GDP वृद्धि दर में गिरावट | 30 May 2020

प्रीलिम्स के लिये

सकल घरेलू उत्पाद, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, सकल स्थायी पूंजी निर्माण

मेन्स के लिये

GDP संबंधी नवीनतम आँकड़ों का निहितार्थ, लॉकडाउन का आर्थिक प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office-NSO) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 की अंतिम तिमाही अर्थात् जनवरी-मार्च माह में सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) की वृद्धि दर 3.1 प्रतिशत तक गिर गई है।

प्रमुख बिंदु

  • वहीं राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी अनुमान (Estimate) के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 में GDP वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत के साथ 11 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर आ सकती है, जो कि पिछले वित्तीय वर्ष (2018-19) में 6.1 प्रतिशत थी।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 की चौथी और अंतिम तिमाही की वृद्धि दर, बीती 44 तिमाहियों में सबसे कम है, किंतु यह अभी भी विभिन्न अर्थशास्त्रियों और रेटिंग विश्लेषकों द्वारा अनुमानित 2.2 प्रतिशत से अधिक है।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में GDP वृद्धि दर 5.2 प्रतिशत, दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में GDP वृद्धि दर 4.4 प्रतिशत और तीसरी तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर) में GDP वृद्धि दर 4.1 प्रतिशत रही थी।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 में सकल स्थायी पूंजी निर्माण (Gross Fixed Capital Formation- GFCF) में (-) 2.8 प्रतिशत दर से नकारात्मक वृद्धि हुई।
    • GFCF का आशय सरकारी और निजी क्षेत्र में स्थायी पूंजी पर किये जाने वाले शुद्ध पूंजी व्यय के आकलन से है। माना जाता है कि यदि किसी देश के GFCF में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है तो उस देश के आर्थिक विकास में भी तेज़ी से वृद्धि होगी। वहीं इसके विपरीत GFCF में गिरावट अर्थव्यवस्था के नीति निर्माताओं के लिये चिंताजनक विषय होता है।

वृद्धि दर में कमी के कारण

  • वित्तीय वर्ष 2019-20 की अंतिम तिमाही की वृद्धि दर से संबंधित आँकड़े स्पष्ट तौर पर 25 मार्च से शुरू हुए COVID-19 लॉकडाउन के पहले सप्ताह के प्रभाव को दर्शाते हैं। 
  • इस तिमाही के दौरान GDP वृद्धि दर में कमी के लिये विनिर्माण और निर्माण क्षेत्रों में हुए तेज़ संकुचन को भी एक प्रमुख कारण माना जा सकता है। 
    • जहाँ विनिर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector) में (-) 1.4 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई, वहीं निर्माण क्षेत्र (Construction Sector) में (-) 2.2 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई। इनके अतिरिक्त वित्तीय वर्ष 2019-20 में अन्य सभी क्षेत्रों का प्रदर्शन भी काफी धीमा रहा।
  • हालाँकि वित्तीय वर्ष 2019-20 की अंतिम तिमाही के दौरान कृषि और सरकारी खर्च में क्रमश: 5.9 प्रतिशत और 10.1 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई, जिन्होंने गिरती हुई अर्थव्यवस्था को संभालने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 की अंतिम तिमाही में COVID-19 का प्रभाव सीमित था, हालाँकि वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में मंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी प्रभावित किया।

2020-21 में और भी खराब हो सकती है स्थिति

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में अर्थव्यवस्था की स्थिति और भी खराब हो सकती है, क्योंकि अर्थव्यवस्था पर लॉकडाउन का व्यापक प्रभाव देखने को मिलेगा।
    • उल्लेखनीय है कि भारत में 25 मार्च को शुरू हुआ लॉकडाउन विश्व के कुछ सबसे कठोर लॉकडाउन में से एक है। लॉकडाउन के पहले, दूसरे और तीसरे चरण के दौरान देश की लगभग सभी आर्थिक और गैर-आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई थीं, जिसके कारण अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। इसका प्रभाव वित्तीय वर्ष 2020-21 में GDP संबंधी आँकड़ों पर देखने को मिल सकता है। 
    • हालाँकि लॉकडाउन के चौथे चरण में आर्थिक गतिविधियाँ धीरे-धीरे पुनः शुरू हो रही हैं, किंतु देश में कोरोना वायरस (COVID-19) संक्रमण के आँकड़े दिन-प्रति-दिन बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में आशंका है कि आगामी दिनों लॉकडाउन के नियम और अधिक कठोर हो सकते हैं।
  • आँकड़ों के अनुसार, आठ कोर इंफ्रास्ट्रक्चर उद्योगों का उत्पादन भी अप्रैल माह में रिकॉर्ड 38.1 प्रतिशत घट गया, जबकि देश का राजकोषीय घाटा वित्तीय वर्ष 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 4.6 प्रतिशत तक पहुँच गया है, जो कि मुख्यतः कम राजस्व प्राप्ति के कारण है।
  • अप्रैल माह में विनिर्माण क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Managers’ Index) 27.4 के निचले स्तर पर आ गया है, जो कि मार्च माह में 51.8 के स्तर पर था। वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात में 60 प्रतिशत की कमी आई है। 

आगे की राह

  • मौजूदा समय में संपूर्ण विश्व एक गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है और वैश्विक स्तर पर वायरस संक्रमण के आँकड़े 60 लाख के पार जा चुके हैं। वहीं इसके कारण 3 लाख से लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
  • वायरस के संक्रमण को रोकने के लिये विश्व के विभिन्न देशों में लॉकडाउन को एक उपाय के रूप में प्रयोग किया जा रहा है, विभिन्न देशों ने आंशिक अथवा पूर्ण लॉकडाउन लागू किया है।
  • भारत समेत विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं पर इस लॉकडाउन का प्रभाव देखने को मिल रहा है, चूँकि आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई हैं।
  • कई विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए, संतुलित और तर्कसंगत निर्णय नहीं लेती है तो आगामी समय में स्थिति और भी खराब हो सकती है।

स्रोत: द हिंदू