उसके खिलाफ बोलने, लिखने, प्रकाशित करने या संकेत देने का कार्य है।
- यह किसी जीवित व्यक्ति, कंपनी, एसोसिएशन या समूह या मृत व्यक्ति से संबंधित हो सकता है तथा मृतक को होने वाले नुकसान को उसके परिवार या निकट संबंधियों पर पड़ने वाले प्रभाव के संदर्भ में देखा जाता है।
- मानहानि के प्रकार:
- मानहानि: स्थायी रूप में किये गए मानहानिकारक कथन, जैसे, लेखन, चित्र, प्रकाशित कार्य।
- बदनामी: बोले गए शब्दों या अस्थायी अभिव्यक्तियों के माध्यम से मानहानि।
- न्यायालय साक्ष्य और परिस्थितियों के आधार पर मानहानि की व्याख्या व्यक्तिपरक रूप से करते हैं।
- भारत में विनियमन:
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 और 500 (अब भारतीय न्याय संहिता, 2023): मानहानि को परिभाषित करती है तथा इसके दंड निर्धारित करती है।
- मानहानि की प्रकृति और उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इसे आपराधिक या दीवानी श्रेणी में रखा जा सकता है। आपराधिक मामलों में ठोस सबूतों की आवश्यकता होती है और यह सिद्ध करना अनिवार्य होता है कि आरोप उचित संदेह से परे हैं।
- आपराधिक मानहानि, सिविल दंड की तुलना में अधिक मज़बूत निवारक के रूप में कार्य करती है, प्रतिष्ठा की रक्षा में सार्वजनिक हित को बनाए रखती है तथा कमज़ोर समूहों को भेदभाव या घृणास्पद भाषण से बचाती है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 और 500 (अब भारतीय न्याय संहिता, 2023): मानहानि को परिभाषित करती है तथा इसके दंड निर्धारित करती है।
- न्यायिक घोषणा:
- सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ: वर्ष 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मानहानि की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।
- न्यायालय ने कहा कि प्रतिष्ठा की रक्षा अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का अभिन्न हिस्सा है।
- साथ ही, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि आईपीसी के तहत आपराधिक मानहानि को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक “उचित प्रतिबंध” माना जाएगा।
- सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ: वर्ष 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मानहानि की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।
मानहानि को अपराध की श्रेणी से बहार करने की क्या आवश्यकता है?
- दुरुपयोग की रोकथाम: आपराधिक मानहानि का प्रयोग प्रायः व्यक्तियों या राजनीतिक हस्तियों द्वारा व्यक्तिगत अथवा राजनीतिक प्रतिशोध के लिये किया जाता है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण: आपराधिक मानहानि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं प्रेस की स्वतंत्रता को बाधित करती है। इसे अपराध की श्रेणी से बहार करने से (decriminalisation) पत्रकारों, कार्यकर्त्ताओं तथा नागरिकों द्वारा विचार अभिव्यक्ति पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव (chilling effect) को कम करेगा।
- सिविल उपाय पर्याप्त हैं: बिना किसी आपराधिक दंड के सिविल मानहानि के मुकदमों के माध्यम से प्रतिष्ठा की रक्षा की जा सकती है। अनेक लोकतांत्रिक देशों जैसे अमेरिका में मानहानि को आपराधिक अपराध न मानकर सिविल विषय (civil matter) के रूप में देखा जाता है।
- प्रतिष्ठा की हानि एक सिविल क्षति है; कारावास दंड अत्यधिक कठोर है और यह अनुपातिकता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
- न्यायिक मितव्ययिता: आपराधिक मामले पहले से ही न्यायालयों पर अत्यधिक लंबित भार को और बढ़ाते हैं, जबकि सिविल उपाय अधिक प्रभावी एवं कम बोझिल सिद्ध होते हैं।
भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए मानहानि कानूनों को मजबूत बनाने के लिए क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- निजी मानहानि को अपराध की श्रेणी से बहार करना: आपराधिक दायित्व केवल सार्वजनिक हित या राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों तक सीमित करना; निजी विवादों को सिविल कानून के अंतर्गत स्थानांतरित करना।
- सिविल उपायों को मज़बूत करना: मानहानि मामलों के लिये त्वरित न्यायालय स्थापित करना, स्पष्ट मुआवज़े के मानक निर्धारित करना, तथा शीघ्र न्याय सुनिश्चित करने के लिये वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) अपनाना।
- स्पष्ट मानदंड निर्धारित करना: वर्ष 2016 के निर्णय की वर्तमान दुरुपयोग की स्थिति के संदर्भ में पुनः समीक्षा करना और न्यायिक या विधायी दिशानिर्देश प्रदान करना, जिससे उचित आलोचना, व्यंग्य और उपहास को दुर्भावनापूर्ण मानहानि से अलग किया जा सके।
- प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करना: पत्रकारों, व्हिसलब्लोअर्स और सार्वजनिक हित में कार्य करने वाले शोधकर्त्ताओं के लिये सुरक्षा उपाय लागू करना।
- SLAPP मुकदमों को रोकना: शक्तिशाली व्यक्तियों या निगमों द्वारा मानहानि मामलों के दुरुपयोग को रोकने के लिये सार्वजनिक भागीदारी के विरुद्ध रणनीतिक मुकदमों (SLAPP) विरोधी कानून लागू करना।
- जागरूकता और मीडिया साक्षरता: नागरिकों को ज़िम्मेदार अभिव्यक्ति और उपलब्ध उपायों के बारे में शिक्षित करना, ताकि वे आपराधिक मामलों पर निर्भर न हों।
निष्कर्ष
मानहानि एक जटिल विषय बना हुआ है, जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा अक्सर टकराती हैं। किसी भी परिवर्तन में आलोचना को दबाने के जोखिम और सम्मान की रक्षा की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है, जिससे सतर्क और सुविचारित सुधार सुनिश्चित हों।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. मानहानि विधि के दुरुपयोग और उसके लोकतांत्रिक विमर्श पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
मेन्स
प्रश्न. आप 'वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्रय' संकल्पना से क्या समझते हैं? क्या इसकी परिधि में घृणा वाक् भी आता है? भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से तनिक भिन्न स्तर पर क्यों हैं? चर्चा कीजिये। (2014)