डेटा पॉइंट: स्कूली बच्चों की ड्रॉपआउट दर | 08 Jan 2019

क्या हैं हालात?


हाल ही में ‘शिक्षा हेतु एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली, U-DISE (Unified District Information System for Education)’ ने भारत में स्कूली बच्चों की ड्रॉपआउट यानी समय से पहले स्कूल छोड़ने की दर जारी की है। U-DISE द्वारा जारी किये गए आँकड़े भारतीय शिक्षा प्रणाली पर कुछ सवाल खड़े करते हुए प्रतीत होते हैं।

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क्या कहते हैं आँकड़े?

  • भारत में स्कूल ड्रॉपआउट की औसत दर

♦ 100 छात्रों के प्रारंभिक नामांकन में से भारत में औसतन केवल 70 छात्र सीनियर सेकेंडरी अर्थात 12वीं की शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं।
♦ प्राथमिक शिक्षा स्तर पर छात्रों की संख्या औसतन 94 है, जबकि सेकेंडरी अर्थात् 10वीं तक आते-आते छात्रों की यह संख्या 75 रह जाती है।

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  • SC/ST छात्रों के बीच ड्रॉपआउट दर

♦ 100 ST छात्रों में से केवल 61 छात्र सीनियर सेकेंडरी स्कूल (12वीं) तक पहुँच पाते हैं जो SC/ST/ OBC/GEN समुदायों में सबसे कम हैं।
♦ वहीं 100 SC छात्रों में से केवल 65 छात्र सीनियर सेकेंडरी स्कूल (12वीं) तक पहुँच पाते हैं। विस्तृत अवलोकन हेतु नीचे दिया गया टेबल देखें...

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  • ड्रॉपआउट में लैंगिक समानता

♦ ड्रॉपआउट में कोई लैंगिक असमानता नहीं है। पढ़ाई पूरी किये बिना स्कूल छोड़ने वाले लड़कों और लड़कियों की संख्या समान है। विस्तृत अवलोकन हेतु नीचे दिया गया टेबल देखें...

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राज्य-वार आँकड़ा

  • सबसे अधिक आदिवासी आबादी वाले झारखंड राज्य में स्कूली बच्चों की ड्रॉपआउट दर सबसे उच्चतम  है। जहाँ 100 में से केवल 30 छात्र अपनी पढाई पूरी कर पाते हैं।
  • आदिवासियों में ड्रॉपआउट दर सभी समुदायों में सबसे अधिक है।
  • झारखंड के विपरीत सबसे कम ड्रॉपआउट दर वाले राज्य इस प्रकार हैं-

♦ तमिलनाडु (सबसे कम ड्रॉपआउट दर), केरल, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र।

नोट:

  • आंध्र प्रदेश और कर्नाटक हेतु डेटा उपलब्ध नहीं है।
  • प्राथमिक विद्यालय (Elementary School) ग्रेड 1 से 8 को संदर्भित करता है, सेकेंडरी (Secondary School) ग्रेड 9 और 10 को संदर्भित करता है और सीनियर सेकेंडरी स्कूल (Senior) ग्रेड 11 और 12 को संदर्भित करता है।

स्रोत- द हिंदू